"कर्नाटक में बांटी जा रही है 'रेवड़ियां'..." राज्यसभा सांसद लहर सिंह ने सदन में उठाया मुद्दा

सांसद लहर सिंह ने सदन में इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि कर्नाटक में सरकार सत्ता में आने के बाद अपने वादों को पूरा करने के लिए मुफ्त में रेवड़ियां बांटने में लगी है. जिसका असर राज्य सरकार के बजट पर पड़ रहा है.

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राज्यसभा सांसद लहर सिंह ने सदन में उठाया मुफ्त में रेवड़ियां बांटने का मुद्दा
नई दिल्ली:

मानसून सत्र की शुरुआत से ही संसद के दोनों सदनों में मणिपुर हिंसा को लेकर गतिरोध जारी है. बुधवार को भी सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जारी गतिरोध को देखते हुए सदन की कार्यवाही को स्थगित करना पड़ा. सदन में चल रहे हंगामे के बीच राज्यसभा सांसद लहर सिंह ने बुधवार को कर्नाटक सरकार द्वारा जन कल्याण के नाम पर शुरू की गई की योजनाओं पर सवाल उठाते हुए इन्हें मुफ्त में दी जा रही रेवड़ी बताया है. 

राज्य के बजट पर पड़ता है असर

सांसद लहर सिंह ने सदन में इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि कर्नाटक में सरकार सत्ता में आने के बाद अपने वादों को पूरा करने के लिए मुफ्त में रेवड़ियां बांटने में लगी है. जिसका असर राज्य सरकार के बजट पर पड़ रहा है. उन्होंने आगे कहा कि लोगों को मुफ्त में रेवड़ियां देने का खामियाजा भविष्य में पूरे राज्य को भुगतना होगा. और इससे राज्य के विकास की रफ्तार में कमी आएगी. उन्होंने सदन में मांग की कि कर्नाटक सरकार के इन फैसलों पर ध्यान दिया जाना चाहिए. 

आर्थिक स्थिरता भी प्रभावित होती है

उन्होंने सदन में कहा कि सर, मैं एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं  जिसका देश की व्यापक आर्थिक स्थिरता पर गंभीर प्रभाव पड़ता है. बीते कुछ समय में चुनाव जीतने के लिए प्रतिस्पर्धात्मक रूप से मुफ्त उपहारों की घोषणा करने की संस्कृति राज्यों के वित्तीय स्वास्थ्य पर एक बड़ा जोखिम पैदा करती है. 

मुफ्त सब्सिडी से उचित सब्सिडी के बीच अंतर करने की आवश्यकता है

अप्रैल 2023 में भारत के CAG ने कहा कि जबकि हम वंचितों की मदद के लिए सब्सिडी के महत्व को समझते हैं, ऐसी सब्सिडी के लिए पारदर्शी रूप से हिसाब-किताब करना आवश्यक है और हमें मुफ्त सब्सिडी से उचित सब्सिडी के बीच अंतर करने की आवश्यकता है. जो वित्तीय रूप से सही नहीं है. 

सांसद लहर सिंह ने अपने संबोधन में आगे कहा कि सर, ब्राजील, श्रीलंका जैसे देशों में जो हुआ उसका उदाहरण देते हुए सुप्रीम कोर्ट, ईसीआई, वित्त आयोग, आरबीआई, सीएजी जैसी संस्थाएं राज्यों में राजकोषीय फिजूलखर्ची के दुष्परिणामों के बारे में आगाह करती रही हैं. 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष ने भी आगाह किया था कि इस तरह की योजनाओं से आपके विकास की रफ्तार कम होती है. 
 

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