जोशीमठ में जमीन में आई दरारों के लिए बिजली कंपनी एनटीपीसी जिम्मेदार है या नहीं, उत्तराखंड सरकार इसकी जांच करेगी. मिली जानकारी अनुसार हिमालयी शहर में जमीन के धंसने के कारणों की जांच आठ इंस्टिट्यूट करेंगे. सभी पहाड़ी क्षेत्रों की वहन क्षमता की जांच की जाएगी. "डूबते" शहर में स्थिति का आकलन करने के लिए कैबिनेट की बैठक में महत्वपूर्ण निर्णय किए गए हैं.
गौरतलब है कि पहाड़ों के बीच में बसे जोशीमठ में सैकड़ों घरों और इमारतों में दरारें आ गई हैं, जिस कारण अधिकारियों को "सावधानीपूर्वक" दो होटलों को तोड़ना पड़ा. स्थानीय निवासियों और विशेषज्ञों ने क्षेत्र में पॉवर प्लांट निर्माण का विरोध किया है, जो आंशिक रूप से भूमि डूबने के लिए जिम्मेदार है.
हालांकि, सरकारी स्वामित्व वाली राष्ट्रीय तापविद्युत निगम लिमिटेड (एनटीपीसी) ने बिजली मंत्रालय से कहा है कि इसकी परियोजना की इस क्षेत्र के जमीन धंसने में कोई भूमिका नहीं है. उसने कहा कि तपोवन विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना से जुड़ी 12 किलोमीटर लंबी सुरंग जोशीमठ शहर से एक किलोमीटर दूर है और जमीन से कम से कम एक किलोमीटर नीचे है.
उत्तराखंड के जोशीमठ में सैकड़ों घरों और इमारतों में दरारें आने के लिए जमीन के धंसने को कारण बताया जा रहा है. केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने 10 जनवरी को जोशीमठ में जमीन धंसने की घटना की समीक्षा के लिए एनटीपीसी के अधिकारियों को तलब किया था. इसके एक दिन बाद भारत की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक कंपनी ने मंत्रालय को अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए पत्र लिखा.
उसने लिखा कि तपोवन विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना के उत्पादन के लिए बांध स्थल पर पानी के अंतर्ग्रहण को बिजलीघर से जोड़ने वाली एक हेड ट्रेस टनल (एचआरटी) “जोशीमठ शहर के नीचे से नहीं गुजर रही है”. एनटीपीसी ने पत्र में लिखा, “सुरंग जोशीमठ शहर की बाहरी सीमा से लगभग 1.1 किमी की क्षैतिज दूरी पर है और जमीनी सतह से लगभग 1.1 किमी नीचे है.”
एनटीपीसी ने कहा कि जोशीमठ में जमीन धंसने का मामला काफी पुराना है जो पहली बार 1976 में देखा गया था. एनटीपीसी ने राज्य सरकार द्वारा उसी साल नियुक्त एम.सी. मिश्रा समिति का हवाला देते हुए दरारों व जमीन धंसने के लिये “हिल वॉश (चट्टान या ढलान के आधार पर इकट्ठा मलबा), झुकाव का प्राकृतिक कोण, रिसाव के कारण खेती का क्षेत्र और भू-क्षरण” को जिम्मेदार बताया.
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