बच्चों के लिए वरदान बना PCV टीका, 8 साल में मामलों में 50% की कमी: ICMR

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. हेमंत शेवडे ने बताया कि शोध के दौरान जिन बच्चों के नमूनों में निमोकोकल मैनिंजाइटिस की पुष्टि हुई, उनमें से कुछ के नमूनों की जांच करते हुए सीरोटाइप का भी विश्लेषण किया गया.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins
टीकाकरण के शुरू होने के बाद से बच्चों में निमोकोकल मैनिंजाइटिस के मामलों में गिरावट.
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले आठ वर्षों में न्यूमोकोकल कंजुगेट टीके से निमोनिया के मामलों में 50 प्रतिशत से अधिक कमी आई है.
  • पीसीवी टीका 2017 में राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल किया गया था और अब पूरे देश में बच्चों को उपलब्ध कराया जा रहा है.
  • टीकाकरण के बाद पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में निमोकोकल मैनिंजाइटिस के मामलों में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है, जो पहले चार प्रतिशत थी.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही? हमें बताएं।
नई दिल्ली:

छोटे बच्चों को निमोनिया और मैनिंजाइटिस जैसी गंभीर बीमारियों से बचाने के लिए शुरू किया गया न्यूमोकोकल कंजुगेट टीका (PCV) अब असर दिखा रहा है. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) की एक नई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि पिछले आठ सालों में इस टीके की वजह से निमोनिया के मामलों में 50 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आई है.

पीसीवी का क्या असर?

केंद्र सरकार ने साल 2017 में पीसीवी को राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल किया था. शुरुआत में यह सिर्फ 6 राज्यों में उपलब्ध था, लेकिन 2021 से इसे पूरे देश में लागू कर दिया गया. यह टीका स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया (Streptococcus Pneumoniae) नाम के बैक्टीरिया से बचाव करता है, जो बच्चों में निमोनिया और मैनिंजाइटिस जैसी जानलेवा बीमारियों की वजह बनता है. यह टीका बच्चों और कुछ खास बीमारियों से पीड़ित वयस्कों में इस्तेमाल किया जा सकता है.

रिपोर्ट के अनुसार, टीकाकरण के शुरू होने के बाद से पांच साल से कम उम्र के बच्चों में निमोकोकल मैनिंजाइटिस के मामलों में बड़ी गिरावट दर्ज की जा रही है. इस बीमारी के कारण भारत में हर साल 17 से 30 फीसदी तक मासूम बच्चों की मौत हो रही है.

Advertisement

कैसे किया गया अध्ययन?

आईसीएमआर और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी (NIE) ने टीकाकरण का असर जानने के लिए देशभर के 32 अस्पतालों में पांच वर्ष से कम उम्र के उन बच्चों को लिया, जिन्हें मैनिंजाइटिस की आशंका के चलते भर्ती होना पड़ा. नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. हेमंत शेवडे ने बताया कि शोध के दौरान जिन बच्चों के नमूनों में निमोकोकल मैनिंजाइटिस की पुष्टि हुई, उनमें से कुछ के नमूनों की जांच करते हुए सीरोटाइप का भी विश्लेषण किया गया. 

Advertisement

उन्होंने कहा कि हमने सभी बच्चों को तीन श्रेणियों में बांटा. वैक्सीनशन से पहले वाले संक्रमित बच्चों को अलग रखा जबकि टीकाकरण शुरू होने के एक साल के भीतर और उसके बाद वाले बच्चों को अलग ग्रुप में रखा गया. कुल 12,901 बच्चों पर यह अध्ययन हुआ. इसमें से 2.7% (348) बच्चों में निमोकोकल मैनिंजाइटिस की पुष्टि हुई. टीकाकरण से पहले यह दर 4% थी, जो अब घटकर 2.2% रह गई है. यानी टीके की वजह से बीमारी के मामले लगभग आधे रह गए. 

Advertisement

टीका लगवाने वाले बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी के निदेशक निदेशक डॉ. मनोज मुर्हेरकर ने बताया कि 2017 में जब यह टीका शुरू हुआ था, तब सिर्फ 6.3% बच्चों को ही यह टीका मिल पाया था. लेकिन 2021 में जब इसे सभी राज्यों में लागू किया गया, तब यह आंकड़ा बढ़कर 53.2% तक पहुंच गया. इसका बड़ा कारण भारत में सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा इस टीके का घरेलू उत्पादन होना है, जिससे इसकी उपलब्धता बढ़ गई क्यूंकि पहले फाइजर कंपनी का ही टीका उपलब्ध था.

Advertisement

रिपोर्ट में और क्या कहा गया?

जिन बच्चों को मैनिंजाइटिस हुआ, उनमें से 81% इलाज से ठीक हो गए. 6.2% बच्चों की अस्पताल में मौत हुई, जबकि 12% का इलाज अधूरा रह गया. कुछ मामलों में अलग-अलग तरह के बैक्टीरिया (सीरोटाइप) भी मिले, जिन पर शोध जारी है.

निगरानी और जागरूकता जरूरी

एक्सपर्टस का कहना है कि पीसीवी टीकाकरण का अब तक का असर सकारात्मक है, लेकिन बीमारी के बैक्टीरिया में बदलाव को लगातार मॉनिटर करना जरूरी है ताकि भविष्य में भी बच्चों को सुरक्षित रखा जा सके.

Featured Video Of The Day
Jayant Chaudhary On Kanwar Yatra: दुकानों के नेमप्लेट के मुद्दे पर जयंत चौधरी का बड़ा बयान