सांसदों-विधायकों को अभियोजन से छूट देने का मामला : सुप्रीम कोर्ट चार मार्च को सुनाएगा फैसला

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित कई वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था.

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फाइल फोटो
नई दिल्ली:

उच्चतम न्यायालय चार मार्च को इस संबंध में अपना फैसला सुनाएगा कि क्या सांसदों और विधायकों को विधायिका में भाषण देने या वोट डालने के लिए रिश्वत लेने पर अभियोजन से छूट है. उच्चतम न्यायालय की सात न्यायाधीशों की पीठ ने 1998 के फैसले पर पुनर्विचार के संबंध में पांच अक्टूबर 2023 को अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था, जिसमें कहा गया था कि सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट देने के लिए रिश्वत लेने पर अभियोजन से छूट प्राप्त है.

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित कई वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था. वृहद पीठ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) रिश्वत मामले में 1998 में पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनाए गए फैसले पर पुनर्विचार कर रही है, जिसके द्वारा सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट देने के संबंध में रिश्वत के लिए अभियोजन से छूट दी गई थी. देश को झकझोर देने वाले झामुमो रिश्वत कांड के 25 साल बाद शीर्ष अदालत फैसले पर दोबारा विचार कर रही है.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले में दलीलें रखते हुए अदालत से संविधान के अनुच्छेद 105 के तहत छूट के पहलू पर नहीं जाने का आग्रह किया था. मेहता ने कहा था, "रिश्वतखोरी का अपराध तब होता है जब रिश्वत दी जाए और कानून निर्माताओं (सांसद-विधायक) द्वारा स्वीकार की जाए. इससे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत निपटा जा सकता है."

अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि वह इस मामले पर सुनवाई करेगी कि यदि सांसदों व विधायकों के कृत्यों में आपराधिकता जुड़ी है तो क्या उन्हें तब भी छूट दी जा सकती है.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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