भारत (India) के सबसे बड़े बिजली उत्पादक अब एक और बड़े परमाणु प्रोजक्ट (Nuclear Project) विकसित करने पर विचार कर रहे हैं. इन कंपनियों की ओर से इस सेक्टर में एंट्री के कुछ हफ्ते बाद ही इस पर विचार किया जा रहा है. यह इस बात का संकेत है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) का परमाणु उर्जा (Nuclear Power) के क्षेत्र में विस्तार जोर पकड़ रहा है. ब्लूमबर्ग के अनुसार, NTPC लिमिटिड और न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन साझे तौर पर मिलकर सरकार के साथ 700 मेगावाट के रिएक्टर स्थापित करने के लिए बातचीत कर रहे हैं. इस मामले से जुड़े लोगों ने नाम सार्वजनिक ना करने की शर्त पर बताया है कि यह परमाणु रिएक्टर मध्य-प्रदेश में स्थापित किए जाएंगे.
इससे पहले इस महीने की शुरुआत में NTPC ने कहा था कि वो परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में आ रही है और शुरुआत में हरियाणा के गोरखपुर में दो परमाणु संयंत्र लगाने जा रही है. इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (International Atomic Energy Agency) के अनुसार भारत फिलहाल 6 गीगावॉट की परमाणु क्षमता विकसित कर रहा है. यह चीन के बाद सबसे अधिक होगी. चीन में इससे तीन गुणा अधिक परमाणु क्षमता का निर्माण किया जा रहा है.
प्रधानमंत्री मोदी का लक्ष्य फिलहाल अगले दशक में परमाणु उर्जा की मौजूदा क्षमता को तिगुना करना है ताकि स्वच्छ ऊर्जा के स्त्रोत से उर्जा प्रयोग हो सके. भारत ने साल 2070 तक जीरो कार्बन इमिशन का लक्ष्य रखा है. भारत में फिलहाल 70% बिजली कोयले से बनती है और 3 प्रतिशत परमाणु स्त्रोत से. भारत ने अपनी परमाणु इंडस्ट्री के दरवाजे न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड से आगे बढ़ कर अब राज्य नियंत्रित कंपनियों के लिए भी खोल दिए हैं. इससे परमाणु ऊर्जा अपनाने में तेजी आने की उम्मीद की जा रही है.
NTPC, (Nuclear Power Corporation) और डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी ( Department of Atomic Energy) ने इस रिपोर्ट पर टिप्पणी के लिए भेजी गई ईमेल का तुरंत कोई जवाब नहीं दिया है.
मुंबई के डेलॉइ टच टोहमात्सू (Deloitte Touche Tohmatsu) के मुंबई में मौजूद पार्टनर देबाशीष मिश्रा कहते हैं कि, कार्बन फुटप्रिंट के नजरिए से न्यूक्लियर ऊर्जा बेहतर है जो भारत की नेट जीरो की यात्रा का अहम हिस्सा है."
भारत 2008 में अमेरिका के साथ परमाणु समझौता करने के बाद लंबे समय से झेल रहे प्रतिबंधों से बाहर निकला था. इस समझौते के अनुसार, तीन दशक बाद भारत परमाणु ऊर्जा से जुड़ी विदेशी तकनीक, नागरिक कार्यक्रम के लिए कच्चे पदार्थ तक पहुंच बना सकता था. लेकिन देश के परमाणु जिम्मेदारी कानून के चलते इसे लेकर प्रतिरोध रहा. इसमें किसी परमाणु दुर्घटना के मामले में परमाणु इक्युपमेंट देने वाली कंपनी को जिम्मेदार माना गया है. जापान में 2011 में हुई फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना के बाद परमाणु ऊर्जा के खिलाफ चिंताएं बढ़ गईं थी.