SC ने इलाहाबाद HC के 'रामभरोसे' वाले कमेंट पर उठाया सवाल, कहा-न्‍यायालयों को कुछ संयम रखना चाहिए

जस्टिस सरन ने कहा कि HC ने फैसले में पूछा कितनी एम्बुलेंस हैं, कितने ऑक्सीजन बेड है, हम उस पर टिप्पणी नहीं करना चाहते, लेकिन आप स्थानीय कंपनियों से वैक्सीन तैयार करने तथा उनका निर्माण करने के लिए कैसे कह सकते हैं?

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सुप्रीम कोर्ट में मामले की 12 अगस्त को अगली सुनवाई होगी (प्रतीकात्‍मक फोटो)
नई दिल्ली:

इलाहाबाद हाईकोर्ट के 'रामभरोसे फैसले' को चुनौती देने का मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि वह जनहित मामलों में दिए जाने वाले कोर्ट के आदेशों की सीमा तय करने पर विचार करेगा. सुप्रीम कोर्ट में मामले की 12 अगस्त को अगली सुनवाई होगी. सुनवाई के दौरान जस्टिस विनीत सरन ने कहा कि हमने पहले ही कहा था कि टिप्पणियों को सुझाव के रूप में लिया जाना चाहिए. जस्टिस सरन ने कहा कि HC ने फैसले में पूछा कितनी एम्बुलेंस हैं, कितने ऑक्सीजन बेड है, हम उस पर टिप्पणी नहीं करना चाहते, लेकिन आप स्थानीय कंपनियों से वैक्सीन तैयार करने तथा उनका निर्माण करने के लिए कैसे कह सकते हैं?ऐसे निर्देश कैसे दिए जा सकते हैं.

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जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने कहा कि सवाल यह है कि क्या यह वह अधिकार क्षेत्र है जहां अदालतों में काम करना चाहिए? व्यावहारिक होने पर भी यह प्रश्न कार्यपालिका के लिए निश्चित कर दिया गया है और जब संकट का समय होता है, तब हर किसी को सावधानी से आगे बढ़ना पड़ता है और इस बात का ध्यान रखना होता है कि किसके द्वारा किया जाना है. जस्टिस माहेश्वरी ने कहा क्या औपचारिक रूप से आदेश को रद्द करना ज़रूरी है? जस्टिस सरन ने सॉलिसीटर जनरल से कहा कि हम आपकी मदद चाहते हैं, आप इस मामले में दिए गए सभी आदेशों को मिलाकर हमारे सामने रखें. उन्‍होंने कहा कि हाईकोर्ट का उद्देश्य सबके प्रति न्याय का था, हमें सीमा का आदर करना होगा. जस्टिस विनीत सरन ने कहा कि हम कोर्ट की चिंता को समझते हैं..लेकिन यह चिंता का विषय है.न्यायालयों को भी कुछ न्यायिक संयम रखना चाहिए, न कि ऐसे आदेश पारित करें जिन्हें लागू करना मुश्किल हो. 

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यूपी सरकार ने ग्रामीण यूपी में स्वास्थ्य प्रणाली पर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा की गई "राम भरोसे" टिप्पणी वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है. यूपी सरकार ने कहा कि यूपी में 289 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की पहचान की गई है, जिनमें प्रत्येक के लिए दो बाईपैक मशीनें हैं.  यूपी सरकार ने कोर्ट को बताया है कि 298 ऑक्सीजन कंसंट्रैटर केंद्र सरकार द्वारा मुहैया कराए गए हैं जबकि यूपी सरकार द्वारा इसी तरह के 20,000 कंसंट्रैटर खरीदे जा रहे हैं. राज्य में 250 विशिष्ट लाइफ सपोर्ट एम्बुलेंस के अलावा कुल 2,200 बेसिक लाइफ सपोर्ट एम्बुलेंस उपलब्ध हैं. 273 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को 1,771 ऑक्सीजन कंसंट्रैटर दिए गए हैं. राज्य 7,189 बेड के लिए 44,082 लीटर प्रति मिनट की क्षमता वाले ऑक्सीजन कंसंट्रैटर स्थापित करने जा रहा है, जिसमें से 18 जनरेटर भी लगाए गए हैं. स्वीकृत 177 ऑक्सीजन कंसंट्रैटर में से 18 लगाए जा चुके हैं.528 ऑक्सीजन संयंत्र स्वीकृत किए गए हैं और 133 कार्य कर रहे हैं.राज्य ने प्रत्येक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए 20 ऑक्सीजन कंसंट्रैटर के लिए खरीद आदेश दिया है.  राज्य सरकार ने प्रत्येक जिला अस्पताल में 10 से 15 बेड और 25 से 30 मेडिकल कॉलेजों में बाल चिकित्सा आईसीयू स्थापित करने की योजना बनाई है. 

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गौरतलब है कि 21 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के यूपी में ‘राम भरोसे‘ टिप्पणी वाले फैसले पर रोक लगा दी थी .हालांकि यह भी कहा था कि यूपी सरकार इस टिप्पणी को विरोध में न ले बल्कि एक सलाह के तौर पर ले. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश पर भी रोक लगा दी, जिसमें हाईकोर्ट ने UP सरकार को प्रत्येक गांव में ICU सुविधाओं के साथ दो एम्बुलेंस उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया था. यूपी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राज्य में 97,000 गांव हैं और एक महीने की समय सीमा तक लागू करना असंभव है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी हाईकोर्ट को अपने आदेश को लागू करने की व्यावहारिकता पर विचार करना चाहिए और उन आदेशों को पारित नहीं करना चाहिए जिन्हें लागू करना असंभव है.पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट कोविड प्रबंधन (Corona Management) मामलों से निपटने के दौरान उन मुद्दों से बचें जिनका अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट अखिल भारतीय मुद्दों से निपट रहा है. 

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सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा कि हम हाईकोर्ट के अधिकार और राज्य सरकार के अधिकारों के बीच में संतुलन बनाने वाला आदेश जारी करेंगे लेकिन हम ऐसा कोई आदेश जारी नहीं करेंगे जिससे हाईकोर्ट के अधिकार और राज्य सरकार के अधिकारों के मनोबल पर फर्क पड़े..इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार ने अपील की थी.हाईकोर्ट ने निर्देश दिया था कि सभी नर्सिंग होम के बेड में ऑक्सीजन की सुविधा होनी चाहिए. यूपी सरकार का कहना है कि सभी COVID-19 संबंधित मामलों को हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ को सुनना चाहिए. एसजी तुषार मेहता ने कहा कि स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को कभी भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता हैलेकिन इन निर्देशों का पालन करना असंभव है.जस्टिस विनीत सरन ने कहा कि हम कोर्ट की चिंता को समझते हैं..लेकिन यह चिंता का विषय है. न्यायालयों को भी कुछ न्यायिक संयम रखना चाहिए, न कि ऐसे आदेश पारित करें जिन्हें लागू करना मुश्किल हो. जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि हमारे पास विशेषज्ञता की भी कमी है. 

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