उम्मीदों की रेल... जानिए पहलगाम हमले के बाद कश्मीर के लिए कैसे जरूरी बन गया चिनाब ब्रिज

आतंकवादी हमले के दो महीने से भी कम समय बाद हो रहा चिनाब ब्रिज का उद्घाटन केंद्र की ओर से एक बड़ा संदेश भी है, कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह कश्मीर में अपने विकास के उद्देश्य से पीछे नहीं हटेगा.

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कश्मीर:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन दिन बाद जम्मू-कश्मीर जाएंगे. यहां वो 'नायाब इंजीनियरिंग' का जीता जागता नमूना चिनाब ब्रिज का उद्घाटन करेंगे. दुनिया के इस सबसे ऊंचे रेलवे ब्रिज के उद्घाटन के बाद पीएम कटरा-श्रीनगर वंदे भारत ट्रेन सेवा को भी हरी झंडी दिखाएंगे, जो कश्मीर में पर्यटन के लिए एक बड़ा बदलाव साबित होगी.

पहलगाम आतंकी हमले के बाद ये और अहम हो जाता है. इस हमले में 26 निर्दोष लोगों की हत्या कर दी गई थी, जिससे बीत रहे बेहतरीन पर्यटन सीजन को करारा धक्का लगा था. कश्मीर अब एक बार फिर से पर्यटकों के स्वागत के लिए उत्सुक है. रेलवे की यह पहल शायद वही हो सकती है, जिसकी यहां के पर्यटन को जरूरत है.

यह रेल पुल उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल लिंक परियोजना का हिस्सा है और सरकार ने कहा है कि यह यकीनन हाल के इतिहास में भारत में किसी भी रेलवे परियोजना के सामने सबसे बड़ी सिविल-इंजीनियरिंग की चुनौती है. 2003 में स्वीकृत इस पुल को पूरा होने में दो दशक से ज़्यादा का समय लगा.

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नदी तल से 359 मीटर ऊपर स्थित यह दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल है. यह पुल पेरिस के एफिल टॉवर से भी 35 मीटर ऊंचा है और कुतुब मीनार की ऊंचाई से लगभग पांच गुना ऊंचा. पुल के निर्माण में -10 डिग्री सेल्सियस से लेकर 40 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में उपयोग के लिए उपयुक्त 28,660 मेगाटन 2,86,60,000 किलोग्राम स्टील का इस्तेमाल किया गया है. 1.31 किलोमीटर लंबे इस पुल को 1,486 करोड़ की लागत से बनाया गया है.
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चिनाब पुल का निर्माण एक बहुत बड़ी इंजीनियरिंग चुनौती थी. इलाके की भौगोलिक स्थिति, जलवायु और दूर-दराज का इलाका इसके निर्माण की बड़ी बाधाएं थीं. हिमालयी क्षेत्र को इंजीनियरिंग परियोजनाओं के लिए एक कठिन काम माना जाता है और साइट पर मैन पावर को पहुंचाना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है. साथ ही, पुल को रेलवे की आवाजाही को सहारा देने और खराब मौसम का सामना करने के लिए पर्याप्त मजबूत होना भी चाहिए था. दशकों के रिसर्च, परामर्श और काम ने अब इस असंभव से लगने वाले काम को हकीकत में बदल दिया है. पुल को 266 किमी/घंटे तक की तेज़ हवा की गति और सबसे अधिक तीव्रता वाले भूकंपों को झेलने के लिए डिज़ाइन किया गया है. पुल को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि अगर संरचना को सहारा देने वाला खंभा भी क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो भी पुल चालू रहेगा और ट्रेनें कम गति से गुज़र सकेंगी.

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भारत की सबसे चुनौतीपूर्ण रेल परियोजना

चिनाब पुल उधमपुर-श्रीनगर-बारामुल्ला रेल लिंक का हिस्सा है, जो 272 किलोमीटर लंबी मेगा परियोजना है. सरकार ने इस परियोजना में 42,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है जो न केवल एक इंजीनियरिंग वंडर है, बल्कि एक रणनीतिक एसेट भी है. NDTV के एक्सेस किए सरकारी दस्तावेजों के अनुसार, इस रास्ते का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा 943 पुलों और 36 प्रमुख सुरंगों से होकर बना है, जिसमें T-50 भी शामिल है, जो भारत की सबसे लंबी रेलवे सुरंग है, ये 12.77 किलोमीटर लंबी है.

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पर्यटन को बढ़ावा देने के अलावा, इस परियोजना के जरिए घाटी में साल भर आवश्यक हेल्थ सर्विस सप्लाई सहित कई अन्य सामान पहुंचाना सुनिश्चित हो सकेगा. अभी ये अक्सर कड़ी सर्दी के दौरान रुक जाती है. यह घाटी के सेब उत्पादक सहित तमाम व्यापारियों के लिए भी एक वरदान है. वो एक दिन के भीतर अपना सामान दिल्ली भेज सकेंगे.

चिनाब ब्रिज रेलवे की बड़ी उपलब्धि

2014 में सत्ता में आने के बाद से ही नरेंद्र मोदी सरकार के लिए कश्मीर तक रेलवे लिंक एक प्राथमिकता रही है और इसको बढ़ावा देने के पीछे का मकसद एकदम साफ था- विकास बनाम आतंकवाद. सरकार ने तर्क दिया कि घाटी में कनेक्टिविटी में सुधार से पर्यटन और व्यापार को बढ़ावा मिलेगा, जिससे आतंकवाद को बड़ा झटका लगेगा. पहले, कश्मीर की यात्रा करना कई लोगों के लिए एक चुनौती थी. हवाई यात्रा हर किसी के लिए मुमकिन नहीं था और रोड नेटवर्क कश्मीर की जलवायु के लिए चुनौती थी, लेकिन उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला लिंक के पूरी तरह रोलआउट के साथ, घाटी में पर्यटन को भारी बढ़ावा मिलने की संभावना है. यह रेलवे की उपलब्धि में एक और उपलब्धि है, क्योंकि इसने एक बार फिर भारत को कश्मीर से कन्याकुमारी तक जोड़ने की असंभव बाधाओं को पार कर लिया है.

पहलगाम हमले के बाद घाटी में पर्यटन पर खड़े हुए सवाल

पहले प्रधानमंत्री मोदी को 19 अप्रैल को चिनाब ब्रिज का उद्घाटन करना था और वंदे भारत के स्पेशल एडिशन को हरी झंडी दिखानी थी, लेकिन यह दौरा रद्द कर दिया गया. तीन दिन बाद, आतंकवादियों ने पहलगाम की बैसरन घाटी में 25 पर्यटकों और एक कश्मीरी व्यक्ति की निर्मम हत्या कर दी. इस हमले ने क्रूरता की कई हदें पार कर दीं. इससे पहले कभी भी कश्मीर में पर्यटकों को इस तरह से निशाना नहीं बनाया गया था. पहलगाम हमले ने घाटी में पर्यटन की संभावनाओं पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं, जहां पिछले कुछ सालों से रिकॉर्ड पर्यटक आ रहे थे. कश्मीरी व्यापारियों ने आतंकवादी हमले के खिलाफ सड़कों पर उतरकर विरोध जताया और उम्मीद जताई कि इससे आतंकवाद के कारण दशकों की अनिश्चितता के बाद घाटी की सामान्य स्थिति और समृद्धि की यात्रा बाधित नहीं होगी.

एक पुल और उम्मीद की ट्रेन

चिनाब पुल का उद्घाटन और कश्मीर के लिए तेज़ ट्रेन सेवाओं की शुरुआत कश्मीर के लिए चमत्कार कर सकती है. रेलवे ने घाटी के लिए एक विशेष वंदे भारत ट्रेन तैयार की है. यह ट्रेन चुनौतीपूर्ण जलवायु परिस्थितियों में सुरक्षा और आराम सुनिश्चित करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक से लैस है. इसमें पानी को जमने से रोकने के लिए सिलिकॉन हीटिंग पैड और शून्य से नीचे के तापमान पर भी बिना रुके आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए ओवरहीट प्रोटेक्शन सेंसर हैं.

आतंकवादी हमले के दो महीने से भी कम समय बाद हो रहा यह उद्घाटन केंद्र की ओर से एक बड़ा संदेश भी है, कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह कश्मीर में अपने विकास के उद्देश्य से पीछे नहीं हटेगा. कश्मीर के लिए यह पुल और इससे गुजरने वाली ट्रेनें टूरिस्ट और सप्लाई की उम्मीद लेकर आएंगी.

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