शिमला की संजौली मस्जिद मामले में एक बार फिर बड़ा फैसला आया है. जिला अदालत ने नगर निगम कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है और मस्जिद की अवैध तीन मंजिलें को तोड़ने के आदेश दिए हैं. जिला और सत्र जज प्रवीण गर्ग ने यह फैसला सुनाया है. ऐसे में नगर निगम आयुक्त कोर्ट के आदेश बरकरार रहेंगे.
दरअसल, हिमाचल मुस्लिम वेलफेयर कमेटी ने फैसले के खिलाफ जिला अदालत में याचिका दायर की थी. याचिका में कहा था कि नगर निगम कोर्ट का फैसला गलत है और संजौली मस्जिद कमेटी को वक्फ बोर्ड के अधिकृत नहीं किया था. उनकी इस अपील को जिला अदालत ने खारिज किया.
जिला अदालत के फैसले के बाद मुस्लिम वेलफेयर सोसायटी के वकील विश्व भूषण का कहा है कि हमारी अपील को कोर्ट ने खारिज किया है. उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट में अपील को लेकर विचार किया जाएगा.
हिमाचल प्रदेश वक्फ बोर्ड ने शुक्रवार को जिला अदालत में 18 साल पुराना एक दस्तावेज पेश किया, जिसमें लतीफ मोहम्मद को विवादित संजौली मस्जिद के लिए गठित समिति का अध्यक्ष बताया गया है.
इधर, संजौली लोकल रेजिडेंट के वकील का कहना है कि कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला है. अब हिमाचल हाईकोर्ट ने भी आदेश दिया है कि 20 दिसम्बर तक मामले का निपटारा कर नगर निगम हाईकोर्ट में रिपोर्ट करे. संजौली मस्जिद कमेटी अध्यक्ष मोहम्मद लतीफ का कहना है कि कोर्ट ने नगर निगम कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है. मुस्लिम वेलफेयर सोसायटी की अपील खारिज की है, हमने एक मस्जिद मंजिल की तोड़ दी है और दो मंजिल के लिए हमने हाईकोर्ट से मार्च तक का वक्त मांगा हैं.
क्या हैं संजौली मस्जिद विवाद
शिमला के संजौली मस्जिद का विवाद 2010 से चल रहा है. शिमला के नगर निगम से कई बार नोटिस भी हुए. 45 से ज्यादा मामले में पेशी हुई लेकिन मामले ने तूल तब पकड़ा जब कुछ मुस्लिम समुदाय के युवकों ने हिंदू समुदाय के युवक की पिटाई की और मुस्लिम युवक मस्जिद में छुप गए. इसके बाद हिंदू संगठनों ने प्रदर्शन किए. इसके बाद 5 अक्टूबर के दिन सुनवाई के बाद नगर निगम कमिश्नर की कोर्ट ने आदेश दिए और 21 दिसम्बर तक का वक्त इसकी 3 अवैध मंजिल तोड़ने के लिए दिया गया.
शिमला के संजौली इलाके में 11 सितंबर को एक मस्जिद के एक हिस्से को गिराने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन के दौरान 10 लोग घायल हो गए थे.