''बस से 10 घंटे का सफर, फायरिंग के बीच रात में 6 KM पैदल यात्रा..'': यूक्रेन से भारत लौटी मेडिकल छात्रा ने सुनाई आपबीती

यूक्रेन के विन्नित्सिया शहर में रहकर MBBS की पढ़ाई करने वाली अंशिका ने कहा कि उसने तो आस ही छोड़ दी थी कि वह अब कभी अपने देश भारत वापस आ पाएगी.

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रूस के हमले के कारण कई भारतीय स्‍टूडेंट यूक्रेन में फंसे हुए हैं (प्रतीकात्‍मक फोटो )
शाहजहांपुर (उप्र):

Russia Ukraine War:युद्धग्रस्‍त यूक्रेन से सुरक्षित शाहजहांपुर आई मेडिकल की एक छात्रा ने कहा है कि अब उसे सायरन की आवाज से काफी डर लगने लगा है और एक समय तो उसने देश वापस आने की तो आस ही छोड़ दी थी. यूक्रेन के विन्नित्सिया शहर में रहकर MBBS की पढ़ाई करने वाली अंशिका ने कहा कि उसने तो आस ही छोड़ दी थी कि वह अब कभी अपने देश भारत वापस आ पाएगी, अपने माता-पिता के सीने से लग पाएगी क्योंकि स्थितियां इतनी जटिल थीं कि साथ रह रहे बच्चे ही ढांढस बंधाकर एक-दूसरे का दर्द बांट रहे थे.अंशिका बताती हैं कि 26 फरवरी को वह विन्नित्सिया से चेर्नित्सि के लिए 50 बच्चों के समूह के साथ बस से निकलीं और 10 घंटे के सफर के बाद रात में वहां पहुंचीं. उन्होंने बताया कि इसके बाद रात में ही 6 KM पैदल चलकर बच्चों का यह समूह रोमानिया की सीमा की ओर चल दिया. उन्होंने बताया कि रातभर खौफ का माहौल था और गोली चलने की आवाज बच्चों को भयभीत कर रही थी.

उन्होंने बताया कि बच्चे जब पैदल रोमानिया सीमा की ओर जा रहे थे तब प्रार्थना कर रहे थे कि वे इस स्थिति से निकल सकें. उन्होंने बताया कि उस दौरान भूख कोसों दूर थी, केवल सीमा पहुंचने के बाद यूक्रेन से निकलने की जल्दबाजी थी. अंशिका ने बताया कि रास्ते में कई बच्चे गिर पड़े, कई को चोट लग गई और जब चल नहीं पाए तो एक-दूसरे के सहारे से सीमा पर पहुंचे. वे कहती हैं कि सीमा पर पहुंचकर हम लोग थक गए थे परंतु वहां खड़े अधिकारी टर्नोफिल तथा इवानो (यूक्रेन के शहर) से आए बच्चों को पहले सीमा पार करा रहे थे. इसी बीच बच्चों को पंक्ति में खड़ा किया गया तभी पीछे से आए धक्के में बच्चे गिर गए जिसमें एक लड़की घायल भी हो गई. उन्होंने बताया कि इसी दौरान सीमा के उधर खड़े रोमानिया की सेना ने हवाई फायरिंग शुरू कर दी.

उन्होंने बताया कि उन्हें रोमानिया में प्रवेश मिल गया, इसके बाद रोमानिया में उन्हें खाना-पानी तथा कंबल मिल गया और उनका व्यवहार काफी ठीक रहा. उन्होंने कहा, ‘‘यूक्रेन में जब सायरन बजता था. तब हम लोग कंबल लेकर बंकर में चले जाते थे और जब बाहर निकलने का सायरन बजता था तभी बाहर आते थे. इस दौरान हम लोगों की सांसें अटकी रहती थी.''अंशिका के पिता अमीर सिंह यादव एक इंटर कॉलेज के प्राचार्य हैं. उन्होंने बताया कि उनकी बेटी की उड़ान दिल्ली आई थी और वह अपनी पत्नी के साथ उसे लेने गए थे. उन्होंने बताया कि बेटी ने जैसे ही उन लोगों को देखा दौड़कर वह मां के सीने लग गई और काफी देर तक वह उन लोगों को देखती ही रही.

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