दुनिया की महापंचायत में नए सरपंच की एंट्री

G20 में अफ्रीकन यूनियन को शामिल करके भारत ने समर्थक देशों का एक व्यापक नेटवर्क बनाया है. आज भारत ग्लोबल साउथ का लीडर है. इंडिया मिडिल ईस्ट यूरोप इकनॉमिक कॉरिडोर की पहल के कारण पश्चिमी एशिया और यूरोप के ढेर सारे देश भारत के मुरीद हो रहे हैं.

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नई दिल्ली:

मोदी रूस के बाद यूक्रेन गए. अमेरिका चुप. रूस चुप. चीन के पास चाल नहीं. आखिर शांति की अपील, गुट निरपेक्ष आंदोलन के इतिहास वाले देश की निरपेक्ष भाव से की गई अपील, पर कोई क्यों आपत्ति जताए, और कैसे जताए. कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर. भारत ऐसा ही है. जहां अमेरिका हारा हुआ हाथ मल रहा है. जहां चीन की चौधराहट काम नहीं आ रही. वहां भारत ने पहल की है. विश्व शांति की पहल. एक युद्ध है जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेता. दोनों देशों के लाखों तबाह हो चुके. हजारों मारे गए. पूरी दुनिया को नुकसान हो रहा है. भूख, गरीबी, अर्थव्यवस्थाएं अस्थिर. दो विश्व युद्ध और उसकी विभीषिकाएं देख चुकी दुनिया सकपकाई ख़ामोश है. ऐसे में भारत ने अपने कंधों पर बीड़ा उठाया है. गजब की बात ये है कि भारत दोनों दुश्मनों को गले मिलाता है. इस स्थिति में कोई नहीं. भारत सबका दोस्त है.

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जेनेवा-लंदन-बीजिंग नहीं, दिल्ली

रूस-यूक्रेन युद्ध अब अहम की लड़ाई बन चुकी है. यूक्रेन पर रूस ने फिर से बड़ा हमला कर दिया है. रूस पीछे हटने को तैयार नहीं, यूक्रेन हार नहीं मानेगा. लेकिन सच्चाई ये है कि इस युद्ध में सब फंसे हैं. रूस फंसा हुआ है. यूक्रेन फंसा हुआ है. दोनों इस युद्ध से निकलना चाहते हैं. सुपर पावर रूस की राजधानी तक हमला हो चुका. सन 1943 के बाद पहली बार कुर्स्क पर हमला हुआ है. रूस के लिए इससे ज्यादा बेइज्जती की बात क्या हो सकती है? अमेरिका में ट्रंप जीते तो यूक्रेन को कितनी मदद जारी रहेगी, इसपर सवाल हैं. लिहाजा दोनों देश चाहते हैं युद्ध से सम्मानजनक तरीके से बाहर निकल जाएं. ऐसे में पीएम मोदी ने पुतिन और जेलेंस्की का हाथ पकड़ा है और उन्हें सही रास्ता दिखाने की कोशिश की है. 

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कुछ संकेत अच्छे मिले हैं. कीव में भारतीय पत्रकारों से यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने बताया कि उन्होंने प्रधान मंत्री मोदी से कहा है कि शांति शिखर सम्मेलन की मेजबानी भारत में की जा सकती है. ये बड़ी बात है. जेनेवा या लंदन नहीं, अब दिल्ली की बात हो रही है.

भारत ग्लोबल प्लेयर नहीं, ग्लोबल पावर 

अगर ये कोशिश कामयाब रही तो भारत एक ग्लोबल प्लेयर नहीं नए ग्लोबल पावर के रूप में उभरेगा. इस कोशिश के कामयाब होने की संभावना बनती है क्योंकि ये न सिर्फ रूस-यूक्रेन की जरूरत है बल्कि दुनिया को इस शांति की सख्त जरूरत है. ये अकेला युद्ध नहीं है. यूरोप में रूस-यूक्रेन तो वेस्ट एशिया में इजरायल, फिलिस्तीन, लेबनान और ईरान भिड़े हैं. सोचकर भी ताज्जुब होता है कि इस जमाने में पारंपरिक युद्ध इतने दिनों से चल रहे हैं. खुद को दुनिया की पंचायत का सरपंच बताने वाला अमेरिका नाकाम है. सरपंचों की महापंचायत यूएन नाकाम है. वेस्ट एशिया में भी भारत की ऐसी स्थिति है कि वो सारे दुश्मनों से बात कर सकता है. इजरायल उसका हमराज है. फिलिस्तीन से उसे हमदर्दी है. ईरान से आर्थिक-सांस्कृतिक दोनों मोर्चों पर हमकदम है. लेकिन भारत की बात कोई क्यों मानेगा?

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भारत का इतिहास 

भारत एक सर्वमान्य ग्लोबल पावर बन सकता है, इसके बड़े ठोस कारण हैं. आज से 71 साल पहले कोरियाई युद्ध में भारत ऐसी भूमिका निभा चुका है. जब चीन, रूस औऱ अमेरिका कोरिया की जमीन पर उलझे थे तो भारत ने शांति की पहल की औऱ यूएन ने उसे स्वीकार किया. शांति का बीज बोया, जिससे शांति वृक्ष उगा. भारत की मंशा पर किसी को संदेह नहीं. अमेरिका की तरह भारत के दामन पर 'इराक' का दाग नहीं है. चीन की तरफ ताइवान का मसला नहीं है और न ही रूस की तरह क्रीमिया-जॉर्जिया का काला इतिहास. भारत ने कभी किसी देश की सीमाओं का अतिक्रमण नहीं किया. चाहे जिसका भी संकट हो, उसके साथ खड़ा हुआ. लेकिन कमजोर देश से शांति की अपील आए तो अनसुनी हो सकती है. यहीं आता है भारत का भविष्य.

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भारत का भविष्य

G20 में अफ्रीकन यूनियन को शामिल करके भारत ने समर्थक देशों का एक व्यापक नेटवर्क बनाया है. आज भारत ग्लोबल साउथ का लीडर है. इंडिया मिडिल ईस्ट यूरोप इकनॉमिक कॉरिडोर की पहल के कारण पश्चिमी एशिया और यूरोप के ढेर सारे देश भारत के मुरीद हो रहे हैं.

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अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भारत लगातार ताकतवर हो रहा है. भारत  मिशन 2047 पर जुटा है. कोविड से लेकर वैश्विक मंदी तक में भारत दुनिया को ध्रुव तारा नजर आता है. कोविड के बाद जब दिग्गज देशों की इकनॉमी जमीन पर आ गई तो भारत में ग्रोथ की उड़ान दिखी. अब भारत की सामरिक स्थिति भी बदली है. रूस और अमेरिका जानते हैं कि अगर उन्होंने मुंह मोड़ भी लिया तो हम सक्षम हैं. अमेरिका या रूस के बीच चुनाव करने का युगांत हो चुका. नया युग भारत का है. अब वो किसी एक देश पर हथियार के लिए मोहताज नहीं. भारत अब हथियार अमेरिका से लेता है, रूस से लेता है, जर्मनी से लेता है, फ्रांस से लेता है. और इसके साथ भारत को खुद को आत्मनिर्भर बना रहा है. 85 देशों को हथियार निर्यात करता है.

भारत को अब सुनना पड़ेगा

जब भारत ने रूस से तेल लिया, और दुनिया के दबंगों ने सवाल पूछा तो हमने किसी की ना सुनी. सिर्फ अपना हित देखा और दुनिया को चुप होना पड़ा. गुजरे जमाने के आर्थिक प्रतिबंध जैसा कुछ करने की हिमाकत किसी ने नहीं की. आगे हम सेमिकंडक्टर बनाएंगे, स्पेस में और ऊंची छलांग लगाएंगे, हर सेक्टर में चैंपियन बनने की योजना है.

कथित तौर पर दुनिया के सबसे ताकतवर लोकतंत्र अमेरिका के अंदर लगातार दो चुनावों से जो हो रहा है, उससे कमजोर-कन्फ्यूज लीडरशिप की किरकिरी विश्व बिरादरी में हुई है. अरब में उसकी कमजोरी उजागर हुई है. पुतिन की हेकड़ी निकल गई है. चीन की अर्थव्यवस्था और मंशा पर से दुनिया का भरोसा उठ रहा है, उसने जिससे दोस्ती किया, उसका बेड़ा गर्क किया है. 

कुल मिलाकर भारत एक ऐसे मुकाम पर खड़ा है, जहां वो वर्ल्ड ऑर्डर में अहम भूमिका निभाने को तैयार है. अब भारत को सुनना ही पड़ेगा. दुनिया की जरूरत है. युद्धों और घोर अव्यवस्था से घिरी धरती की ये हसरत है. गांधी की राह और अमन की चाह वाले भारत को सुनना ही पड़ेगा. मजबूत लीडर अगर शांति प्रिय होगा तो पूरी दुनिया के लिए अच्छा होगा. रंगमंच खाली पड़ा है, परफॉर्मर भारत की एंट्री हो रही है.

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