मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में होने वाले विधानसभा चुनावों (Assembly Elections 2023) से पहले सत्ताधारी दलों में हज़ारों करोड़ की नई सरकारी योजनाएं लॉन्च करने की होड़ सी लगी हुई है. वोटरों को लुभाने के लिए मुफ्त की रेवड़ियां बांटने (Freebies Culture) की इस राजनीतिक जद्दोजहद के बीच ये सवाल बेहद अहम है कि लाखों करोड़ों के कर्ज में डूबी इनमें से 4 राज्य सरकारों (मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना) के पास क्या इन योजनाओं के लिए अपने फंड्स हैं?
विधानसभा चुनावों से ठीक पहले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महिलाओं के लिए सरकारी नौकरी में आरक्षण, सस्ते एलपीजी सिलेंडर जैसी घोषणाएं की. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ओल्ड पेंशन स्कीम और मुख्यमंत्री निशुल्क अन्नपूर्णा फूड जैसी कई स्कीमें लॉन्च कर दीं. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ग्रामीण इलाकों में बेघर लोगों के लिए नई आवास योजना लॉन्च की, तो तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने स्कूली बच्चों के लिए मुफ्त में नाश्ते की योजना जैसी कई नयी योजनाएं शुरू की हैं.
ये घोषणाएं ऐसे वक्त पर की गई हैं, जब ये सभी राज्य गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा हाल के मॉनसून सत्र के दौरान संसद में रखे गए आंकड़े दिखाते हैं कि मार्च, 2019 से मार्च, 2023 के बीच पिछले 5 साल में इन राज्यों पर लाखों करोड़ के कर्ज हैं.
इस चुनावी साल में लाखों करोड़ों रुपयों के कर्ज में डूबी राज्य सरकारों द्वारा वोटरों को लुभाने के लिए नई योजनाएं लॉन्च करने का फैसला कई बड़े सवाल खड़े करता है. सबसे अहम सवाल ये कि क्या वित्तीय संकट से जूझ रहीं ये राज्य सरकारें इन नई योजनाओं को लागू करने के लिए जरूरी वित्तीय संसद जुटा पाएंगी?
दरअसल, भारतीय राजनीति में चुनावों से पहले लोक-लुभावने घोषणाओं के ऐलान का ये ट्रेंड पुराना है. काउंसिल ऑफ सोशल डेवलपमेंट के डायरेक्टर नित्यानंद कहते हैं, "राज्यों में वित्तीय संकट का दायरा बढ़ता जा रहा है. उनके पास विकल्प कम हैं. वो या तो लोन रिशेड्यूल करवाएं या फिर बुनियादी सेक्टरों जैसे शिक्षा, स्वस्थ्य पर जरूरी खर्च में कटौती करें".
ज़ाहिर है राज्यों को ये समझना होगा कि बढ़ते वित्तीय संकट से निपटने की चुनौती बड़ी है. उन्हें इससे निपटने के लिए बड़े स्तर पर जल्दी पहल करना होगा.