प्रधानमंत्री जब बोलते हैं तो विश्व के नेता ध्यान से सुनते हैं, यह भारत की बढ़ती शक्ति का प्रतीक: मोहन भागवत

मोहन भागवत ने कहा कि प्रधानमंत्री को दुनिया भर में इतने ध्यान से क्यों सुना जा रहा है? उन्हें इसलिए सुना जा रहा है क्योंकि भारत की ताकत अब उन जगहों पर प्रकट होने लगी है जहां उसे उचित रूप से दिखाई देना चाहिए और इसने दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है.

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  • मोहन भागवत ने कहा कि पीएम की बातों को दुनिया के नेता ध्यान से सुनते हैं क्योंकि भारत की शक्ति प्रकट हो रही है
  • भागवत ने संघ के 100 साल पूरे होने पर कहा कि जश्न मनाने से अधिक काम को तय समय में पूरा करना महत्वपूर्ण है
  • उन्होंने कहा कि आरएसएस ने अनेक चुनौतियों और तूफानों का सामना करते हुए समाज को एकजुट करने का कार्य जारी रखा है
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पुणे:

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को कहा कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोलते हैं तो दुनिया के नेता ध्यान से सुनते हैं और ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि भारत की शक्ति प्रकट हो रही है और देश अपना उचित स्थान पा रहा है. आरएसएस के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में पुणे में आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए, भागवत ने सुझाव दिया कि किसी को जयंती या शताब्दी जैसे महत्वपूर्ण अवसरों का जश्न मनाने के बजाय, निर्धारित समय के भीतर दिए गए कार्य को पूरा करने का लक्ष्य रखना चाहिए.

उन्होंने कार्यक्रम में मौजूद लोगों से कहा, "संघ यही करता आ रहा है. संघ ने चुनौतियों और कई तूफानों का सामना करते हुए 100 साल पूरे कर लिए हैं, फिर भी यह आत्मचिंतन करने का समय है कि पूरे समाज को एकजुट करने के कार्य में इतना समय क्यों लगा."

आरएसएस चीफ ने कहा कि आमतौर पर यह माना जाता है कि जब भारत का उत्थान होता है, तो वैश्विक समस्याएं हल हो जाती हैं, संघर्ष कम हो जाते हैं और शांति कायम होती है. उन्होंने कहा, "यह इतिहास में दर्ज है और हमें इसे फिर से बनाना होगा. यह समय की मांग है. वर्तमान वैश्विक परिस्थितियां भारत से यही मांग करती हैं और इसीलिए संघ के स्वयंसेवक पहले दिन से ही इस मिशन को पूरा करने के संकल्प के साथ काम कर रहे हैं."

1925 में नागपुर में हिंदुत्व संगठन की स्थापना करने वाले आरएसएस संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के बलिदानों का जिक्र करते हुए, भागवत ने याद किया कि संघ के स्वयंसेवकों ने अनेक प्रतिकूलताओं और चुनौतियों के बीच अपने मिशन को हासिल करने की अपनी यात्रा शुरू की थी.

आरएसएस नेता ने संघ के शुरुआती महीनों और सालों का जिक्र करते हुए कहा कि इस बात की कोई निश्चितता नहीं थी कि उनके काम के सकारात्मक परिणाम मिलेंगे. उन्होंने आगे कहा, "संघ स्वयंसेवकों ने सफलता के बीज बोए और अपना जीवन समर्पित करके परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया. हमारा आभार उनके प्रति बना रहना चाहिए."

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वैश्विक मंच पर भारत के बढ़ते कद पर प्रकाश डालते हुए, मोहन भागवत ने कहा, "प्रधानमंत्री को दुनिया भर में इतने ध्यान से क्यों सुना जा रहा है? उन्हें इसलिए सुना जा रहा है क्योंकि भारत की ताकत अब उन जगहों पर प्रकट होने लगी है जहां उसे उचित रूप से दिखाई देना चाहिए और इसने दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है."

वहां मौजूद लोगों को एक किस्सा सुनाते हुए, आरएसएस प्रमुख ने कहा कि एक बार उनसे कहा गया था कि संघ 30 साल देरी से आया है. मैंने जवाब दिया कि हम देर से नहीं आए. बल्कि, आपने हमें देर से सुनना शुरू किया. उन्होंने कहा कि जब संघ संवाद और सामूहिक कार्य की शक्ति की बात करता है, तो उसका तात्पर्य पूरे समाज से होता है.

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मोहन भागवत ने जोर देकर कहा, "हमारी नींव विविधता में एकता पर टिकी है. हमें साथ मिलकर चलना होगा और इसके लिए धर्म आवश्यक है. भारत में सभी दर्शन एक ही स्रोत से उत्पन्न होते हैं. चूंकि सब कुछ आपस में जुड़ा हुआ है, इसलिए हमें सद्भाव के साथ आगे बढ़ना होगा."

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