'इरादतन' को 'साशय' तो 'कब्‍जा' को किया 'आधिपत्‍य',  MP पुलिस की नई शब्‍दावली पर सवाल 

कई पुलिस थानों में आज भी उर्दू-फारसी शब्‍दों का इस्‍तेमाल होता है और इसे आम आदमी समझ नहीं पाते हैं. मध्‍य प्रदेश पुलिस ने ऐसे 675 उर्दू-फारसी के शब्‍दों का चयन किया है, इसका हिंदी-अंग्रेजी अनुवाद करके जिलों को भेजा गया है. 

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नई दिल्‍ली :

थाने में दर्ज एफआईआर हो या कचहरी के फैसले या कोर्ट में होने वाली जिरह, उनमें इस्‍तेमाल शब्‍दों को समझना सबके लिए आसान नहीं है. कई शब्‍द ऐसे हैं, जिन्‍हें पुलिस वाले और वकील भी नहीं समझ पाते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ महीने पहले कहा था कि आम लोगों को भी कानून अपना लगना चाहिए. ऐसे में एक पहल मध्‍य प्रदेश पुलिस (Madhya Pradesh Police) ने की है. मध्‍य प्रदेश पुलिस ने 600 से ज्‍यादा शब्‍दों की एक लिस्‍ट बनाई है, जिन्‍हें बदला गया है. हालांकि मुश्किल ये है कि कुछ शब्‍द तो ठीक हैं, लेकिन कुछ पर सवाल उठ रहे हैं. जैसे कुछ आसान उर्दू शब्‍दों की जगह मुश्किल हिंदी शब्‍दों को स्‍थान दिया गया है. वहीं कुछ मुश्किल हिंदी शब्‍दों की जगह दूसरे मुश्किल हिंदी के शब्‍द रखे गए हैं. यही कारण है कि मध्‍य प्रदेश पुलिस की नई कवायद पर सवाल खड़े हो रहे हैं. 

उदाहरण के लिए बयान सब समझते हैं, लेकिन पुलिस की शब्‍दावली में इसे कथन कर दिया गया है. वहीं इरादतन को साशय कर दिया गया है तो कब्‍जा को आधिपत्य कर दिया गया है. साथ ही गिरफ्तार और हिरासत दोनों शब्‍दों के लिए अभिरक्षा शब्‍द का ही इस्‍तेमाल किया जाएगा. 

मध्‍य प्रदेश पुलिस ने 675 शब्‍द बदले 

देश के कई पुलिस थानों में आज भी उर्दू-फारसी शब्‍दों का इस्‍तेमाल होता है और इसे आम आदमी तो क्‍या पुलिस वाले तक नहीं समझ पाते हैं. मध्‍य प्रदेश पुलिस ने ऐसे 675 उर्दू फारसी के शब्‍दों का चयन किया है, इसका हिंदी-अंग्रेजी अनुवाद करके जिलों को भेजा गया है. 

डीआईजी ने बताया क्‍यों उठाया गया ये कदम 

डीआईजी मनोज सिंह ने कहा कि हिंदी और अच्‍छे शब्‍दों को लिया जा रहा है ताकि जो नए पुलिस अधिकारी आ रहे हैं, वो उसको समझ सकें और ठीक से कार्रवाई कर सकें. इन शब्‍दों को बदलने के लिए करीब 600 शब्‍दों की एक डिक्‍शनरी तैयार की गई है और धीरे-धीरे उसे प्रयोग में लाया जा रहा है. 

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वहीं वकील फहाद कुरैशी ने कहा कि यह शब्‍द कोर्ट में इस्‍तेमाल होते हैं. हम पहले से ही इन शब्‍दों की तैयारी करके जाते हैं, इसलिए इनके बारे में हमें पता होता है. 

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कठिन शब्‍दों का बदला जाना जरूरी है, हिंदी के भी अच्‍छे शब्‍द आने चाहिए, उर्दू के कठिन शब्‍द जाने चाहिए लेकिन भाषा को हिंदी, उर्दू या अंग्रेजी के बहुत संकीर्ण दायरे में नहीं देखा जाना चाहिए. बदलाव ऐसा होना चाहिए जो आम लोगों को आसानी से समझ में आना चाहिए.  

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