सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं को भी दिया गुजारे भत्ते का हक, कहा- धर्म रुकावट नहीं

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि अब समय आ गया है कि भारतीय पुरुष परिवार के लिए गृहिणी की भूमिका और त्याग को पहचानें. उन्हें संयुक्त खाते और एटीएम खोलकर उसे वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महिलाओं के भरण पोषण पर एक बड़ी लकीर खींचते हुए कहा कि इसमें धर्म बाधा नहीं है.कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के लिए भी भरण पोषण के लिए पति की जिम्मेदारी तय की. तेलंगाना की महिला ने भरण पोषण के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. इस मामले में पति हाई कोर्ट में केस हार गया था. जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की डबल बेंच ने इस पर फैसला सुनाया. 

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि मुस्लिम महिला ही नहीं, किसी भी धर्म की महिला भरण पोषण की अधिकारी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 125 के तहत महिला मेंटेनेंस का केस पति पर डाल सकती है. इसमें धर्म रुकावट नहीं है.

जस्टिस नागरत्ना ने फैसला सुनाते हुए एक बड़ी बात भी कही. उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि भारतीय पुरुष पत्नियों के त्याग को पहचानें. उन्होंने सलाह दी कि उनके खाते और जॉइंट काउंट खोले जाने चाहिए. इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने शहबानो मामले में कानून की धर्मनिरपेक्षता की बात कही थी.

Advertisement

क्या है पूरा मामला

अदालत ने जिस मामले में यह फैसला सुनाया है, वह तेलंगाना से जुड़ा है. इस मामले में याचिकाकर्ता को प्रति माह 20 हजार रुपये का अंतरिम गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था. याचिकाकर्ता मुस्लिम महिला ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दाखिल कर अपने पति से गुजारा भत्ते की मांग की थी. इस फैसले को हाई कोर्ट में इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि दंपति ने 2017 में मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार तलाक ले लिया था.

Advertisement

परिवार अदालत के फैसले को महिला के पति मोहम्मद अब्दुल समद ने हाई कोर्ट में चुनौती दी.पति की याचिका पर हाई कोर्ट ने गुजारा भत्ता को संशोधित कर 10 हजार रुपये प्रति माह कर दिया. इसके साथ ही अदालत ने पारिवारिक अदालत को इस मामले का निपटारा छह महीने में करने का निर्देश दिया था.

Advertisement

इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 को देखते हुए एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत लाभ का दावा करने की हकदार नहीं है. याचिकाकर्ता ने यह भी दलील दी थी कि 1986 का अधिनियम मुस्लिम महिलाओं के लिए अधिक फायदेमंद है.

Advertisement

ये भी पढ़ें: मुस्लिम महिला भी कर सकती है पति पर भरण-पोषण के कानूनी अधिकार का इस्तेमाल : SC

Featured Video Of The Day
Pahalgam Terror Attack के अंधेरे में इंसानियत की रोशनी, कश्मीरियों ने ऐसे बचाई Tourists की जान
Topics mentioned in this article