- राष्ट्रपति ने विकसित भारत - रोज़गार और आजीविका के लिए गारंटी मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025 को मंजूरी दी है
- नया कानून मनरेगा की जगह लेगा. ग्रामीण रोजगार के लिए नियम बनाने के लिए मंत्रालय स्टेक होल्डर्स से सलाह लेगा
- अधिनियम के तहत प्रति वित्तीय वर्ष रोजगार की वैधानिक गारंटी 125 दिनों तक बढ़ाई गई है
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मनरेगा की जगह लाये गए नए "विकसित भारत - रोज़गार और आजीविका के लिए गारंटी मिशन (ग्रामीण) (VB - G RAM G) विधेयक, 2025 को मंज़ूरी दे दी है. लोक सभा में इसी हफ्ते बुधवार को पारित होने के बाद "जी राम जी" विधेयक गुरुवार देर रात राज्य सभा में पारित हुआ था, जिसके बाद इसे राष्ट्रपति की मंज़ूरी के लिए भेजा गया था.
अब राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बाद दुनिया के सबसे बड़े रोज़गार गारंटी योजना मनरेगा की जगह लाये गए नए जी राम जी कानून को देशभर में लागू करने के लिए रूल्स फ्रेम किये जायेंगे. इसके लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय स्टेक होल्डर्स के साथ सलाह-मशविरा करेगा.
ग्रामीण विकास मंत्रालय ने कहा, "यह पारदर्शी, नियम-आधारित वित्तपोषण, जवाबदेही तंत्र, प्रौद्योगिकी (टेक्नालजी)-सक्षम समावेशन तथा कंवर्जेंस आधारित विकास को एकीकृत करता है, ताकि ग्रामीण रोज़गार न केवल आय सुरक्षा प्रदान करे, बल्कि टिकाऊ आजीविकाओं, सुदृढ़ परिसंपत्तियों और दीर्घकालिक ग्रामीण समृद्धि में भी योगदान दे."
ग्रामीण विकास मंत्रालय के मुताबिक, इस योजना के लिए इसी साल ₹1,51,282 करोड़ से अधिक की धनराशि प्रस्तावित है, ताकि रोजगार देने के लिए पर्याप्त पैसा हो, और उस पैसे से गांव का सम्पूर्ण विकास हो सके.
इसमें एक और विशेष प्रावधान किया गया है. प्रशासनिक खर्च मौजूदा 6% से बढ़ाकर 9% किया गया है. यानि "जी राम जी योजना" के लिए प्रस्तावित कुल राशि ₹1,51,282 करोड़ में से करीब ₹13,000 करोड़ रुपये नए रोज़गार गारंटी योजना के तहत काम कराने वाले पंचायत सचिव, रोजगार सहायक सहित टेक्निकल स्टाफ के वेतन और दूसरे कार्यान्वयन से जुड़े कामों पर खर्च होगा.
रोजगार की गारंटी और रोजगार की मांग का अधिकार
यह अधिनियम रोज़गार की मांग के अधिकार को कमज़ोर नहीं करता है. इसके विपरीत, धारा 5(1) सरकार पर पात्र ग्रामीण परिवारों को कम से कम 125 दिनों के गारंटीकृत मज़दूरी रोज़गार प्रदान करने का स्पष्ट वैधानिक दायित्व निर्धारित करती है. गारंटीकृत दिनों में की गई यह वृद्धि, सुदृढ़ की गई जवाबदेही और शिकायत निवारण तंत्र के साथ मिलकर, इस अधिकार की प्रवर्तनीयता को और मज़बूत करती है.
मानक आधारित वित्तपोषण और रोज़गार प्रावधान
मानक आधारित (नॉर्मेटिव) आवंटनों की ओर किया गया परिवर्तन बजट निर्धारण और निधि प्रवाह की व्यवस्थाओं से संबंधित है और इससे रोज़गार के कानूनी अधिकार पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता. धाराएं 4(5) और 22(4) नियम-आधारित और पूर्वानुमेय आवंटन सुनिश्चित करती हैं, जबकि रोज़गार अथवा बेरोज़गारी भत्ता प्रदान करने का वैधानिक दायित्व यथावत बना रहता है.
विकेन्द्रीकरण और पंचायतों की भूमिका
यह अधिनियम योजना बनाने या क्रियान्वयन का केंद्रीकरण नहीं करता है. धाराएं 16 से 19 तक, पंचायतों, कार्यक्रम अधिकारियों और जिला प्राधिकारियों में, उपयुक्त स्तरों पर योजना, क्रियान्वयन और निगरानी की शक्तियां निहित करती हैं. राष्ट्रीय स्तर पर केवल दृश्यता, कन्वर्जेंस और समन्वय किया जाएगा, न कि स्थानीय निर्णय लेने के अधिकार लिए जाएंगे.
रोजगार और परिसंपत्ति सृजन
यह अधिनियम 125 दिनों की बढ़ी हुई आजीविका की वैधानिक गारंटी को स्थापित तो करता ही है, साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि रोज़गार उत्पादक, टिकाऊ और जलवायु-अनुकूल परिसंपत्तियों के निर्माण में योगदान दे. रोज़गार सृजन और परिसंपत्ति निर्माण को परस्पर पूरक उद्देश्यों के रूप में परिकल्पित किया गया है, जो दीर्घकालिक ग्रामीण विकास और अनुकूलन को समर्थन प्रदान करते हैं (धारा 4(2) एवं अनुसूची–I)
प्रौद्योगिकी और समावेशन
अधिनियम के अंतर्गत प्रौद्योगिकी को एक बाधा नहीं, बल्कि एक सक्षम माध्यम के रूप में परिकल्पित किया गया है. धाराएं 23 और 24, बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण, जियो-टैगिंग और रियल-टाइम डैशबोर्ड के माध्यम से प्रौद्योगिकी (टेक्नालजी)-सक्षम पारदर्शिता का प्रावधान करती हैं, जबकि धारा 20 ग्राम सभाओं द्वारा सोशल ऑडिट को सुदृढ़ करती है, जिससे सामुदायिक निगरानी, पारदर्शिता और समावेशन सुनिश्चित होता है.
बेरोज़गारी भत्ता
यह अधिनियम, बेरोजगारी भत्ते के संबंध में पहले के अयोग्य ठहराए (निरर्हता) जाने वाले प्रावधानों को हटाता है और इसे एक अर्थपूर्ण वैधानिक सुरक्षा उपाय के रूप में पुनर्स्थापित करता है. जहां निर्धारित अवधि के भीतर रोज़गार उपलब्ध नहीं कराया जाता है, वहां पंद्रह दिनों के पश्चात बेरोज़गारी भत्ता देय हो जाता है.












