"नहीं कहना चाहिए था..." : जज नियुक्ति के कॉलेजियम पर विधिमंत्री किरेन रिजिजू के कमेंट को SC ने खारिज किया

पिछले दिनों ही देश के काननू मंत्री किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम सिस्टम पर एक टिप्पणी की थी. कानून मंत्री की कॉलेजियम को लेकर टीवी पर की गई टिप्पणी को अब सुप्रीम कोर्ट ने खुद खारिज कर दिया है.

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कॉलेजियम सिस्टम से की जाती है जजों की नियुक्तियां

नई दिल्ली:

जज नियुक्ति का कॉलेजियम सिस्टम अक्सर किसी न किसी वजह से सुर्खियों में बना ही रहता है. पिछले दिनों ही देश के काननू मंत्री किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम सिस्टम पर एक टिप्पणी की थी. कानून मंत्री की कॉलेजियम को लेकर टीवी पर की गई टिप्पणी को अब सुप्रीम कोर्ट ने खुद खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू की हालिया टिप्पणी पर आज आपत्ति जताते हुए कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए था. इसने उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों में केंद्र की देरी के मुद्दे को भी हरी झंडी दिखाई.

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ ने कहा, "जब कोई उच्च पद पर आसीन व्यक्ति कहता है कि...ऐसा नहीं होना चाहिए था."केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि 'कभी-कभी मीडिया की खबरें गलत होती हैं.' देश के कानून मंत्री किरेन रिजिजू, ने मौजूदा नियुक्ति तंत्र पर एक नया हमला करते हुए कहा कि कॉलेजियम प्रणाली संविधान के लिए "एलियन" है.

उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने विवेक से, एक अदालत के फैसले के माध्यम से कॉलेजियम बनाया, यह देखते हुए कि 1991 से पहले सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती थी. टाइम्स नाउ समिट में बोलते हुए, मंत्री ने कहा कि भारत का संविधान सभी के लिए, विशेष रूप से सरकार के लिए एक "धार्मिक दस्तावेज" है. उन्होंने सवाल किया था, "कोई भी चीज जो केवल अदालतों या कुछ न्यायाधीशों द्वारा लिए गए फैसले के कारण संविधान से अलग है, आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि फैसला देश द्वारा समर्थित होगा."

नियुक्तियों में देरी पर, अदालत ने पूछा कि क्या राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) मस्टर पास नहीं कर रहा है, यही कारण है कि सरकार खुश नहीं है, और इसलिए नामों को मंजूरी नहीं दे रही है.  अदालत ने अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल से सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित उच्च न्यायपालिका के लिए नामों को मंजूरी देने में देरी पर केंद्र को अदालत की भावनाओं से अवगत कराने के लिए कहा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "जमीनी हकीकत यह है... नामों को मंजूरी नहीं दी जा रही है. सिस्टम कैसे काम करेगा? कुछ नाम पिछले डेढ़ साल से लंबित हैं." "अदालत ने ये भी कहा कि ऐसा नहीं हो सकता है कि आप नामों को रोक सकते हैं, यह पूरी प्रणाली को निराश करता है ... और कभी-कभी जब आप नियुक्ति करते हैं, तो आप सूची से कुछ नाम उठाते हैं और दूसरों को स्पष्ट नहीं करते हैं. आप जो करते हैं वह प्रभावी रूप से वरिष्ठता को बाधित करता है," 

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि कई सिफारिशें चार महीने से लंबित हैं, और समय सीमा पार कर चुकी हैं. इसमें कहा गया है कि समयसीमा का पालन करना होगा. शीर्ष अदालत ने केंद्र से इस मुद्दे को हल करने का अनुरोध करते हुए उल्लेख किया कि जिस वकील के नाम की सिफारिश की गई थी उसकी मृत्यु हो गई है जबकि दूसरे ने सहमति वापस ले ली है.

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