राजद्रोह कानून अंग्रेज़ों के ज़माने का, क्या आज़ादी के 75 साल बाद भी देश में इसकी ज़रूरत : SC का केंद्र से सवाल

CJI एनवी रमना ने कहा कि इस कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने आजादी के अभियान को दबाने के लिए किया था, असहमति की आवाज को चुप करने के लिए किया था. महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक पर भी ये धारा लगाई गई, क्या सरकार आजादी के 75 साल भी इस कानून को बनाए रखना चाहती है?

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राजद्रोह कानून के मामले में SC की बेंच 27 जुलाई को सुनवाई करेगी (प्रतीकात्‍मक फोटो)
नई दिल्ली:

राजद्रोह की IPC की 124 A की चुनौती देने की नई याचिका के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  ने केंद्र पर बड़ा सवाल है. CJI एनवी रमना ने कहा कि राजद्रोह कानून  (Sedition Law) का इस्तेमाल अंग्रेजों ने आजादी के अभियान को दबाने के लिए किया था, असहमति की आवाज को चुप करने के लिए किया था. महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक पर भी ये धारा लगाई गई, क्या सरकार आजादी के 75 साल भी इस कानून को बनाए रखना चाहती है? SC ने कहा कि इसके अलावा राजद्रोह के मामलों में सजा भी बहुत कम होती है. CJI ने कहा कि इन मामलों में अफसरों की कोई जवाबदेही भी नहीं है.

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प्रधान न्‍यायाधीश (CJI) ने अटार्नी जनरल से कहा कि धारा 66A को ही ले लीजिए, उसके रद्द किए जाने के बाद भी हज़ारों मुकदमें दर्ज किए गए. हमारी चिंता कानून का दुरुपयोग है. सुनवाई के दौरान CJI एनवी रमना ने कहा कि सरकार पुराने कानूनों को क़ानून की किताबों से निकाल रही है तो इस कानून को हटाने  विचार क्यों नहीं किया गया? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह राजद्रोह कानून की वैधता का परीक्षण करेगा. मामले में केंद्र को नोटिस दिया गया तथा अन्य याचिकाओं के साथ इसकी सुनवाई होगी. SC ने कहा कि राजद्रोह कानून संस्थाओं के कामकाज के लिए गंभीर खतरा है.

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CJI रमना ने कहा कि राजद्रोह का इस्तेमाल बढ़ई को लकड़ी का टुकड़ा काटने के लिए आरी देने जैसा हैऔर वह इसका इस्तेमाल पूरे जंगल को काटने के लिए करता है.उन्‍होंने कहा कि हम किसी राज्य या सरकार को दोष नहीं दे रहे हैं. लेकिन देखें कि कैसे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A का उपयोग जारी है, कितने दुर्भाग्यपूर्ण लोगों को भुगतना पड़ा है और इसके लिए कोई जवाबदेही नहीं है. यह ऐसा है जैसे अगर कोई पुलिस अधिकारी किसी गांव में किसी को ठीक करना चाहता है, तो वह धारा 124 ए का उपयोग कर सकता है. लोग डरे हुए हैंदरअसल, राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली पूर्व सैन्य अधिकारी की याचिका पर सुनवाई करने पर सुप्रीम कोर्ट सहमत हो गया है. याचिका में दावा किया गया है कि यह कानून अभिव्यक्ति पर 'डरावना प्रभाव' डालता है और यह बोलने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर अनुचित प्रतिबंध लगाता है.

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CJI एनवी रमना, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस ऋषिकेश राय की पीठ ने याचिकाकर्ता को याचिका की एक प्रति अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल को सौंपने का निर्देश दिया था. मेजर-जनरल (अवकाशप्राप्त) एसजी वोमबटकेरे द्वारा दायर याचिका में दलील दी गई है कि राजद्रोह से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए पूरी तरह असंवैधानिक है, इसे स्पष्ट रूप से खत्म कर दिया जाना चाहिए. याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता की दलील है कि सरकार के प्रति असहमति आदि की असंवैधानिक रूप से अस्पष्ट परिभाषाओं पर आधारित एक कानून अपराधीकरण अभिव्यक्ति, अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर एक अनुचित प्रतिबंध है और बोलने की आजादी पर संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य डराने वाले प्रभाव का कारण बनता है.याचिका में कहा गया कि राजद्रोह की धारा 124-ए को देखने से पहले, समय के आगे बढ़ने और कानून के विकास पर गौर करने की जरूरत है. हालांकि शीर्ष अदालत की एक अलग पीठ ने राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली दो पत्रकारों किशोरचंद्र वांगखेमचा (मणिपुर) और कन्हैयालाल शुक्ल (छत्तीसगढ़) की याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था.यह पीठ इस मामले में 27 जुलाई को सुनवाई करेगी. अटॉर्नी जनरल ने मामले में केंद्र का पक्ष रखते हुए कहा कि कानून को खत्म करने की जरूरत नहीं है.केवल गाइडलाइन निर्धारित किए जाने चाहिए ताकि धारा अपने कानूनी उद्देश्य को पूरा कर सके. इस पर सीजेआई ने कहा कि यदि कोई पक्ष दूसरे पक्ष की आवाज़ नहीं सुनना चाहता है, तो वो इस कानून का उपयोग कर सकता है और दूसरों को फंसा सकता है.यह लोगों के लिए एक गंभीर सवाल है.

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