लोकसभा चुनावः आखिर यूपी में क्यों लगा बीजेपी को जोर का झटका, जरा समझिए

इससे पिछले दो लोकसभा चुनावों - 2014 तथा 2019 - में BJP ने क्रमशः 71 और 62 सीटें जीती थीं. इस बार 1 जून को अंतिम चरण की मतगणना के बाद आए लगभग सभी एग्ज़िट पोलों में भी इसी ट्रेंड की पुनरावृत्ति की भविष्यवाणी की गई थी, लेकिन एग्ज़िट पोल के साथ दी जाने वाली चेतावनी - एग्ज़िट पोल हमेशा सही नहीं होते हैं - इस बार सही साबित होती दिख रही है.

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लोकसभा चुनाव परिणाम 2024, यानी मतगणना वाले मंगलवार को दोपहर हुई थी, और काउंटिंग शुरू हुए सिर्फ़ चार घंटे हुए थे कि एक बात पूरी तरह साफ़ हो चुकी थी कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के प्रभुत्व और दबदबे को विपक्षी I.N.D.I.A. गठबंधन से कड़ी चुनौती मिली है. दोपहर 12 बजे के आसपास आबादी और लोकसभा सीटों के लिहाज़ से देश के सबसे बड़े सूबे की 80 में से 44 सीटों पर समाजवादी पार्टी (SP) और कांग्रेस के प्रत्याशी बढ़त बनाए हुए थे, जबकि NDA के उम्मीदवार कुल 35 सीटों पर आगे चल रहे थे.

इससे पिछले दो लोकसभा चुनावों - 2014 तथा 2019 - में BJP ने क्रमशः 71 और 62 सीटें जीती थीं. इस बार 1 जून को अंतिम चरण की मतगणना के बाद आए लगभग सभी एग्ज़िट पोलों में भी इसी ट्रेंड की पुनरावृत्ति की भविष्यवाणी की गई थी, लेकिन एग्ज़िट पोल के साथ दी जाने वाली चेतावनी - एग्ज़िट पोल हमेशा सही नहीं होते हैं - इस बार सही साबित होती दिख रही है. वैसे, कई दौर की मतगणना शेष है, और तस्वीर कुछ हद तक बदल भी सकती है. उत्तर प्रदेश में BJP को लगे इस 'ज़ोर के झटके' के पीछे की अहम वजहों को समझने की कोशिश करते हैं.

क्या राम मंदिर से BJP को मिला लाभ?
इस लोकसभा चुनाव में चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा रहा था अयोध्या में बना भव्य राम मंदिर, जो 1980 के दशक में BJP के गठन के समय से ही उसका चुनावी वादा रहा, और इसके बारे में BJP समर्थकों का दावा था कि चुनाव परिणामों में राम मंदिर निर्णायक साबित होगा.

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लेकिन रुझानों से साफ़ है कि अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा फ़ैज़ाबाद तक में खुद को अहम वजह नहीं बना पाया, जबकि मंदिर फ़ैज़ाबाद निर्वाचन क्षेत्र में ही है. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद BJP के लल्लू सिंह से 4,000 से ज़्यादा वोटों से आगे चल रहे हैं. अगर पड़ोसी संसदीय सीटों पर निगाह डालें, तो फ़ैज़ाबाद से सटी सात सीटों में से दो - गोंडा और कैसरगंज - पर BJP आगे चल रही है, जबकि पांच अन्य में से दो - अमेठी और बाराबंकी - में कांग्रेस आगे है और तीन - सुल्तानपुर, अंबेडकरनगर और बस्ती - में SP आगे है.

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कांग्रेस-एसपी ने कैसे लिखी जीत की स्क्रिप्ट
इस चुनाव से पहले SP प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने आखिरी बार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 के दौरान एक साथ प्रचार किया था, लेकिन उस वक्त जब नतीजे आए थे, BJP को 302 सीटें मिली थीं, और कांग्रेस-SP गठबंधन सिर्फ़ 47 सीटें जीत पाया था. अब सात साल बाद राजनीतिक रूप से ज़्यादा मैच्योर हो चुके दोनों नेताओं को फिर एक साथ देखा गया, और अगर मौजूदा रुझान बरकरार रहा, तो इस बार दोनों तस्वीर बदलने जा रहे हैं. फिलहाल, उत्तर प्रदेश में I.N.D.I.A. गठबंधन 80 में से 44 सीटों पर आगे चल रहा है, जो NDA की बड़त वाली सीटों से नौ अधिक है.

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मायावती नहीं थीं मैदान में
UP की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (BSP) हर वक्त हैरान कर देने के लिए मशहूर रही है. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में BSP को समूचे सूबे में एक भी सीट नहीं मिली थी, लेकिन वर्ष 2019 में मायावती की पार्टी ने 10 सीटें जीतकर ज़ोरदार वापसी की थी. पिछले लोकसभा चुनाव में BSP ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था, लेकिन इस बार पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ा, जबकि उसके पूर्व सहयोगी दल कांग्रेस के साथ चले गए थे.

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अब तक आए रुझानों में BSP को करारी हार का सामना करना पड़ रहा है. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, चार घंटे की मतगणना के बाद भी BSP का कोई भी प्रत्याशी किसी भी सीट पर आगे नहीं चल रहा है. यह मायावती के लिए अच्छी ख़बर नहीं है. वैसे, नगीना सीट के रुझान भी अहम हैं, जहां उभरते दलित नेता चंद्रशेखर आज़ाद आगे चल रहे हैं, जबकि इसी सीट पर BSP चौथे पायदान पर है. अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट पर आज़ाद की जीत से भी ज़्यादा बड़ी हार BSP के लिए यह रहेगी कि संभवतः मायावती के वफ़ादार कहे जाने वाले दलित मतदाताओं अब नए नेता मिल गए हैं.

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