जनसंख्या नीति से चीन जैसा नुकसान या देश के रोजगार-संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल, जानिए विशेषज्ञों की राय 

आलोचकों का कहना है कि इससे महिला-पुरुष अनुपात (Sex Ratio) गिरेगा, गर्भपात के मामले बढ़ेंगे. जनसंख्या नियंत्रण (Population Control Policy) नीति के समर्थकों का कहना है कि शिक्षा, स्वास्थ्य के संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल व रोजगार देने के लिए यह जरूरी है

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Population Control को लेकर देश में नए सिरे से छिड़ गई है बहस
नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश की नई जनसंख्या नीति (Uttar Pradesh Two Child Policy) को लेकर राजनीतिक मतभेद के सुर तो उभर कर आए ही हैं, साथ ही विशेषज्ञों की राय भी इस पर अलग-अलग है. आलोचकों का कहना है कि ऐसी जनसंख्या नीति या कानून लाया जाता है तो देश में महिला-पुरुष अनुपात (Sex Ratio) गिरेगा, गैरकानूनी गर्भपात के मामले बढ़ेंगे और बड़े और सस्ती कामगार आबादी के तौर पर अर्थव्यवस्था में जो लाभ हमें मिल रहा है, वो छिन जाएगा. वहीं जनसंख्या नियंत्रण (Population Control Policy) नीति के पक्ष में विशेषज्ञों का कहना है कि शिक्षा, स्वास्थ्य के संसाधनों को बेहतर तरीके से पहुंचाने और रोजगार की चुनौती को पूरा करने के लिए ऐसी नीतियों की लंबे समय से दरकार है.

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जनसंख्या के मामलों से जुड़े संगठन पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (Population Foundation Of India)  की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा का कहना है कि दुनिया भर में कई उदाहरण हैं कि देश के सतत विकास के लिए स्थिर प्रजनन दर और आयु वर्ग वाली आबादी बेहद जरूरी है. यह भ्रम है कि भारत की आबादी बेहद तेजी से बढ़ रही है और सीमित संसाधनों के कारण इस पर काबू पाना जरूरी है. मुतरेजा ने कहा कि देश की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate) में वर्ष 2000 में राष्ट्रीय जनसंख्या नीति अपनाए जाने के बाद से गिरावट आ रही है. 

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सभी सामाजिक औऱ धार्मिक समूहों में महिलाओं के उनके जीवन काल में जन्मे बच्चों की औसत संख्या टीएफआर कहलाती है. वर्ष 2000 में यह 3.2 थी जो अब 2018 में घटकर 2.2 रह गई है. मुत्तरेजा का कहना है कि अगर हम नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (2015-16) पर नजर डालें तो हर धर्म में इसमें गिरावट आई है. मुस्लिमों में यह गिरावट सबसे ज्यादा 2.6 फीसदी रही है. NFHS-5 सर्वे ( 2019-20) के पहले चरण की बात करें तो यूपी, बिहार जैसे जिन 17 राज्यों व 5 केंद्रशासित प्रदेशों में सर्वे हुआ है, उसके अनुसार सिर्फ बिहार, मणिपुर और मेघालय में ही प्रजनन दर 2.1 का लक्ष्य हासिल नहीं हो पाया है. यानी कि ज्यादातर राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों ने प्रजनन दर उस संतोषनजक स्तर पर पहुंच चुकी है, जितनी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जनसंख्या के बदलाव के लिए जरूरी है. NFHS-4 यह भी कहता है कि औसतन ज्यादातर अभिभावक दो से कम बच्चे चाहते हैं या पहले से ही उनके परिवार से में इतने या इससे कम बच्चे हैं.   

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उनका कहना है कि अगर जनसंख्या नियंत्रण को लेकर बाध्यकारी या दंडात्मक तरीके अपनाए जाते हैं तो देश में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का अनुपात गिर सकता है. देश में परिवारों में बेटों की चाहत अभी भी कोई कमी नहीं आई है. ऐसे में असुरक्षित और गैरकानूनी तरीके से गर्भपात के मामले भी बढ़ सकते हैं. चीन इसका ताजा उदाहरण हैं, जहां 1 बच्चे और फिर 2 बच्चों की नीति (two child policy) के कारण असंतुलन पैदा हो गया है.

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एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन और भारत में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या (male female sex ratio) करीब 7 करोड़ कम है. 20 साल से कम आयु वर्ग की बात करें तो लड़कियों के मुकाबले लड़कों की तादाद 5 करोड़ ज्यादा है. ऐसे असंतुलन के कारण चीन को 3 बच्चे पैदा करने की इजाजत देनी पड़ी, लेकिन जनसंख्या विशेषज्ञों का कहना है कि यह अंतर अब पाटा नहीं जा सकता. चीन में कामकाजी युवाओं के मुकाबले बूढ़ों की बढ़ती आबादी बड़ी समस्या बन गई है.

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अगर भारत में भी ऐसे ही कामगार आबादी घट गई तो अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ना तय है.  पॉपुलेशन फाउंडेशन (Population Foundation Of India) ने एक बयान में कहा कि  इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूवेशन इंडिया (IHME) का अनुमान है कि 2048 तक देश की आबादी 1.6 अरब के शिखर को छू लेगी. इसके बाद इसमें तेज गिरावट देखने को मिलेगी. अनुमान है कि वर्ष 2100 तक भारत में प्रजनन दर 1.3 पर आ जाएगी और आबादी घटकर 1 अरब 10 करोड़ तक आ जाएगी. इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि लड़कियों की शिक्षा (female education) का स्तर सुधरने और गर्भनिरोधक साधनों (contraceptives) की आसानी से उपलब्धता से प्रजनन दर गिरी है.

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पड़ोसी और मुस्लिम बहुल देश बांग्लादेश ( Muslim dominated Bangladesh) ने भी गर्भनिरोधक साधनों की उपलब्धता बढ़ाते हुए प्रजनन दर में कमी में कामयाबी पाई है.श्रीलंका ने लड़कियों की शिक्षा में सुधार कर ऐसा कर दिखाया. भारत में तमिलनाडु और केरल इसके उदाहरण हैं.भारत युवा देश है, जिसकी एक तिहाई से ज्यादा आबादी 15 से 34 वर्ष के आयु वर्ग की है. लिहाजा जरूरत है कि आबादी के इस समूह की जरूरतों को शिक्षा, स्किल डेवलपमेंट, रोजगार के अवसर के जरिये पूरा करें.

वहीं शिक्षाविद और सामाजिक मामलों पर खुलकर अपनी राय रखने वाले प्रोफेसर जेएस राजपूत का कहना है कि जब किसी राज्य के पास ज्यादा संसाधन होंगे, तभी वो शिक्षा व स्वास्थ्य पर ज्यादा बेहतर खर्च कर पाएगा. अगर आबादी ज्यादा होगी तो यह कैसे संभव हो पाएगा. उन्होंने कहा कि अगर कम बच्चे पैदा करने के लिए सकारात्मक प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं तो इसमें गलत क्या है. पिछले 4-5 दशकों में इस पर  ध्यान दिया गया होता तो ये नौबत नहीं आती.

एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक राजपूत ने कहा कि जनसंख्या नीति के लिए भारत चीन जैसी कोई बाध्यकारी नीति नहीं ला रहा है. न ही इसमें सजा जैसा कोई प्रावधान नहीं है, ऐसे में लिंगानुपात में कमी जैसी चिंताओं का सवाल कहां उठता है. साथ ही जनसंख्या नीति पर सभी दलों और समूहों से सुझाव भी मांगे गए हैं, कोई भी अपनी राय इसके जरिये दे सकता है, ताकि बेहतर नीति लागू की जा सके. 

गौरतलब है कि यूपी में प्रजनन दर अभी 2.7 है, जो राष्ट्रीय औसत 2.2 से ज्यादा है. यूपी की नई जनसंख्या नीति के जरिये इसे 2.23 तक 2.1 और 2026 तक 1.9 तक लाए जाने का लक्ष्य है. यूपी की आबादी अभी करीब 24 करोड़ है. राज्यों को छोड़ दें, भारत, चीन और इंडोनेशिया जैसे तीन देशों के बाद उसकी जनसंख्या सबसे ज्यादा है. यहां जनसंख्या घनत्व प्रति वर्ग किलोमीटर 828 है.

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