सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शाहीन बाग धरने (Shaheen Bagh) के मामले में फैसले पर स्पष्टीकरण मांगने वाली याचिका खारिज कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फैसला खुद ही बोलता है.जस्टिस एसके कौल ने कहा- मुद्दा खत्म हो गया है, इसे क्यों सूचीबद्ध किया गया है? क्या स्पष्टीकरण मांगा गया है, मुझे समझ में नहीं आया. किसी स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है, पूरा मुद्दा खत्म हो गया है. बता दें कि जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी. स्पष्टीकरण के लिए अर्जी सैयद बहादुर अब्बास नकवी ने दाखिल की थी.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने अपने 7 अक्टूबर, 2020 के फैसले के माध्यम से कहा था कि एक कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार मौजूद है, लेकिन असहमति व्यक्त करने वाले प्रदर्शन चिन्हित स्थानों पर होने चाहिए और सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चित काल तक कब्जा नहीं किया जा सकता. ये फैसला वकील अमित साहनी की याचिका पर आया था जिसमें शाहीन बाग में CAA के खिलाफ विरोध प्रदर्शन सड़क से हटाने की मांग की गई थी.
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसफ की बेंच ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि यह धरना प्रदर्शन कई दिनों से चल रहा है. एक कॉमन क्षेत्र में यह जारी नहीं रखा जा सकता, वरना सब लोग हर जगह धरना देने लगेंगे. क्या आप पब्लिक एरिया को इस तरह बंद कर सकते हैं. क्या आप पब्लिक रोड को ब्लॉक कर सकते हैं. प्रदर्शन बहुत लंबे अरसे से चल रहा है और प्रदर्शन को लेकर एक जगह सुनिश्चित होनी चाहिए.
गौरतलब है कि मोदी सरकार ने संसद के शीतकालीन सत्र में नागरिकता संशोधित बिल को दोनों सदनों से पारित करवा लिया था. राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद यह कानून प्रभाव में आ गया. इसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी नागरिकों को भारतीय नागरिकता देना आसान कर दिया गया है. धार्मिक प्रताड़ना को इसका आधार बनाया गया है. इस कानून के तहत 31 दिसंबर, 2014 तक इन देशों से आए निम्न समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने की बात कही गई है. इस कानून में मुस्लिमों को नहीं रखा गया है. केंद्र सरकार का कहना है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं है, यही वजह है कि संशोधित कानून में मुस्लिमों को इससे बाहर रखा गया है.