समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता मिलेगी या नहीं? आज आएगा 'सुप्रीम' फैसला

सप्रीम कोर्ट में आज पांच जजों की संविधान पीठ यह फैसला सुनाएगी कि समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता दी जा सकती है या नहीं.

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समलैंगिक विवाह पर आज सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा फैसला

नई दिल्ली:

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाएगा. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, संजय किशन कौल, रवींद्र भट्ट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने जोर देकर कहा कि केवल विशेष विवाह अधिनियम और विदेशी विवाह अधिनियम के कानूनी पहलू को देखा जा रहा है, गैर-विषमलैंगिक शादियों को मान्यता नहीं दे रही है. आज पांच जजों की संविधान पीठ यह फैसला सुनाएगी कि समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता दी जा सकती है या नहीं.

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11 मई को कोर्ट ने सुरक्षित रख लिया था फैसला

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 11 मई को सुनवाई पूरी कर इस पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था. अदालत ने इस मामले पर 10 दिन तक सुनवाई की थी जिसके बाद फैसला सुरक्षित रखा गया था. आज सुप्रीम कोर्ट 20 याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएगा. संविधान पीठ में CJI  डीवाई चंद्रचूड़,  जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं. 

बता दें कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाली मांग का केंद्र सरकार ने शुरू से आखिर तक विरोध किया है. सरकार का कहना है कि ये न सिर्फ केवल देश की सांस्कृतिक और नैतिक परंपरा के खिलाफ है बल्कि इसे मान्यता देने से पहले 28 कानूनों के 158 प्रावधानों में बदलाव करते हुए पर्सनल लॉ से भी छेड़छाड़ करनी पड़ेगी. 

जब कोर्ट ने सरकार से पूछा सवाल...

सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने एक बार यहां तक कह दिया था कि बिना कानूनी मान्यता के सरकार इन लोगों को राहत देने के लिए क्या कर सकती है? सरकार बैंक अकाउंट, विरासत, बीमा बच्चा गोद लेने आदि के लिए संसद में क्या कर सकती है? वहीं केंद्र सरकार ने भी कहा था कि वो कैबिनेट सचिव की निगरानी में विशेषज्ञों की समिति बनाकर समलैंगिकों की समस्याओं पर विचार करने को तैयार है. 

 केंद्र सरकार ने दलील दी थी कि समलैंगिक शादी एक शहरी संभ्रांत अवधारणा है, जो  देश के सामाजिक लोकाचार से बहुत ज्यादा दूर है. विषम लैंगिक संघ से परे विवाह की अवधारणा का विस्तार एक नई सामाजिक संस्था बनाने के समान है. अदालत नहीं बल्कि केवल संसद ही व्यापक विचारों और सभी ग्रामीण, अर्ध-ग्रामीण और शहरी आबादी की आवाज, धार्मिक संप्रदायों के विचारों और व्यक्तिगत कानूनों के साथ विवाह के क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले रीति-रिवाजों को ध्यान में रखते हुए निर्णय ले सकती है. 

समलैंगिक विवाहों को मान्यता देना आसान नहीं-केंद्र

केंद्र सरकार ने कहा था कि विवाह एक संस्था है, जिसको बनाया और मान्यता दी जा सकती है और कानूनी पवित्रता प्रदान की जा सकती है और इसको केवल सक्षम विधायिका द्वारा तैयार किया जा सकता है. साथ ही सरकार ने कहा था कि समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने वाली संवैधानिक घोषणा इतनी आसान नहीं है. इन शादियों को मान्यता देने के लिए संविधान, IPC , CrPC, CPC  और 28 अन्य कानूनों के 158 प्रावधानों में संशोधन करने होंगे.

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