SBI ने EC को भेजा चुनावी बॉन्ड का ब्योरा, सोमवार को SC ने दिए थे सख्त आदेश

पीठ ने 15 फरवरी को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केंद्र की चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था और इसे ‘‘असंवैधानिक'' करार देते हुए निर्वाचन आयोग को चंदा देने वालों, चंदे के रूप में दी गई राशि और चंदा प्राप्तकर्ताओं का खुलासा करने का आदेश दिया था.

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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश के बाद भारतीय स्टेट बैंक ने सोमवार शाम भारत के चुनाव आयोग के पास चुनावी बॉन्ड के बारे में डेटा जमा कर दिया. बैंक के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक ने अदालत के आदेश के अनुपालन की पुष्टि करते हुए एक हलफनामा भी पेश किया, जैसा कि अदालत ने आदेश दिया था, डेटा शुक्रवार शाम 5 बजे तक पोल पैनल द्वारा एकत्रित और जारी किया जाएगा.

इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को चुनावी बॉन्ड के विवरण 12 मार्च तक निर्वाचन आयोग को देने का आदेश दिया था और एसबीआई को चेतावनी दी थी कि इसके निर्देशों एवं समय सीमा का पालन करने में यदि वो नाकाम रहता है तो ‘‘जानबूझ कर अवज्ञा'' करने को लेकर अदालत उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है.

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने विवरण का खुलासा करने के लिए समय सीमा 30 जून तक बढ़ाने संबंधी एसबीआई की अर्जी खारिज कर दी थी. शीर्ष अदालत ने निर्वाचन आयोग को भी एसबीआई द्वारा साझा की गई जानकारी 15 मार्च को शाम पांच बजे तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करने का निर्देश दिया है.

पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे.

इसी पीठ ने 15 फरवरी को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केंद्र की चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था और इसे ‘‘असंवैधानिक'' करार देते हुए निर्वाचन आयोग को चंदा देने वालों, चंदे के रूप में दी गई राशि और चंदा प्राप्तकर्ताओं का 13 मार्च तक खुलासा करने का आदेश दिया था.

लोकसभा चुनाव से पहले आए इस फैसले में न्यायालय ने चुनावी बॉण्ड योजना को तत्काल बंद करने तथा इस योजना के लिए अधिकृत वित्तीय संस्थान (एसबीआई) को 12 अप्रैल, 2019 से अब तक खरीदे गए चुनावी बॉण्ड का विस्तृत ब्योरा छह मार्च तक निर्वाचन आयोग को सौंपने का निर्देश दिया था.

विपक्षी नेताओं ने सोमवार को पारित शीर्ष अदालत के आदेश की सराहना की और कहा कि देश जल्द ही जान जाएगा कि किसने किस पार्टी को चुनावी बॉन्ड के जरिए कितना चंदा दिया है.

न्यायालय ने एसबीआई की अर्जी पर सुनवाई करते हुए ये आदेश पारित किया था. अर्जी में, राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए प्रत्येक चुनावी बॉन्ड के विवरण का खुलासा करने के लिए समय सीमा 30 जून तक बढ़ाए जाने का अनुरोध किया गया था.

पीठ उन अलग-अलग याचिकाओं पर भी सुनवाई कर रही है, जिनमें शीर्ष अदालत के 15 फरवरी के निर्देशों की कथित तौर पर जान-बूझकर अवज्ञा करने का लेकर एसबीआई के खिलाफ अवमानना कार्रवाई का अनुरोध किया गया है.

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पीठ ने कहा कि अर्जी में एसबीआई की दलीलों से पर्याप्त संकेत मिलता है कि न्यायालय ने जिस जानकारी का खुलासा करने का निर्देश दिया था, वह आसानी से उपलब्ध है.

उसने कहा, ‘‘उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर, 30 जून, 2024 तक चुनावी बॉन्ड की खरीद और उन्हें भुनाए जाने के विवरण को सार्वजनिक करने की समय सीमा बढ़ाने का अनुरोध करने वाली एसबीआई की याचिका खारिज की जाती है.''

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पीठ ने कहा, ‘‘एसबीआई को 12 मार्च को कामकाजी घंटों की समाप्ति तक विवरण का खुलासा करने का निर्देश दिया जाता है. जहां तक ईसीआई (भारत निर्वाचन आयोग) का संबंध है, हम निर्देश देते हैं कि ईसीआई जानकारी संकलित करेगा और 15 मार्च, 2024 को शाम पांच बजे तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर विवरण प्रकाशित करेगा.''

पीठ ने कहा कि एसबीआई शीर्ष अदालत द्वारा जारी निर्देशों के अनुपालन पर अपने अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक का हलफनामा दाखिल करे. सुनवाई के दौरान, पीठ ने एसबीआई की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे की दलीलों पर गौर किया कि विवरण एकत्र करने और उनका मिलान करने के लिए अधिक समय की आवश्यकता है, क्योंकि जानकारी इसकी शाखाओं में दो अलग-अलग कक्षों में रखी गई थी.

उन्होंने कहा कि अगर मिलान प्रक्रिया न करनी हो तो एसबीआई तीन सप्ताह के भीतर इस प्रक्रिया को पूरा कर सकता है.

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पीठ ने कहा, ‘‘हमने आपको एसबीआई को चंदा देने वालों और चंदा प्राप्त करने वालों के विवरण का अन्य जानकारी से मिलान करने का निर्देश नहीं दिया है. हमने आपको केवल खुलासा करने को कहा है.''

साल्वे ने कहा कि जब चुनावी बॉण्ड की खरीद की जा रही थी तब बैंक ने जानकारी को विभाजित कर दिया और नाम एक स्थान पर रखे गए जबकि रिकॉर्ड को दूसरी जगह रखा गया. एसबीआई की अर्जी का जिक्र करते हुए न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि याचिका में पैराग्राफ 10 में कहा गया है कि खरीददारों का विवरण एक सीलबंद लिफाफे में बैंक की मुख्य शाखा में रखा गया है. आपको महज सीलबंद लिफाफे को खोलना है और विवरण देना है.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘साल्वे, हमने 15 फरवरी, 2024 को फैसला दिया था. आज 11 मार्च है. पिछले 26 दिनों में आपने कितना मिलान किया है? पिछले 26 दिनों में आपने क्या कदम उठाए हैं, इस बारे में अर्जी में बिल्कुल ही कुछ नहीं कहा गया है.''

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उन्होंने कहा कि एसबीआई के एक सहायक महाप्रबंधक ने संविधान पीठ के आदेश में संशोधन के लिए अर्जी के समर्थन में हलफनामा दाखिल किया है.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘जब आप संविधान पीठ के आदेश में संशोधन का अनुरोध करते हैं तो यह एक गंभीर विषय है.'' साल्वे ने पीठ से कहा कि मिलान करने के संबंध में बैंक हलफनामा दाखिल कर सकता है. पीठ ने कहा, ‘‘इसका खुलासा हलफनामा में किया जाना था.''

न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि एसबीआई देश का नंबर एक बैंक है और न्यायालय उम्मीद करता है कि यह मुद्दे से निपटने में सक्षम होगा.

साल्वे ने जब यह दलील दी कि एसबीआई की ‘बड़ी चिंता' यह है कि वह इसमें गलती नहीं कर सकता, क्योंकि चंदा देने वाले उस पर मुकदमा दायर कर सकते हैं. इस पर, न्यायमूर्ति गवई ने उनसे कहा, ‘‘आप जो कुछ भी कर रहे हैं, उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के तहत कर रहे हैं. आप पर मुकदमा चलाने का सवाल ही कहां है?''

पीठ ने कहा, ‘‘यहां तक कि आपके एफएक्यू (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न), जो हमें सुनवाई के दौरान दिखाए गए थे, संकेत देते हैं कि प्रत्येक खरीद के लिए आपको एक अलग केवाईसी (अपने ग्राहक को जानो) रखना होगा. इसलिए, यह स्पष्ट है कि हर बार जब कोई खरीद करता है, तो केवाईसी अनिवार्य है.''

एसबीआई ने अपनी अर्जी में दलील दी थी कि ‘‘प्रत्येक कक्ष'' से जानकारी को पुन: प्राप्त करने और एक कक्ष की जानकारी को दूसरे कक्ष से मिलाने की प्रक्रिया में समय लगेगा.

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