- मद्रास उच्च न्यायालय ने अनुसूचित जाति के लोगों को पुथुकुडु अय्यनार मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी है
- अदालत ने कहा कि कानून के शासन वाले देश में जातिगत भेदभाव की कोई जगह नहीं है और सभी जातियों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति होनी चाहिए.
- एसपी और राजस्व प्रभागीय अधिकारी को निर्देश दिया गया है कि वे मंदिर में प्रवेश रोकने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ उचित कार्रवाई करें.
मद्रास उच्च न्यायालय ने अरियालुर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि अनुसूचित जाति (एससी) के लोगों को पुथुकुडु अय्यनार मंदिर में प्रवेश से वंचित न किया जाए. अदालत ने जोर देकर कहा कि "कानून के शासन वाले देश में कोई जातिगत भेदभाव नहीं हो सकता." ए. वेंकटेशन द्वारा दायर याचिका पर जारी इस निर्देश में एसपी और राजस्व प्रभागीय अधिकारी (आरडीओ) को यह सुनिश्चित करने का कहा गया है कि सभी जातियों के लोगों को हर समय मंदिर में प्रवेश की अनुमति हो.
मंदिर में प्रवेश करने से रोकने पर होगी कार्रवाई
अदालत ने अधिकारियों को यह भी निर्देश दिया कि वे समुदाय के किसी भी वर्ग को मंदिर में प्रवेश करने से रोकने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ उचित कार्रवाई करें. वेंकटेशन ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि एक प्रभावशाली समुदाय द्वारा अनुसूचित जाति के लोगों को मंदिर में प्रवेश करने से रोका जा रहा है. उन्होंने 16 से 31 जुलाई तक होने वाले मंदिर के आगामी प्राण-प्रतिष्ठा समारोहों में भाग लेने की भी अनुमति मांगी थी. अदालत ने कहा कि 1947 का मंदिर प्रवेश प्राधिकरण अधिनियम, सभी के लिए प्रवेश सुनिश्चित करने हेतु कई नेताओं के लंबे संघर्ष के बाद पारित किया गया था.
क्या है पूरा मामला
इस मंदिर में पहले सभी जातियों के लोगों को प्रवेश की अनुमति थी. पुथुकुडु अय्यनार मंदिर में 2019 में तब बदलाव आया जब कथित तौर पर एक प्रभावशाली समूह ने मंदिर पर नियंत्रण कर लिया और एक नया मंदिर बनाने का फैसला किया. अनुसूचित जाति के निवासियों के योगदान के बावजूद, उन्हें बाद में प्रवेश करने से रोक दिया गया.
इतना ही नहीं प्रभावशाली समूह पर अनुसूचित जाति समुदाय द्वारा स्थापित मूर्तियों और पत्थर की संरचनाओं को हटाने और ध्वस्त करने का आरोप है. जिसमें एक बड़ी अय्यनार मूर्ति भी शामिल है, जिसे कथित तौर पर एक कुएं में फेंक दिया गया था. यहां पर एक लोहे का गेट लगा भी लगाया गया था. जिससे अनुसूचित जातियों को बाहर से पूजा करने के लिए मजबूर होना पड़ा. भेदभाव के इन स्पष्ट कृत्यों के बावजूद, अधिकारियों ने कथित तौर पर कानून-व्यवस्था के मुद्दों का हवाला देते हुए हस्तक्षेप नहीं किया था.