- आज मुंशी प्रेमचंद की जयंती है. स्त्री को लेकर उनके विचार महान थे, जो उनकी कहानियों व उपन्यासों में दिखता है.
- मुंशी प्रेमचंद ने अपने साहित्य में स्त्री को सहनशील, स्वाभिमानी और प्रबल व्यक्तित्व के रूप में दिखाया है.
- प्रेमचंद ने स्त्री की तुलना धरती से की, जो धैर्यवान, शांति-संपन्न और सहिष्णु है. मातृत्व को बड़ी साधना कहा.
Premchand Jayanti 2025: हिंदी साहित्य के मूर्धन्य कथाकार और उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) ने अपने साहित्य में स्त्री और उसके चरित्र को बहुत ही गहराई और संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया है. उनके उपन्यासों और कहानियों में स्त्री का चित्रण सहनशील, त्यागमयी, स्वाभिमानी और प्रबल व्यक्तित्व के रूप में हुआ है. एक ऐसे दौर में, जब महिलाओं के चरित्र पर तरह-तरह की बातें सुनने को मिल रही हैं, स्त्री को लेकर प्रेमचंद के विचार (Premchand's Opinions on women) अनुकरणीय हो जाते हैं.
पिछले दिनों कथावाचक अनिरुद्धाचार्य ने भी पिछले दिनों महिलाओं को लेकर कुछ ऐसा बयान (4-5 जगह मुंह मारने...) दिया, जिसने विवाद खड़ा कर दिया. मौलाना साजिद राशिदी ने भी पिछले दिनों सपा सांसद और अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी थी. बाद में वृंदावन में रह रहे संत प्रेमानंद के भी विचार सामने आए थे, जिसमें शादियों की असफलता के प्रश्न पर उन्होंने कुछ युवाओं (महिला-पुरुष) के चरित्र में गिरावट की बात की और लिव-इन-रिलेशनशिप पर भी सवाल उठाए थे.
बहरहाल आज प्रेमचंद की जयंती पर स्त्री पर उनके कुछ विचार जानते हैं, जो उनके उपन्यास, कहानी के पात्रों और अन्य रचनाओं में मिलते हैं. प्रेमचंद ने स्त्री के विविध आयामों को उसकी सहनशीलता, त्याग, स्वाभिमान, सेवा-भावना, मातृत्व और आत्मसम्मान को रेखांकित किया है, साथ ही पुरुष प्रधान समाज की सीमाओं पर भी प्रश्न उठाए हैं.
स्त्री की तुलना धरती से
स्त्री पृथ्वी की भांति धैर्यवान, शांति-संपन्न, सहिष्णु है. पुरुष में नारी के गुण आ जाते हैं तो वह महात्मा बन जाता है. नारी में पुरुष के गुण आ जाते हैं तो वह कुलटा हो जाती है.
- गोदान उपन्यास
पवित्रता ऐसी कि कोई...
स्त्री का मेरा आदर्श त्याग है, सेवा है, पवित्रता है- सब कुछ एक में मिलाजुला. त्याग जिसका अंत नहीं, सेवा सदैव सहर्ष और पवित्रता ऐसी कि कोई कभी उस पर उंगली न उठा सके.
- पत्र, इंद्रनाथ मदान के नाम (1934)
मातृत्व सबसे बड़ी साधना
नारी केवल माता है, और इसके उपरांत वह जो कुछ है, वह सब मातृत्व का उपक्रम मात्र. मातृत्व संसार की सबसे बड़ी साधना, सबसे बड़ी तपस्या, सबसे बड़ा त्याग और सबसे महान विजय है.
- कलम का सिपाही (प्रेमचंद की जीवनी)
वो स्त्री सराहनीय नहीं जो...
मैं उस स्त्री को सराहनीय नहीं समझता जो एक दुराचारी पुरुष से केवल इसलिए भक्ति करती है कि वह उसका पति है. वह अपने उस जीवन को, जो सार्थक हो सकता है, नष्ट कर देती है."
- प्रेमाश्रम उपन्यास
पुरुष स्त्री से पीछे, जबतक..
पुरुष में थोड़ी-सी पशुता होती है जिसे वह इरादा करके भी हटा नहीं सकता. वही पशुता उसे पुरुष बनाती है. विकास के क्रम में वह स्त्री से पीछे है. जिस दिन वह पूर्ण विकास को पहुंचेगा, वह भी स्त्री हो जायेगा.
- गोदान उपन्यास