गुजरात सरकार को SC से झटका : साबरमती आश्रम पुनर्विकास योजना केस में तुषार गांधी की अर्ज़ी पर फिर होगी सुनवाई

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने सुनवाई क. बेंच ने कहा कि हमारा विचार है कि हाईकोर्ट ने इस मामले में गुजरात सरकार से हलफनामा भी नहीं मांगा, इसलिए इस मामले को फिर से खोला जाना चाहिए.

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साबरमती गांधी आश्रम की पुनर्विकास योजना के मामले में गुजरात सरकार को SC से झटका
नई दिल्ली:

साबरमती में गांधी आश्रम की पुनर्विकास योजना (Sabarmati Ashram Redevelopment Plan) मामले को सुप्रीम कोर्ट ने फिर से खोला है. गुजरात सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है. योजना के खिलाफ महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी की याचिका पर फिर सुनवाई होगी. गुजरात हाईकोर्ट नए सिरे से इस पर सुनवाई करेगा . पुनर्विकास योजना के खिलाफ याचिका को खारिज करने के हाईकोर्ट के 2021 के फैसले को रद्द किया.  सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को मामले पर फिर से सुनवाई करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट गुजरात सरकार का पक्ष सुनने  के बाद  फैसला सुनाए.  

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने सुनवाई क. बेंच ने कहा कि हमारा विचार है कि हाईकोर्ट ने इस मामले में गुजरात सरकार से हलफनामा भी नहीं मांगा, इसलिए इस मामले को फिर से खोला जाना चाहिए. हाईकोर्ट मामले की फिर से सुनवाई करे और पक्षों की बात सुने. हम इस मामले के गुण दोष पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं. हाईकोर्ट इस मामले की जल्द सुनवाई कर फैसला सुनाए. सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हम 2 सप्ताह में अपना जवाब दाखिल करेंगे.  गुजरात हाई कोर्ट से इस याचिका को फास्ट ट्रैक करने के लिए कहा जाना चाहिए. तब तक पुनर्विकास पर रोक लगनी चाहिए. तुषार मेहता ने कहा कि मैं HC से इसे प्राथमिकता के आधार पर लेने का अनुरोध करूंगा. 

याचिकाकर्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा किट्रस्टियों को सुनने की जरूरत है क्योंकि मामला ट्रस्ट के जनादेश में आता है. गुण-दोष के आधार पर आपको संबोधित नहीं कर रहे हैं. आज के समय में महात्मा गांधी की विरासत को जीवित रखना ट्रस्ट का जनादेश है. गुजरात सरकार ने कहा कि सरकार ट्रस्टों की मौजूदगी के प्रति पूरी तरह सचेत है, लेकिन HC को उस अनुरोध को सुनने दें. दरअसल गुजरात सरकार के फैसले के खिलाफ महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी सुप्रीम कोर्ट  पहुंचे हैं.

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 सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग भी की गई थी. सुप्रीम कोर्ट जल्द सुनवाई को तैयार हो गया था. तुषार गांधी ने गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है. हाईकोर्ट ने 25 नवंबर 2021 को तुषार की याचिका खारिज कर दी थी. तुषार का कहना है कि उक्त परियोजना से साबरमती आश्रम की भौतिक संरचना बदल जाएगा और इसकी प्राचीन सादगी भ्रष्ट हो जाएगी. याचिकाकर्ता ने कहा है कि 2019 में गुजरात सरकार ने उक्त आश्रम को फिर से डिजाइन और पुनर्विकास करने के अपने इरादे को प्रचारित किया और दावा किया इसे "विश्व स्तरीय संग्रहालय" और "पर्यटन स्थल" के रूप में बनाया जाएगा. कथित तौर पर 40 से अधिक "सर्वांगसम" इमारतों की पहचान की गई जिन्हें संरक्षित किया जाएगा जबकि बाकी लगभग 200 को ढहा दिया जाएगा. योजना में कैफे, पार्किंग स्थल, पार्क और चंद्रभागा नदी की धारा के पुनरुद्धार जैसी सुविधाएं बनाने का वादा किया गया. याचिकाकर्ता को डर है कि उक्त परियोजना से साबरमती आश्रम की भौतिक संरचना बदल जाएगी और इसकी प्राचीन सादगी भ्रष्ट हो जाएगी, जो गांधीजी की विचारधारा को मूर्त रूप देती है और इसे व्यापक बनाती है
. ये इन महत्वपूर्ण गांधीवादी सिद्धांतों के विपरीत है जो आश्रम का प्रतीक है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम में लंबे समय तक रहे थे और यह देश के आजादी के आंदोलन से करीबी से जुड़ा रहा है.

गुजरात सरकार 54 एकड़ में फैले इस आश्रम व इसके आसपास स्थित 48 हेरिटेज प्रॉपर्टी को विश्व स्तरीय पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करना चाहती है. महात्मा गांधी के तीसरे पुत्र मनिलाल के अरुण गांधी के बेटे तुषार गांधी ने  गुजरात सरकार की 1200 करोड़ रुपये की गांधी आश्रम मेमोरियल व प्रेसिंक्ट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट को चुनौती दी है, ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि यह राष्ट्रपिता की इच्छा व उनके दर्शन के खिलाफ है. गुजरात हाईकोर्ट में दाखिल  याचिका में गुजरात सरकार साबरमती आश्रम की विभिन्न गतिविधियों की देखभाल करने वाले छह ट्रस्टों, गांधी स्मारक निधि नामक चेरिटेबल ट्रस्ट, अहमदाबाद नगर निगम तथा प्रोजेक्ट से जुड़े अन्य सभी लोगों को प्रतिवादी बनाया गया था. लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता तुषार गांधी ने इन ट्रस्टों से सवाल किया कि वे अपनी जिम्मेदारी क्यों नहीं निभा पा रहे हैं?

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उन्होंने कहा कि सरकार को इसमें दखलंदाजी की इजाजत नहीं देना चाहिए, क्योंकि गांधी स्मारक निधि का संविधान कहता है कि बापू आश्रम व स्मारकों को सरकार व राजनीतिक प्रभाव से दूर रखा जाना चाहिए. जब गांधी स्मारक बना था, तब सरकार से एक पैसा भी नहीं लिया गया था. बाद में संविधान में संशोधन कर इन स्मारकों की देखभाल के लिए सरकार से फंड लेने की इजाजत दी गई, लेकिन सरकार की भूमिका फंडिंग तक ही सीमित रखी गई, उसे अपने स्तर पर कोई कदम उठाने का अधिकार नहीं दिया गया.

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