कांग्रेस ने एक बार फिर से सिद्धारमैया को कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाया है. चार दिनों तक चली कई बैठकों और लंबी चर्चाओं के बाद सिद्धारमैया के नाम पर अंतिम मुहर लगी. 2013 में सिद्धारमैया ने पहली बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी. इस बार कर्नाटक विधानसभा चुनाव का शंखनाद होते ही सिद्धारमैया ने ऐलान कर दिया था कि ये उनका आखिरी चुनाव होगा.
सिद्धारमैया कर्नाटक की राजनीति का बड़ा नाम हैं. पेशे से वकील रहे सिद्धारमैया ने 1978 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा था. हालांकि, सिद्धारमैया के माता-पिता चाहते थे कि वह डॉक्टर बनें, लेकिन उन्होंने वकालत का पेशा चुना. इसके बाद उन्होंने वकालत को छोड़ राजनीति की राह पकड़ी और 'भूख मुक्त कर्नाटक' के सपने को सच करने निकल पड़े.
2013 में पहली बार बने थे कर्नाटक के मुख्यमंत्री
सिद्धारमैया कर्नाटक विधानसभा में विभिन्न पदों पर रहे. विधायक, वित्त मंत्री, उपमुख्यमंत्री के बाद साल 2013 में उन्होंने कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. 75 साल के सिद्धारमैया कुरुबा समुदाय के नेता हैं, उनका अन्य समुदायों पर भी अच्छा प्रभाव है. सिद्धारमैया किसानों के मुद्दों को प्रमुखता से उठाते रहे हैं, वह स्पष्ट बोलने वाले व्यक्ति हैं, यही वजह है कि उन्हें जनता का साथ मिलता रहा और अब वो दूसरी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बन रहे हैं.
देवेगौड़ा का साथ छोड़ थामा था कांग्रेस का हाथ
कांग्रेस में शामिल होने से पहले सिद्धारमैया ने सालों तक एच. डी. देवेगौड़ा के साथ निष्ठापूर्ण तरीके से काम किया. ऐसे में माना जा रहा था कि पार्टी का अगला मुखिया सिद्धारमैया को ही बनाया जाएगा. लेकिन जब पार्टी की कमान सौंपने की बात आई, तब देवेगौड़ा ने पार्टी के वफ़ादार सिद्धारमैया की जगह अपने बेटे कुमारस्वामी को चुना.
कुमारस्वामी ने शुरुआत में राजनीति में कदम रखने से इनकार कर दिया था और फिल्म इंडस्ट्री में सालों तक सक्रिय रहे. लेकिन पार्टी की कमान मिलने के बाद वह पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय हो गए. ऐसे में सिद्धारमैया को समझ में आने लगा था कि वह जेडी(एस) में रहते हुए वो मुकाम हासिल नहीं कर पाएंगे, जिसकी वह ख्वाहिश रखते हैं. इसके बाद एच. डी. देवेगौड़ा के साथ मतभेदों के बाद, 2005-06 में सिद्धारमैया को जेडी(एस) से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. फिर उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया और कर्नाटक की राजनीति के शिखर तक पहुंचे.
कांग्रेस के नेताओं को सिद्धारमैया के साथ काम करने का मौका तब मिला, जब देवेगौड़ा ने उन्हें 2004 में कांग्रेस-जनता दल (एस) की गठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री बनाया. तब उन्होंने नहीं सोचा होगी कि वह कांग्रेस पार्टी में शामिल होंगे और मुख्यमंत्री पद संभालेंगे. उन्होंने अपने मूल निर्वाचन क्षेत्र वरुणा से अपना आखिरी चुनाव लड़ा और अब वो अगले पांच साल तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री होंगे.
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