पूर्व पीएम पीवी नरसिम्हा राव और गांधी परिवार के रिश्तों में क्यों आई खटास
शव को हैदराबाद ले जाने पर अड़े कांग्रेसी नेता
पीवी नरसिम्हा राव (Narasimha Rao) का निधन 23 दिसंबर 2004 को हुआ. उन्होंने करीब 11 बजे एम्स में आखिरी सांस ली थी. करीब ढाई बजे उनका शव एम्स से उनके आवास 9 मोती लाल नेहरू मार्ग लाया गया. इसके बाद असली राजनीति शुरू हुई. तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने राव के छोटे बेटे प्रभाकरा को सुझाव दिया कि अंतिम संस्कार हैदराबाद में किया जाए, लेकिन परिवार दिल्ली में ही अंतिम संस्कार पर अड़ा रहा. थोड़ी देर बाद कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी के एक और करीबी गुलाब नबी आजाद 9 मोती लाल नेहरू मार्ग पहुंचे. उन्होंने भी राव (Former PM PV Narasimha Rao) के परिवार से शव को हैदराबाद ले जाने की अपील की. इस बीच आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के नेता वाईएस राजशेखर रेड्डी ने भी राव के परिवार से शव को हैदराबाद ले जाने की गुजारिश की. शाम को सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कद्दावर नेता प्रणब मुखर्जी के साथ 9 मोती लाल नेहरू मार्ग में दाखिल हुईं. विनय सीतापति अपनी किताब 'द हाफ लायन' में लिखते हैं, कुछ सेकेंड के मौन के बाद मनमोहन सिंह ने राव के बेटे प्रभाकरा से पूछा, 'आप लोगों ने क्या सोचा है? ये लोग कह रहे हैं कि अंतिम संस्कार हैदराबाद में होना चाहिए. प्रभाकरा ने कहा, 'यही (दिल्ली) उनकी कर्मभूमि थी. आप अपने कैबिनेट सहयोगियों को यहां अंतिम संस्कार के लिए मनाइये'. बकौल सीतापति, 'इसके बाद मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) के बगल में खड़ी सोनिया गांधी कुछ बुदबुदाईं'.
'नरसिम्हा राव का किया नुकसान अब भी भारी कीमत वसूल रहा है'
शव रखने के लिए नहीं खुला कांग्रेस मुख्यालय का गेट
तमाम कांग्रेसी नेताओं व मंत्रियों की जिद और दिल्ली में नरसिम्हा राव का मेमोरियल बनवाने के आश्वासन के बाद राव का परिवार नरम पड़ा और अंतिम संस्कार हैदराबाद में करने के लिए तैयार हो गया. अगले दिन यानी 24 दिसंबर को तिरंगे में लिपटी नरसिम्हा राव (PV Narasimha Rao) की बॉडी को एक तोप गाड़ी (गन कैरिज) में रखा गया. परिवार ने तय किया कि एयरपोर्ट जाने से पहले उनके शव को कुछ समय के लिए कांग्रेस मुख्यालय में रखा जाए. यह वही जगह थी, जहां राव ने तमाम सियासी मौसमों को देखा था. परिवार की इच्छा के अनुसार राव के शव को ले जा रही तोप गाड़ी 24 अकबर रोड यानी सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के आवास से सटे कांग्रेस मुख्यालय के पास रोक दी गई. पार्टी मुख्यालय का गेट बंद था. वहां कांग्रेस के तमाम नेता मौजूद थे, लेकिन सब चुप्पी साधे हुए थे. सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और अन्य नेता अंतिम विदाई देने के लिए बाहर आए, लेकिन गेट नहीं खुला. चूंकि किसी भी नेता के निधन के बाद उसका शव पार्टी मुख्यालय में आम कार्यकर्ताओं के दर्शन के लिए रखने का रिवाज था. ऐसे में राव के परिजनों को इस बात की उम्मीद भी नहीं थी कि ऐसा भी हो सकता है. करीब आधे घंटे तक शव को ले जा रही तोप गाड़ी बाहर खड़ी रही और फिर यह एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गई.
'नरसिम्हा राव कोई आर्थिक मसीहा नहीं थे, नेहरू की नीतियां फेल हुईं तो मजबूरी में उठाया कदम'
आर्थिक सुधारों का क्रेडिट दिया जाना पसंद नहीं आया
बतौर प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने 1991 में आर्थिक सुधारों का दरवाजा खोला. चौतरफा इसकी चर्चा हुई. हालांकि कांग्रेस को इन सुधारों के पीछे राव (PV Narasimha Rao) को क्रेडिट दिया जाना पसंद नहीं आया. विनय सीतापति अपनी किताब 'द हाफ लायन' में इस बात का जिक्र करते हुए लिखते हैं, कांग्रेस के 125वें स्थापना दिवस पर सोनिया गांधी ने कहा कि 'राजीव जी अपने सपनों को साकार होते हुए देखने के लिए हमारे बीच नही हैं, लेकिन हम देख सकते हैं कि वर्ष 1991 के चुनावी घोषणा पत्र में उन्होंने जो दावे किये थे, वही अगले पांच वर्षों के लिए आर्थिक नीतियों के आधार बने'. आर्थिक सुधारों का दरवाजा खोलने के सालभर बाद ही राव से नाराज कांग्रेसी नेताओं को उनके खिलाफ मोर्चा खोलने का मौका तब मिल गया, जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई. बकौल सीतापति, 'नरसिम्हा राव (PV Narasimha Rao) के प्रशंसकों में से एक और कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में शुमार जयराम रमेश कहते हैं कि, 'कांग्रेस के 99.99 फीसद लोगों का मानना है कि बाबरी मस्जिद के गिरने के पीछे कहीं न कहीं राव की मिलीभगत थी. उस घटना की कसौटी पर पूरी कांग्रेस पार्टी को कसा जाता है'. विनय सीतापति लिखते हैं, ''राहुल गांधी ने तो सार्वजनिक तौर पर यह कहा कि 'अगर उनका परिवार वर्ष 1992 में सत्ता में होता तो शायद बाबरी मस्जिद नहीं गिरती''.
एनडी तिवारीः 'नैनीताल का चुनाव न हारते तो बन जाते प्रधानमंत्री, नरसिम्हा राव बांध चुके थे बोरिया-बिस्तर'
...तो सोनिया गांधी को रिपोर्ट नहीं किया
आर्थिक सुधारों का श्रेय और बाबरी मस्जिद विध्वंस कांड के अलावा और भी कई वजहें थी, जिसकी वजह से नरसिम्हा राव और कांग्रेस के रिश्तों में खटास बढ़ती गई. उनमें से एक बड़ी वजह यह थी कि पीएम बनने के बाद कांग्रेस और खासकर सोनिया गांधी को राव (PV Narasimha Rao) से जिस तरह की अपेक्षाएं थी, वे उसके विपरीत काम कर रहे थे. इसका ब्योरा विनय सीतापति ने राव की बायोग्राफी 'द हाफ लायन' में दिया है. वे लिखते हैं, ''बकौल के. नटवर सिंह Natwar Singh (कांग्रेसी नेता) नरसिम्हा राव को लगा कि बतौर प्रधानमंत्री उन्हें सोनिया गांधी को रिपोर्ट करने की जरूरत नहीं है. और उन्होंने ऐसा ही किया. यह बात सोनिया गांधी को पसंद नहीं आई. नाराजगी बढ़ती गई''.
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