शिमला नगर निगम न्यायालय के संजौली मस्जिद (Sanjauli Mosque) की शेष दो मंजिलों को गिराने के आदेश पर भारतीय जनता पार्टी के सांसद अनुराग ठाकुर का बयान आया है. जिसमें उन्होंने दावा किया कि ढांचे का निर्माण अवैध था और वक्फ बोर्ड भी भूमि के स्वामित्व को साबित करने वाले दस्तावेज नहीं दिखा सका. अनुराग ठाकुर ने धर्मशाला एयरपोर्ट पर संवाददाताओं से कहा, "वक्फ बोर्ड की मानसिकता यह है कि वे कभी भी दस्तावेज नहीं दिखाएंगे. शिमला के संजौली में जिस तरह से मस्जिद का निर्माण किया गया, वह अवैध था. जमीन के कोई दस्तावेज नहीं थे. कई महीनों के बाद भी दस्तावेज पेश नहीं किए जा सके, तो आदेश दिया गया कि सभी मंजिलें गिरा दी जाएंगी."
उन्होंने आगे दावा किया कि देशभर में ऐसी हजारों संपत्तियां हैं, जहां वक्फ बोर्ड ने बिना उचित दस्तावेजों के कब्जा कर लिया है. भाजपा सांसद ने कहा, "देश में ऐसे कई अन्य मामले हैं, जहां वक्फ ने बिना दस्तावेजों के जमीन पर कब्जा कर लिया है."
क्या है पूरा मामला
- शिमला की एक अदालत ने शनिवार को मस्जिद की शेष दो निचली मंजिलों को गिराने का आदेश दिया था.
- वक्फ बोर्ड द्वारा आवश्यक दस्तावेज पेश न किए जाने के कारण अदालत ने यह फैसला सुनाया.
- स्थानीय लोगों के एक वर्ग और हिंदू संगठनों ने संजौली मस्जिद को ध्वस्त करने का दबाव बनाने के लिए आंदोलन शुरू किया था.
- प्रदर्शनकारियों का दावा था कि ढांचा अनधिकृत है, लेकिन पिछले 15 वर्षों के दौरान निगम की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई.
- अदालत ने पांच अक्टूबर, 2024 को मस्जिद की ऊपर की तीन ‘‘अनधिकृत'' मंजिलों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था और वक्फ बोर्ड को शेष दो मंजिलों की स्वीकृत योजनाओं के दस्तावेज पेश करने को कहा था.
- मस्जिद को गिराने की मांग कर रहे स्थानीय लोगों का पक्ष रख रहे अधिवक्ता जगत पाल ने बताया कि वक्फ बोर्ड भूमि के स्वामित्व के दस्तावेज और स्वीकृत भवन योजना पेश करने में विफल रहा.
- पाल ने बताया कि इसके बाद नगर आयुक्त भूपेंद्र अत्री की अदालत ने मस्जिद को ध्वस्त करने का आदेश पारित किया.
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने नगर निगम आयुक्त को तीन महीने के भीतर (यह अवधि आठ मई को समाप्त हो रही थी) फैसला सुनाने का निर्देश दिया था. नगर निगम अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह आदेश पारित किया. वक्फ बोर्ड की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि मस्जिद 1947 से पहले अस्तित्व में थी और पुराने ढांचे को ध्वस्त करके नयी मस्जिद का निर्माण किया गया था. अदालत ने सवाल किया कि मस्जिद के पुनर्निर्माण के लिए नगर निगम से मंजूरी क्यों नहीं ली गई और नियमों का उल्लंघन कर निर्माण क्यों किया गया. नगर आयुक्त की अदालत के निर्देश पर तीन अनाधिकृत मंजिलों को गिराने का काम शुरू हो गया था और मस्जिद की एक छत, चौथी मंजिल के दो लेंटर और दो मंजिलों की दीवारें पहले ही हटा दी गई थीं और अब पूरी मस्जिद को गिराने के आदेश पारित किए गए हैं.