कांग्रेस नेता सचिन पायलट (Sachin Pilot) इस साल के आखिर में राजस्थान (Rajasthan) में होने वाले चुनावों से पहले अकेले ही चुनाव प्रचार में जुटे हैं. ऐसे में पायलट अपनी ही सरकार और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) पर निशाना साधते हुए पार्टी की आशंकाओं की पुष्टि करते नजर आए. सचिन पायलट जाट समुदाय और किसानों के गढ़ नागौर में चुनाव प्रचार कर रहे थे, जब उन्होंने राजस्थान में हाल ही में शिक्षकों के लिए सामान्य ज्ञान परीक्षा के लीक का मुद्दा उठाया.
राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री ने एक रैली में कहा, "कभी प्रश्न पत्र लीक हो जाते हैं, कभी परीक्षा रद्द कर दी जाती है ... यह बहुत दर्दनाक और परेशान करने वाला होता है ... बच्चे, उनके माता-पिता शिक्षा के लिए कितनी परेशानी झेलते हैं. छात्र अपनी परीक्षा की तैयारी के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं, "
पायलट ने कहा, "मुझे उम्मीद है कि सरकार छोटे-मोटे दलालों के बजाय बड़ी मछलियों के पीछे जाएगी."
कांग्रेस नेता की 20 जनवरी तक व्यापक पहुंच को लेकर उनकी पार्टी को चिंता में डाल दिया है और राजस्थान में पार्टी के दो शीर्ष नेताओं के नेतृत्व को लेकर अनसुलझे झगड़े को ताजा कर दिया है.
पायलट के करीबी सूत्रों का कहना है कि उनके जनसंपर्क कार्यक्रम का उद्देश्य कांग्रेस को मजबूत करना और राजस्थान में अपनी राजनीतिक जगह बनाए रखना है. सूत्रों ने कहा कि यही कारण है कि वह जाट और किसानों के गढ़ पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जो कांग्रेस का परंपरागत आधार है.
जानकारों का कहना है कि राजस्थान की राजनीति में प्रासंगिक बने रहने के लिए यह पायलट की राजनीतिक गणना है क्योंकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा जमीनी स्तर के संगठन के काम में व्यस्त हैं और मुख्यमंत्री आखिरी बजट की तैयारी में जुटे हैं.
पायलट का अभियान गहलोत के एनडीटीवी को दिए विस्फोटक इंटरव्यू के हफ्तों बाद आया है, जिसमें गहलोत ने पायलट को 'गद्दार' बताया था और कहा था कि वो सीएम नहीं बनेंगे.
गहलोत ने अपने युवा प्रतिद्वंद्वी को लेकर कहा था, "एक गद्दार (देशद्रोही) मुख्यमंत्री नहीं हो सकता. हाईकमान सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बना सकता है... एक आदमी जिसके पास 10 विधायक नहीं हैं, जिसने विद्रोह किया. उसने पार्टी को धोखा दिया, वह देशद्रोही है."
गहलोत-पायलट गतिरोध तब शुरू हुआ जब 2018 में कांग्रेस की राजस्थान में जीत के बाद दोनों ने मुख्यमंत्री के पद के लिए प्रतिस्पर्धा हुई और यह 2020 में चरम पर पहुंच गई. पायलट ने उनका समर्थन करने वाले 20 विधायकों के साथ विद्रोह कर दिया और हफ्तों तक दिल्ली में डेरा डाले रखा.
गांधी परिवार द्वारा पायलट को बदलाव का आश्वासन देने के बाद विद्रोह खत्म हुआ, हालांकि वो आश्वासन कभी भी साकार नहीं हुआ. साथ ही गहलोत ने कुछ भी देने से इनकार कर दिया. विवाद तब से बिना किसी समाधान के जारी है.
सूत्रों का कहना है कि सचिन पायलट ने चुनाव से पहले पार्टी को मजबूत करने के लिए भारत जोड़ो यात्रा के दौरान इस जनसंपर्क के लिए राहुल गांधी से अनुमति ली थी.
नागौर, जहां पायलट आज बोल रहे थे, भाजपा के पूर्व सहयोगी हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) का घरेलू मैदान है. बेनीवाल ने विवादास्पद कृषि कानून को लेकर भाजपा के साथ अपना गठबंधन छोड़ दिया और माना जाता है कि उन्होंने पारंपरिक रूप से कांग्रेस को चुनने वाले जाट वोट बैंक में पैठ बना ली है.
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