केंद्र सरकार ने भारतीय कानूनों में बदलाव का प्रस्ताव पेश किया है. सरकार से जुड़े सूत्रों ने बताया कि IPC 1860, CRPC 1898 और EVIDENCE ACT 1873 अंग्रेजों के जमाने के कानून थे. 2019 में ही इसको लेकर आमूलचूल परिवर्तन पर विचार शुरू हो गया था. क़रीब चार साल के मंथन के बाद ये प्रस्ताव पेश किया गया है. इसके तहत राजद्रोह के कानून को 'भारत की एकता, संप्रभुता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य' के रूप में रखा गया है. इसमें न्यूनतम सजा 3 साल से बढ़ाकर 7 साल कर दी गई है. वहीं आतंकवाद के खिलाफ नए प्रस्ताव में मौत की सजा है.
नए प्रस्ताव में मानहानि कानून भी बरकरार रखा गया है. इसके तहत दो साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों या सामुदायिक सेवा है. संगठित अपराध के विरुद्ध बिल्कुल नया कानून है, यदि इसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसमें मौत की सजा होगी.
नए कानून के तहत भारत में सजा के एक नए रूप में सामुदायिक सेवा यानी कम्यूनिटी सर्विस की शुरुआत होगी. महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों पर नया अध्याय जोड़ा गया है. मेरिटल रेप अपवाद को छुआ नहीं गया है, भारत में मेरिटल रेप अभी भी अपराध नहीं है. बलात्कार के लिए सज़ा बढ़ाई गई है. न्यूनतम सज़ा जो पहले 7 साल थी, अब 10 साल होगी.
16 साल से कम उम्र की नाबालिग के साथ बलात्कार के लिए अलग नया कानून बनाया गया है. इसके तहत सजा को बढ़ाकर 20 साल कर दिया गया है. ये एक तरह से उम्रकैद ही है. नए कानून के तहत नाबालिग से सामूहिक बलात्कार के लिए मौत की सज़ा है. बलात्कार पीड़ितों की पहचान की सुरक्षा के लिए नया कानून लाया जाएगा. इसमें दो साल तक की सजा और जुर्माना होगा. वहीं बच्चों के विरुद्ध अपराधों के लिए नया अध्याय- लावारिस छोड़ना, बच्चे के शव को ठिकाने लगाना, बाल तस्करी आदि शामिल है. वाहन दुर्घटना आदि मामलों में लापरवाही से मौत की सजा 2 साल से बढ़ाकर 7 साल कर दी गई है, साथ में जुर्माना भी है.
सड़क हादसों को लेकर आम जनता में एक बात मशहूर है कि किसी को कुचलकर भी आरोपी चालक पुलिस थाने से ही जमानत पाकर छूट जाता है. लेकिन हादसे में घायल या मृतक के परिजन इलाज कराने या शव लेने के लिए भी पुलिस और अस्पताल के चक्कर काटते रह जाते हैं. कई मामलों में तो दोषी सिद्ध होने पर सिर्फ जुर्माना भरकर ही छूट जाता है. लेकिन आपराधिक कानून में बदलाव को लेकर प्रस्तावित भारतीय न्याय संहिता 2023 में किसी की लापरवाही से मौत होती है तो आरोपी के लिए छूटना इतना आसान नहीं होगा. यानी आईपीसी के तहत लापरवाही से मौत या फिर जल्दबाजी या लापरवाही से हुई मौत के अपराध में पहले 2 साल की कैद या जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान था. लेकिन अब प्रस्तावित विधेयक में इसके लिए न्यूनतम सात साल कैद और जुर्माना भी देना होगा.
ऐसा अपराध जो गैर इरादतन हत्या की श्रेणी में नहीं आता है, आरोपी घटनास्थल से भाग जाता है या घटना के तुरंत बाद किसी पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को घटना की रिपोर्ट करने में विफल रहता है, तो उसे दोनों प्रकार यानी कैद और नकद जुर्माना दोनों से दंडित किया जाएगा. इसकी अवधि दस साल तक हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जाएगा.
पीएम मोदी ने आज़ादी के अमृत महोत्सव पर लाल क़िले की प्राचीर से कहा था कि 2047 तक ऐसा देश बनाना है, जिसमें ग़ुलामी की निशानी न हो. कहा जा रहा है कि ये तीनों क़ानून अंग्रेज़ियत से भरे हुए थे और ग़ुलामी की निशानी थे. इनका इरादा अंग्रेज़ी राज की रक्षा करना था. लोगों की भलाई के लिए नहीं था. पाश्चात्य न्याय प्रणाली दंड देने के अधिकार पर है. भारतीय न्याय व्यवस्था पीड़ित को न्याय देने की है और दंड देने की भी है. हमारी न्याय व्यवस्था के मूल सिद्धांतों की झलक इनमें नहीं दिखती थी. इसकी आत्मा भारतीय होगी. उद्देश्य भारतीय नागरिकों को संविधान प्रदत्त अधिकारों की रक्षा करना है और न्याय देना है.
18 राज्यों, सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट, 42 सांसद, विधायक, आईपीएस अधिकारी और केंद्रीय बलों के सुझाव आए. गृह मंत्री ने खुद करीब 58 औपचारिक और 100 अनौपचारिक समीक्षा की. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में 553 धाराएं हैं. भारतीय न्याय संहिता में 356 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में 170 धाराएं हैं.
सर्च और ज़ब्ती की वीडियोग्राफ़ी रिकॉर्डिंग मजिस्ट्रेट को भेजनी होगी. फ़ोरेंसिक सुधार किए जाएंगे. सात से अधिक वर्ष की सजा वाले अपराधों में फ़ोरेंसिक विशेषज्ञों से जांच जरूरी है. पुलिस की टीम से पहले फ़ोरेंसिक टीम जाएगी. अगले पांच साल में इंफ़्रास्ट्रक्चर तैयार किया जाएगा. हर जिले में तीन मोबाइल फ़ोरेंसिक वैन होगी. मोबाइल फ़ोरेंसिक लैब भी होंगे.
ज़ीरो FIR थाने की सीमा से बाहर लेकिन राज्य के भीतर होगी. ई-एफआईआर के लिए भी प्रावधान हैं. गिरफ़्तारी की सूचना के लिए प्रत्येक जिले और प्रत्येक थाने में एक पुलिस अधिकारी नामित होगा. पुलिस अधिकारी 90 दिन के भीतर जांच की प्रगति की सूचना डिजिटल माध्यम से देंगे. यौन हिंसा के मामले में पीड़ित का बयान महिला पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में होगा. माता-पिता या अभिभावक भी उपस्थित रह सकते हैं.
सात वर्ष से अधिक के कारावास के मामले में अभियोजन वापस लेना हो तो पीड़ित का पक्ष सुनना जरूरी होगा. राजद्रोह ख़त्म किया गया है. कम्यूनिटी सर्विस सजा के तौर पर छोटे मोटे मामलों में समरी ट्रायल होंगे. 33% मामले अदालत के बाहर सुलझाने की कोशिश होगी. तीन वर्ष तक की सजा में मजिस्ट्रेट समरी ट्रायल कर सकता है.
आरोप पत्र दायर करने के बाद आगे की जांच अगर ज़रूरी है, तो उसे 90 दिनों में पूरा किया जाए. 90 दिनों से अधिक विस्तार केवल कोर्ट की अनुमति से होगा. वारंट के मामले में आरोप तय होने के बाद पहली सुनवाई की तारीख़ से 60 दिन की समय सीमा होगी और तीन साल में सजा होगी.
आरोपित व्यक्ति आरोप तय होने के नोटिस की तारीख़ से साठ दिन के भीतर रिहाई की अपील कर सकता है. बहस पूरी होने के तीस दिनों के भीतर अगर जज फ़ैसला दे तो इसे विशिष्ट कारणों से साठ दिन तक बढ़ाया जा सकेगा. दूसरे पक्ष की आपत्ति के बाद अधिकतम दो स्थगन दिए जा सकेंगे.
अंडर ट्रायल में पहली बार अपराधी एक तिहाई कारावास काट लिया तो ज़मानत पर रिहा कर दिया जाएगा. विचाराधीन क़ैदी आधी या एक तिहाई अवधि पूरी कर लेता है तो जेल अधीक्षक को तुरंत लिखित आवेदन दे. विचाराधीन क़ैदी को आजीवन कारावास या मौत की सजा में रिहाई नहीं होगी.
पहली बार आतंकवाद और संगठित अपराध की व्याख्या की गई. महिलाओं के प्रति अपराध में शादी, रोजगार और पदोन्नति के झूठे वादे पर यौन संबंध नए अपराध की श्रेणी में है. गैंगरेप के सभी मामलों में बीस साल या आजीवन कारावास की सजा है. 18 साल से कम उम्र की बच्ची से बलात्कार में आजीवन कारावास या मृत्यु दंड की सजा है.
मॉब लिंचिंग से जुड़े नए प्रावधान में सात साल से आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक की सजा है. 324 में अधिक कठोर दंड है. जुर्माना दस से 500₹ था, इसे बढ़ाया गया है.
घोषित अपराधी (जैसे दाऊद इब्राहिम) की अनुपस्थिति में मुक़दमा चलाने का नया प्रावधान है. अपराध की आय (जैसे विजय माल्या) से जुड़ी संपत्ति को कुर्क या ज़ब्त करने में नई धारा है. UAPA, MACOCA और NDPS जैसे मौजूदा क़ानून बरकरार रहेंगे. जिनमें सजा नहीं हुई है, इन सभी मुक़दमों में नए कानून की अधिसूचना के बाद नए क़ानूनों के हिसाब से मुक़दमा चलेगा.