संजय राउत की अवैध गिरफ्तारी किसके इशारे पर?

क्या अब भी संदेह है कि जांच एजेंसियों का राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है? विपक्ष के नेताओं को डराया जा रहा है, उन्हें जेल में बंद किया जा रहा है.

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क्या अब भी संदेह है कि जांच एजेंसियों का राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है? विपक्ष के नेताओं को डराया जा रहा है, उन्हें जेल में बंद किया जा रहा है. ये सब अब केवल आरोप नहीं हैं.मनी लौंड्रिंग के लिए बनी विशेष अदालत ने संजय राउत के केस में ज़मानत देते हुए जो कहा है, उससे साफ है कि विपक्ष को कमज़ोर करने, डराने धमकाने के लिए जांच एजेंसियों का इस्तेमाल हो रहा है. स्पेशल जज एम जी देशपांडे ने अपने फैसले में कहा है कि संजय राउत को अवैध रुप से गिरफ्तार किया गया है. क्या एक सांसद को अवैध रुप से गिरफ्तार किया जा सकता है? संजय राउत 101 दिनों से जेल में थे, उनकी गिरफ्तारी पर अब आप गोदी मीडिया का कवरेज़ निकाल कर देखिए तो आज के हालात से डर लगेगा कि किसी को भी अवैध रुप से उठाकर महीनों हफ्तों के लिए जेल में डाला जा सकता है. आज संजय राउत को ज़मानत मिल गई यही नहीं हाईकोर्ट ने भी संजय राउत की ज़मानत पर आज स्टे देने से इंकार कर दिया. 

जब संजय राउत ने स्पेशल जज एम जी देशपांडे के सामने हाथ जोड़कर कहा कि मैं आभारी हूं तब जज देशपांडे ने कहा कि आभारी की बात नही है. हम अपना फैसला मेरिट पर देते हैं जहां मेरिट नही होता हम उस पर फैसला नही देते. इस फैसले के खिलाफ ED ने बांबे हाई कोर्ट में अपील कर दी. संजय राउत को आज ही रिहा किया गया और उनके समर्थकों ने जश्न मनाया. लेकिन अदालत के फैसले में जो बात कही गई है वह कहीं ज्यादा चिन्ता की बात है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि इस मामले में दो अभियुक्तों को अवैध तरीके से गिरफ़्तार किया है. जज देशपांडे ने कहा है कि ग़लत इंसाफ़ न हो, यह भी एक जज का दायित्व होता है. किसी निर्दोष को जेल नहीं होनी चाहिए. फैसले के 153 नंबर प्वाइंट में कहते हैं कि मैं मानता हूं कि दोनों ही अभियुक्त को अवैध रुप से गिरफ्तार किया गया था. ED ने दोनों के साथ जिस तरह से भेदभाव किया है, दोनों को बराबरी का हक मिलना चाहिए. ED ने इस केस के मुख्य अभियुक्तों को गिरफ्तार नहीं किया है. प्रवीण राउत को पहले ज़मानत पर रिहा किया गया था. कोर्ट के सामने ऐसा कोई साक्ष्य पेश नहीं किया गया कि वे ज़मानत की शर्तों को तोड़ रहे ते. उसी तरह संजय राउत के खिलाफ ED की जितनी दलीलें थीं वो टिक नहीं रही थीं. कोर्ट ने कहा कि यह केस दीवानी विवाद का है लेकिन इसे मनी लॉन्डरिंग या आर्थिक अपराध बना देने से एक निर्दोष आदमी काफ़ी बुरी स्थिति में आ जाता है. तो क्या यह साफ नहीं होता कि संजय राउत को किसी तरह जेल में रखना था इसलिए उनके खिलाफ मामला बनाया गया और अवैध रुप से गिरफ्तार किया गया? कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि प्रवीण राउत को इस मामले में गिरफ्तार किया गया जो पूरी तरह दीवानी मामला था लेकिन संजय राउत को तो बिना कारण ही गिरफ्तार कर लिया गया. अदालत की यह जवाबदेही है कि वह सत्य का पता लगाए. 

तो राज्य सभा के सांसद को बिना कारण गिरफ्तार किया जाता है, अवैध रुप से गिरफ्तार किया जाता है, इस पर कौन जवाब देगा? क्या प्रधानमंत्री जवाब देंगे? क्या कानून मंत्री जवाब देंगे?जज देशपांडे ने कहा है कि किसी को गिरफ्तार करने की शक्ति का इस्तेमाल बहुत सोच समझ कर किया जाना चाहिए. ED ने दोनों को जो गिरफ्तार किया है वह अवैध है. दोनों अभियुक्तों को न्यायिक हिरासत में नहीं रखा जा सकता है. तो संजय राउत को अवैध रुप से गिरफ्तार किया गया. क्या आपको याद है कि जब डॉ कफील खान को गिरफ्तार किया गया उन पर NSA लगा दिया गया तब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या कहा था? यही कहा था न कि डॉ ख़ान पर अवैध रुप से NSA लगाया गया था. क्या आप अब भी नहीं देख पा रहे हैं कि किसी पर अवैध रुप से NSA लग रहा है, किसी को अवैध रुप से गिरफ्तार किया गया है. आखिर किस बात के लिए संजय राउत को 101 दिनों के लिए जेल में रखा गया? क्या आज गोदी मीडिया जांच एजेंसियों पर सवाल उठाएगा या क्या देश को बताया जाएगा कि किस तरह एजेंसियों के सहारे लोगों को जेल में डाला जा रहा है, ताकि उन्हें पूछताछ के नाम पर हफ्तों और महीनों जेल में रखा जा सके… संजय राउत को ज़मानत के ख़िलाफ़ ED तुरंत हाइकोर्ट गई लेकिन हाइकोर्ट ने ज़मानत पर स्टे देने से इनकार कर दिया… 

इस फैसले को पढ़िए, पता चलेगा कि ED की दलीलें किस तरह कोर्ट में ध्वस्त होती चली गई हैं. हम सबके सामने अगर अवैध रुप से किसी सांसद को गिरफ्तार कर 101 दिनों के लिए जेल में डाला जाता है तब फिर जेल जाने से कौन बचा है इस देश में. फिर क्यों न इस आरोप में दम नज़र आए कि जांच एजेंसियों का डर दिखा कर सरकार गिराई जा रही है. इस देश में राज्य सभा सांसद को अवैध रुप से गिरफ्तार किया जा रहा है, क्या राज्य सभा के सभापति और उपसभापति इस गिरफ्तारी का संज्ञान लेंगे? क्या अब भी आप इस भरम में रहेंग कि जांच एजेंसियां विपक्ष के भ्रष्टाचार को दूर कर रही हैं ? क्या आप नहीं देख पा रहे हैं कि इस लोकतंत्र से विपक्ष को ग़ायब किया जा रहा है? यह अपवाद नहीं है, आज ही सपा नेता आज़म ख़ान के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही थी. ग़ौर कीजिए अदालत ने क्या कहा. आज़म ख़ान एक मामले में दोषी पाए गए हैं जिसके बाद उनकी सदस्यता रद्द  कर दी

उनके वकील पी चिदंबरम ने अदालत से कहा कि निचली अदालत के फैसले के अगले ही दिन आज़म ख़ान को अयोग्य घोषित कर उनकी सीट खाली घोषित कर दी गई और 10 नवंबर को उप चुनाव की प्रक्रिया की तारीख तय कर दी गई, जबकि एक दूसरे  विधायक को 11 अक्तूबर के दिन सज़ा होती है मगर उनकी सदस्यता इतनी जल्दी रद्द नहीं की जाती है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी विधानसभा के सचिव से पूछा है कि खतौली के एक विधायक को जब 11 अक्टूबर को सजा हुई तो आप 8 नवंबर तक क्यों बैठे रहे? आप आजम केस में इतनी जल्दबाजी क्यों दिखा रहे हैं?आप इस तरह पिक एंड चूज नहीं कर सकते. अगर अदालतें इस तरह से नज़र न रखें तो क्या आप समझ पा रहे हैं कि इस वक्त तक देश में क्या हो गया होता? एक पार्टी के विधायक की सदस्या रद्द करने के लिए कई दिनों तक इंतज़ार किया जाता है और आज़म ख़ान के मामले में अगले दिन उनकी सदस्यता रद्द कर दी जाती है? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार, चुनाव आयोग और विधानसभा सेक्रेटरी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.आज मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आज़म ख़ान को समय मिलना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश ने पूछा यूपी विधानसभा के सचिव पर सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या हर मामले में अगले दिन अयोग्यता करार दे दी जाती है और उपचुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाती है?अब सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा है कि क्या वो आजम खां मामले में उपचुनाव की अधिसूचना को 72 घंटे टाल सकता है ? 

संजय राउत से लेकर आज़म ख़ान के मामले में आपने देख लिया. अगर यही हाल रहा तो इस देश में विपक्ष कैसे बचेगा? विपक्ष ही नहीं आम आदमी के अस्तित्व का भी सवाल है. यह बहुत डरावना है. ऐसा पहली बार नही हुआ है.  भारत के मुख्य न्यायधीश के तौर पर डी वाई चंद्रचूड़ ने आज से अपना कार्यभार संभाल लिया. तमिलनाडु सरकार एक सफाई कर्मचारी के खिलाफ अपील में कोर्ट आई थी. मुख्य न्यायाधीश ने कहा सरकार क  फटकार लगा दी और कहा कि ये क्या हो रहा है. सरकार एक सफाईकर्मी के खिलाफ अपील में यहां तक आई है? इतनी शक्तिशाली सरकार और एक सफाई कर्मचारी के खिलाफ यहां तक आ गई गई?  सॉरी, डिसमिस. अपील खारिज हो गई. 

ऐसे मामलों में सरकार के रवैये पर ग़ौर कीजिए, यह अच्छा नहीं है कि खुलेआम लोग अवैध रुप से गिरफ्तार किए जाएं. नोटबंदी पर भी सरकार ने हलफनामा देने में देरी की तो आज फटकार लगी है. क्यों इतना वक्त लग रहा है?आज जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना की संवैधानिक पीठ सुनवाई कर रही थी. यह मामला 16 दिसंबर 2016 को संविधान पीठ के हवाले किया गया था. क्या इतने दिनों तक सरकार को अपने सारे रिकार्ड खुद से तैयार नहीं रखने चाहिए थे? पांच साल बाद अगर सरकार यह कहे कि हलफनामा दायर करने के लिए और समय चाहिए तो इसका क्या मतलब है? रिज़र्व बैंक ने कहा कि हम दिन रात काम कर रहे हैं. अगर इतना काम कर रहे है तब तो हलफनामा समय पर तैयार हो जाना चाहिए.जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर ने एक सप्ताह का समय तो दिया लेकिन नाराज़गी भी जताई. संविधान पीठ ने कहा कि इस तरह से पीठ की सुनवाई स्थगित नहीं की जा सकती है. रिज़र्व बैंक हलफनामा दायर करने में विफल रहा है.

संविधान पीठ ने केंद्र और रिज़र्व बैंक से नोटबंदी के फैसले पर जवाब मांगा है. 12 अक्तूबर को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि 7 नवंबर 2016 को RBI को जो पत्र लिखा गया था और उसके अगले दिन जब नोटबंदी हुई थी, उसकी फाइलें तैयार रखी जाएं. दो दिनों के दौरान फैसले से संबंधित फाइल क्या एक महीने में भी तैयार नहीं हो सकी? 12 अक्तूबर को केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- हम तैयार हैं, कभी भी सुनवाई कर सकते हैं तब फिर आज हलफनामा क्यों नहीं दिया गया? सुप्रीम कोर्ट में नोटबंदी के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट को भविष्य के लिए कानून तय नहीं करना चाहिए कि क्या RBI एक्ट के तहत नोटबंदी की जा सकती है ? नोटबंदी के लिए अलग कानून की जरूरत है या नहीं जिस तरह से नोटबंदी को अंजाम दिया गया,इस प्रक्रिया के पहलुओं पर गौर करने की जरूरत है . क्या देश की जनता कभी जान पाएगी कि नोटबंदी का फैसला किस आधार पर लिया गया, या इस फैसले को सही बताने के लिए केवल बातें बनाई जाएंगी कि ये हो गया तो वो हो गया. इस मामले में अब 24 नवंबर को सुनवाई होगी.

अदालत से जुड़ी इन घटनाओं पर सोचिए, यह देश कहां जा रहा है. अब आते हैं चुनावी खबरों पर.क्या जनता इतनी मासूम होती है कि चुनाव के वक्त नेता उसके इलाके के परिधान में आ जाएं, टोपी पहन लें, उसका खाना खा लें तो वह अपने दिल की तरह वोट लुटा देती है? क्या यह इतना भारी काम है कि आप किसी इलाके में जाएं और उसके हिसाब से कपड़े पहन लें, टोपी पहन लें. इस बात को ग़लत या सही की नज़र से मत देखिए. क्योंकि राजनेता ऐसा करते ही रहे हैं, हमारा सवाल अलग है. अगर इस तरह से प्रतीकों को मुद्दा बनाया जाएगा, मुद्दों पर प्रतीकों को महत्व दिया जाएगा तब फिर उन मुद्दों का क्या होगा जिसके लिए चुनाव होते हैं. आप जानते हैं कि हिमाचल प्रदेश में चुनाव हो रहे हैं लेकिन इस चुनाव का G-20 की बैठक से क्या लेना-देना है?

कमाल तो यह हुआ कि सुबह जब बीजेपी ने ट्विट किया तब उस पर G-20 का लोगो भी चिपका हुआ था जिसे 8 नवंबर को जारी किया गया था.क्या यह संयोग था कि लोगो में बना कमल का फूल बीजेपी के चुनाव चिन्ह कमल के फूल से मैच कर गया होगा, जिसे लेकर कांग्रेस के जयराम रमेश ने आपत्ति की थी? कुछ समय के बाद बीजेपी ने फिर से इसे ट्विट किया तब उसमें G-20 का लोगो नहीं था. इस ट्विट में लिखा है कि प्रधानमंत्री मोदी G-20 की बैठक में दुनिया के नेताओं को हिमाचल की कला और संस्कृति से जुड़े उपहार भेंट करेंगे. जिन चीज़ों को भेंट करेंगे, उन सभी आइटम की तस्वीर दी गई है, और उनके नाम बताए गए हैं. चंबा रुमाल, कुल्लू शॉल, किन्नोरी शॉल,कनॉल ब्रास सेट और कांगड़ा लघु चित्र . मोटे अक्षरों में लिखा है कि हिमाचल की कला और संस्कृति को वैश्विक पहचान दिला रहे हैं नरेंद्र मोद.इसी के साथ हिमाचल प्रदेश की भाजपा ईकाई ने ट्विट किया है कि आगामी G-20 सम्मेलन में हिमाचल संस्कृति की दिखेगी छाप. मोदी जी चंबा रूमाल, कांगड़ा की पेंटिंग, किन्नौर व कुल्ली की शॉल और कणाल पीतल सेट दुनिया के नेताओं को उपहार चिन्ह के तौर पर भेंट करेंगे. हर आइटम की तस्वीर दी गई है.

बीजेपी ने अपने ट्विट से G-20 का लोगो तो हटा दिया मगर उसका संदर्भ नहीं हटाया. अब भी यह सवाल है कि बीजेपी क्यों प्रचार कर रही है कि गिफ्ट में क्या दिया जाएगा? क्या उसे विदेश मंत्रालय ने बताया है?  G-20 की बैठक दिल्ली में अगले साल 9-10 सितंबर को होने वाली है. एक साल पहले क्या गिफ्ट दिया जाएगा, इसकी घोषणा बीजेपी कर रही है? विदेश मंत्रालय ने तो ऐसा कोई ट्विट नहीं किया हैै?विदेश मंत्रालय को इसकी पुष्टि करनी चाहिए और इसी के साथ इन आइटमों को G-20 के नेताओं को भी टैग कर देना चाहिए, लिख देना चाहिए कि जो बाइडन जी को शॉल मिलेगा और ऋषि सुनक को चंबा रुमाल.  ऐसा कहीं होता है क्या. कि बैठक के एक साल पहले चुनाव में गिफ्ट आइटम की चर्चा हो रही है. 13 सितंबर  को विदेश मंत्रालय ने G-20 की बैठक की जानकारी देते हुए एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी मगर उसमें तो गिफ्ट की कोई बात ही नही है. 

अभी G-20 की बैठक के लिए लाल कालीन तक नहीं बिछी है मगर गिफ्ट आइटम की तस्वीरें हिमाचल की जनता के लिए साझा कर दी गई हैं. दुनिया भर के नेता उपहार देते समय बिताते हैं और दिखाते हैं, लेकिन बैठक से एक साल पहले इसकी घोषणा BJP अपने हैंडल से कर रही है, इसका मतलब है कि इसका मकसद चुनावी राजनीति है. नौकरी, पेंशन में उलझी हिमाचल की जनता पर अचानक G-20 की बैठक के महत्व को समझने का भार डाल दिया गया है. पहले  सोचिए कि मतदान से चंद रोज़ पहले हिमाचल की कला और संस्कृति से जुड़ी इन चीज़ों की तस्वीरों को बीजेपी क्यों प्रचारित कर रही है? क्या बीजेपी को यह भी मालूम है कि गिफ्ट के साथ 101 रुपए का शगुन होगा या चांदी का सिक्का शगुन के तौर पर दिया जाएगा? क्या बीजेपी को यह भी मालूम है कि  G-20 की बैठक में जो ग्लोबल नेता आएंगे कि उन्हें किस चीज़ की सूप दी जाएगी और शर्बत किस राज्य का दिया जाएगा? वैसे बेल का शर्बत ठीक रहेगा, बिहार के हिसाब से सत्तू का शर्बत तो और भी जमेगा. (प्राकृतिक आपदा के आर्काइव विजुअल इन)  इस साल हिमाचल प्रदेश में बारिश के दिनों में प्राकृतिक आपदा से 350 से अधिक लोग मारे गए हैं.कई बार दर्जनों सड़कों को बंद करना पड़ा. भारी नुकसान और विस्थापन हुआ होगा. लेकिन क्या वहां पर पर्यावरण को लेकर चल रही COP27 की बैठक की चर्चा हो रही है? तब फिर G-20 की क्यों बात हो रही है? फिर तो विदेश मंत्री को चुनाव प्रचार कर इसके महत्व को समझाना चाहिए. 

1999 से G-20 अस्तित्व में है.हर साल इसका अध्यक्ष बदल जाता है. भारत के पहले इंडोनेशिया G-20 का अध्यक्ष था. इस साल एक दिसंबर से इसकी अध्यक्षता भारत के पास आ रही है. लेकिन घरेलु राजनीति में इस तरह से प्रचार किया जा रहा है कि भारत को विशेष रुप से महत्व दिया जा रहा है, इसलिए अध्यक्ष बनाया जा रहा है. जो भी इसका सदस्य है, इसका अध्यक्ष बनेगा ही. सऊदी अरब तो 2020 में ही अध्यक्ष बना था तो क्या वह ग्लोबल सुपर पावर हो गया? 

इसी साल फरवरी मार्च में उत्तराखंड और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने वाले थे. गणतंत्र दिवस के दिन प्रधानमंत्री ने मणिपुर का गमछा पहना और उत्तराखंड की पारंपरिक टोपी. उस दिन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ट्विट किया कि आज 73वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर माननीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी ने ब्रह्मकमल से सुसज्जित देवभूमि उत्तराखण्ड की टोपी धारण कर हमारे राज्य की संस्कृति एवं परम्परा को गौरवान्वित किया है. क्या इसी से प्रभावित होकर हिमाचल प्रदेश की कला संस्कृति से जुड़ी चीज़ों को G-20 से जोड़ा जा रहा है? ताकि इसके बहाने चर्चा चलाई जा सके और चर्चा में छाया जा सके?

क्या बीजेपी और मोदी सरकार बताएगी कि इसके पहले प्रधानमंत्री ने जिन चीज़ों को तोहफे के तौर पर दिया है, उसके व्यापार कारोबार में कितनी वृद्धि हुई है? प्रधानंमत्री अक्सर अलग-अलग राज्यों की चीज़ों को अपनी यात्राओं के दौरान भेंट करते रहते हैं. क्या उससे वैश्विक मान्यता मिल जाती है, तो मान्यता मिलने के बाद होता क्या है? क्या उसका कारोबार बढ़ जाता है? मज़दूरी बढ़ जाती है? क्या होता है? अगर बीजेपी यह बताती है कि उसके दौर में हिमाचल की कला से जुड़ी चीज़ों के उत्पादन और निर्यात में वृद्धि के लिए कितने पैसे दिए गए, कितने केंद्र बनाए गए, उत्पादन कितना बढ़ा, निर्यात कितना बढ़ा औऱ रोज़गार कितना बढ़ा तब तो एक बात होती कि बीजेपी श्रेय ले रही है. क्या इतने भर से श्रेय लिया जा सकता है कि कौन सी चीज़ किसे गिफ्ट दी जा रही है? सरकार या बीजेपी यही बता दे कि चंबा रुमाल के विकास के लिए, कुल्लू और किन्नोरी शॉल के लिए कितना पैसा दिया गया है, तब यह बात समझ आती. सौरव शुक्ला की रिपोर्ट 

वैसे बीजेपी रेवड़ी का विरोध करती है. हिमाचल प्रदेश में बीजेपी ने चुनाव जीतने पर बेटियों को साइकिल और स्कूटी देने का वादा किया है. बेेसहारा लोगों को तीन हज़ार रुपये का सहारा हर महीने दिया जाएगा. पूरे देश के लिए उज्ज्वला योजना के तहत एक नियम है. पहले सब्सिडी कम कर दी गई,उज्ज्वला योजना के सिलेंडर भी महंगे हो गए हैं. जब इसे लेकर विपक्ष ने हंगामा किया तब वित्त मंत्री ने कहा कि इस साल 9 करोड़ लाभार्थी को प्रति सिलेंडर 200 रुपये की सब्सिडी दी जाएगी. तब फिर बीजेपी गुजरात और हिमाचल के लिए अलग से क्यों वादा कर रही है कि उज्ज्वला के ग्राहकों को मुफ्त सिलेंडर दिया जाएगा? सारे देश में मुफ्त सिलेंडर क्यों नहीं दिए जा रहे हैं?  क्या जहां चुनाव नहीं हो रहे हैं, वहां के लोग ग़रीब नहीं हैं? अगर यह रेवड़ी नहीं है महिलाओं को मज़बूत करना है तो सारे देश की महिलाओं को मज़बूत करने के लिए मुफ्त में सिलेंडर क्यों नहीं दिया जा रहा है. हिमाचल चुनाव पर सौरव की एक और रिपोर्ट. क्या गुजरात में रोज़गार का सवाल राजनीतिक मुद्दों को धार दे सकेगा या यह मुद्दा उठकर शांत हो जाएगा. गुजरात में सरकारी भर्ती की परीक्षाओं में पेपर लीक का मसला ज़ोर पकड़ रहा है. 

13 अक्तूबर के दिन दिव्य भास्कर ने अपने पहले पन्ने पर एक परीक्षा का प्रश्न पत्र ही छाप दिया कि बाज़ार में यह प्रश्न पत्र पहले से बिक रहा है. सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी को BBA BCom के प्रश्न पत्र लीक होने के कारण परीक्षा स्थगित करनी पड़ गई. इसी यूनिवर्सिटी में दिसंबर 2021 में अर्थशात्र की परीक्षा का प्रश्न पत्र लीक हो गया. इंडियन एक्सप्रेस में खबर छपी है. पुलिस ने इस मामले में पूछताछ के लिए प्रिसिंपल तक को हिरासत में लिया था. हिन्दू की एक और खबर है. 21 दिसंबर 2021 की, गुजरात सरकार को हेड क्लर्क की परीक्षा रद्द करनी पड़ी थी क्योंकि प्रश्न पत्र लीक हो गया था. इस तरह गुजरात में प्रश्न पत्रों के लीक होने की तमाम खबरें आपको मिल जाएंगी. November  2019 में जो प्रश्न पत्र लीक होने को लेकर गांधीनगर में बड़ा प्रदर्शन भी हुआ था. 

आखिर गुजरात जैसे विकसित राज्य में परीक्षाओं के प्रश्न पत्र लीक क्यों हो रहे हैं? प्रधानमंत्री अपने गृह राज्य में ईमानदार परीक्षा व्यवस्था क्यों नहीं दे सके? अब कहीं ऐसा न हो जाए कि कोई ट्विट कर दे कि G-20 के नेताओं को लीक होने वाले प्रश्न पत्रों के सैंपल उपहार के तौर पर दिए जाएंगे. क्या पता लोग इसे भी तारीफ समझ लें कि प्रश्न पत्र के लीक होने की वैश्विक पहचान कायम की जा रही है. इन हालात में गुजरात में बेरोज़गारी का आलम ये है कि अच्छे पढ़े लिखे लोग भी मज़दूरी करने को मजबूर हैं. आप और कांग्रेस इसी को मुद्दा बनाकर गुजरात मॉडल पर सवाल खड़े कर रहे हैं… 

असम सरकार ने कहा है कि वो राज्य में शिक्षकों की आठ हज़ार स्थायी पोस्ट ख़त्म करने जा रही है… सरकार की दलील है कि पहले ही हज़ारों शिक्षक सर्व शिक्षा अभियान के तहत कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे हैं ऐसे में और स्थायी नियुक्तियों की ज़रूरत नहीं है… 2020 से ही ये आठ हज़ार नियुक्तियां रोक कर रखी गई थीं… विपक्षी दलों और शिक्षक संगठनों ने राज्य सरकार के इस फ़ैसले का विरोध किया है… उनका कहना है कि ये शिक्षा के निजीकरण की सरकार की सोची समझी साज़िश हैं. कुछ साल पहले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अमरीका गए तो वहां की सड़कों को खराब बताने लगे और कहने लगे कि अमरीका से अच्छी सड़कें तो मध्य प्रदेश की सड़कें हैं.लेकिन उसी राज्य की सड़कों के लिये केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी सार्वजनिक मंच से माफी मांग रहे हैं.

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