भाई-भाभी और चार बच्चों की हत्या के लिए फांसी की सजा पाए दोषी को SC ने किया बरी, जानें वजह

2017 में ट्रायल कोर्ट ने सिंह को दोषी ठहराया और गायत्री को बरी करते हुए उसे मौत की सजा सुनाई. 2019 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उसकी सजा को बरकरार रखा. इसके बाद गंभीर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins

2012 में  भाई, भाभी और उनके चार बच्चों की हत्या के लिए फांसी की सजा पाए दोषी को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बरी कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि  अभियोजन पक्ष का मामला अपूरणीय विसंगतियों से भरा हुआ था. दोषी करार गंभीर सिंह को बरी करते हुए जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि अभियोजन पक्ष के मामले में बहुत-सी खामियां हैं, जिन्हें ठीक करना असंभव है. अभियोजन पक्ष ने इसे साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया है, जिससे आरोपी के मकसद को स्थापित किया जा सके. दरअसल 2012 में, गंभीर सिंह को आगरा में अपनी पैतृक संपत्ति से संबंधित विवाद में अपने भाई सत्यभान, भाभी पुष्पा और उनके चार बच्चों की कथित हत्या के लिए गायत्री नामक एक महिला और एक नाबालिग के साथ गिरफ्तार किया गया था.

2017 में गंभीर सिंह को ठहराया गया था दोषी

2017 में ट्रायल कोर्ट ने सिंह को दोषी ठहराया और गायत्री को बरी करते हुए उसे मौत की सजा सुनाई. 2019 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उसकी सजा को बरकरार रखा. इसके बाद गंभीर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष सिंह के अपराध को साबित करने में विफल रहा, क्योंकि मकसद, आखिरी बार देखे गए सबूत और बरामदगी जैसे प्रमुख कारक साबित नहीं हुए.कोर्ट ने कहा कि हमें आगे लगता है कि ट्रायल का संचालन करने वाले सरकारी अभियोजक और ट्रायल कोर्ट के पीठासीन अधिकारी ने भी ट्रायल का संचालन करते समय पूरी तरह से लापरवाही बरती.

Advertisement

ये भी पढ़ें : सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को EVM डेटा डिलीट न करने के दिए आदेश, जानें क्या है पूरा मामला

Advertisement

गवाही को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बात

चार मासूम बच्चों सहित छह लोगों की जघन्य हत्याओं से जुड़े मामले में अभियोजन पक्ष के मुख्य गवाह की गवाही साक्ष्य अधिनियम की अनिवार्य प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं का पालन किए बिना, बेहद लापरवाही  से दर्ज की गई. कोर्ट ने पाया कि जांच अधिकारी बरामद वस्तुओं को FSL)  तक पहुंचने तक सुरक्षित रखने के बारे में कोई सबूत इकट्ठा करने में विफल रहा. जांच में इस लापरवाही ने सिंह के खिलाफ अभियोजन पक्ष की विफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया. अभियोजन पक्ष आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए तीन मुख्य परिस्थितियों - 'मकसद', 'अंतिम बार देखा गया' और 'बरामदगी' - में से एक भी साबित करने में विफल रहा है.

Advertisement

  FSL रिपोर्ट हथियारों पर पाए गए रक्त समूह की पुष्टि नहीं करती

कोर्ट ने आगे कहा कि यदि हथियारों की बरामदगी को स्वीकार भी कर लिया जाए तो भी FSL रिपोर्ट हथियारों पर पाए गए रक्त समूह की पुष्टि नहीं करती, जिससे बरामदगी अभियोजन पक्ष के मामले के लिए अप्रासंगिक हो जाती है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय अभियोजन पक्ष के मामले में इन असंभवताओं और कमियों पर विचार करने में विफल रहा. अदालत ने सिंह की दोषसिद्धि को रद्द कर दिया. इसने उसे सभी आरोपों से बरी कर दिया और उसे हिरासत से तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया, बशर्ते कि वह किसी अन्य मामले में वांछित न हो.

Featured Video Of The Day
Mahakumbh 2025 के इंतजामों पर Akhilesh Yadav ने उठाए सवाल तो बरसे CM Yogi | Hot Topic | UP News
Topics mentioned in this article