बिलों को मंजूरी देने में देरी के खिलाफ तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राज्यपाल आरएन रवि से सवाल किया कि ये बिल 2020 से लंबित थे. वे तीन साल से क्या कर रहे थे. कोर्ट ने पंजाब और केरल की भी इसी तरह की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सवाल किया कि क्या राज्यपाल किसी विधेयक को विधानसभा में वापस भेजे बिना उस पर सहमति रोक सकते हैं? कोर्ट की कड़ी टिप्पणियां राज्यपाल एनआर रवि द्वारा दस बिल लौटाए जाने के कुछ दिनों बाद आई हैं, जिनमें से दो पिछली अन्नाद्रमुक सरकार द्वारा पारित किए गए थे. इससे नाराज राज्य सरकार ने इन 10 बिलों को लेकर तमिलनाडु विधानसभा का शनिवार को विशेष सत्र बुलाया और राज्यपाल के पास वापस भेज दिया. अब कोर्ट ने कहा कि विधानसभा ने विधेयकों को फिर पारित कर दिया है और राज्यपाल को भेज दिया है. अब देखते हैं राज्यपाल इस मामले में क्या करते हैं. सुप्रीम कोर्ट में अब इस मामले पर 1 दिसंबर को अगली सुनवाई होगी.
केरल के राज्यपाल को लेकर कही ये बात
वहीं केरल के राज्यपाल (Kerala Governor) द्वारा विधानसभा से पास बिलों पर मंजूरी नहीं दिए जाने का मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यपाल ऑफिस को नोटिस जारी किया है. CJI डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल को अगली सुनवाई के दौरान कोर्ट में तथ्यों के साथ मौजूद रहने को कहा है.केरल सरकार की ओर से पूर्व AG केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राज्यपाल ने कुछ अहम विधेयकों पर अब तक फैसला नहीं किया है. राज्यपाल ने अब तक 3 विधेयकों पर हस्ताक्षर किए हैं, जबकि 7 से 23 महीने पहले विधानसभा द्वारा पास किए 8 विधेयक अभी भी लंबित हैं. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में तुरंत दखल दे. अब अगली सुनवाई शुक्रवार 24 नवंबर को होगी.
केरल सरकार ने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान पर लगाया ये आरोप
केरल सरकार ने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान पर विधानसभा से पारित बिलों पर कोई कार्रवाई न करने और उन पर सरकार द्वारा पारित महत्वपूर्ण विधेयकों को दबाकर बैठे रहने का आरोप लगाया. केरल राज्य ने अपनी याचिका में कहा है कि विधेयकों को लंबे समय तक और अनिश्चित काल तक लंबित रखने का राज्यपाल का आचरण स्पष्ट रूप से मनमाना है और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का भी उल्लंघन करता है. राज्य सरकार का कहना है कि सरकार द्वारा राज्य के लोगों के लिए विधानसभा द्वारा कल्याणकारी बिल पारित किए गए हैं. राज्यपाल द्वारा इन बिलों पर कोई कार्यवाही न करना, जनता को मिले अधिकारों से वंचित करता है.
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा- कुल 15 विधेयक राज्यपाल के पास लंबित
तमिलनाडु सरकार की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कुल 15 विधेयक राज्यपाल के पास लंबित हैं. 10 बिल राज्यपाल ने लौटा दिए. इन्हें दोबारा पारित कर राज्यपाल के पास भेजा गया है. CJI ने कहा कि एक बार जब यह दोबारा पारित हो जाता है, तो यह धन विधेयक के समान स्तर पर होता है. सिंघवी ने कहा कि इसमें राज्यपाल की कोई भूमिका नहीं है. सिद्धांत यह है कि यह मनी बिल के बराबर होता है. सीजेआई ने कहा कि अनुच्छेद 200 के मूल भाग के तहत राज्यपाल के पास कार्रवाई के तीन तरीके हैं. वह सहमति दे सकते हैं , असहमति जता सकते हैं या आपत्ति जता सकते हैं. क्या राज्यपाल किसी विधेयक को विधानसभा में वापस भेजे बिना उस पर सहमति रोक सकते हैं?
सीजेआई ने मामले पर कही ये बात
सीजेआई ने कहा कि जब राज्यपाल सहमति रोकते हैं तो इसे वापस सदन को भेजना होता है या यह कहना होता है कि मैं इसे राष्ट्रपति के पास भेज रहा हूं. एजी वेंकटरमणी ने कहा कि राज्यपाल टेक्निकल सुपरवाइजर नहीं होते. सिंघवी ने कहा कि तमिलनाडु के राज्यपाल ने संविधान के हर शब्द का उल्लंघन किया. एजी ने कहा कि लंबित 15 बिल वाइस चांसलर को लेकर हैं. एजी ने कहा कि इन बिलों पर फिर से विचार की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि AG वेंकटरमणी ने तमिलनाडु राज्यपाल के पास लंबित बिलों का ब्यौरा दिया है. सीजेआई ने कहा कि नोट बताता है कि 2020-2023 के बीच 181 बिल राज्यपाल के पास आए, जिनमें से 152 बिलों को मंजूरी दी गई. 5 विधेयक विचाराधीन हैं और राज्यपाल ने उन पर सहमति रोक रखी है. सीजेआई ने कहा कि नोट 18 नवंबर को एक विशेष विधानसभा सत्र हुआ. सभी दस बिल पारित किए गए. फिलहाल 10 विधेयक राज्यपाल के पास लंबित हैं. AG ने अदालत से इस कार्यवाही को 29 नवंबर 2023 तक स्थगित करने का अनुरोध किया. सुप्रीम कोर्ट ने 10 लंबित बिलों पर फैसला लेने के लिए राज्यपाल को वक्त दिया. 1 दिसंबर को अगली सुनवाई होगी.