दिल्ली हाईकोर्ट राजनीतिक दलों में अहम पदों पर आसीन नेताओं की विभिन्न सरकारी पदों पर लोकसेवक के तौर पर नियुक्ति के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर अगले साल 17 जनवरी को सुनवाई करेगा. अदालत ने शु्क्रवार को इसे 17 जनवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया.
चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने टिप्पणी की कि यहां ‘‘और मुद्दे'' हैं. पीठ ने याचिकाकर्ता व वकील सोनाली तिवारी से कहा कि वह इस दौरान अपनी याचिका पर ‘‘और अनुसंधान करें.'' पीठ ने कहा, ‘‘और भी मुद्दे हैं...लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है.'' इस पीठ में जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद भी शामिल हैं.
अदालत ने कहा, ‘‘कुछ और अनुसंधान कीजिए, फिर हम इस पर सुनवाई करेंगे.'' पीठ ने यह भी सवाल किया कि क्या नेताओं को सरकारी पद पर आसीन होने से रोकने के लिए कोई कानून है.
इस पर याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय घोष ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों से जुड़े लोगों को सरकारी पदों पर लोकसेवक के तौर पर तैनात नहीं किया जाना चाहिए जब वे पार्टी के अहम पदों पर आसीन हों.
याचिका में दलील दी गई है कि लोकसेवक के लिए राजनीतिक रूप से तटस्थ रहने का सिद्धांत है जो उन्हें पार्टी की गतिविधियों में हिस्सा लेने से तो रोकता है लेकिन ‘‘वे उक्त सिद्धांत का अनुपालन करते हैं इसकी पुष्टि नहीं होती.'' याचिका के अनुसार इससे न केवल जनता के पैसे का नुकसान हो रहा है बल्कि यह पार्टियों की राजनीतिक विचारधारा का भी प्रसार कर रहा है.
उन्होंने उदाहरण दिया कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) के प्रवक्ता संबित पात्रा भारतीय पर्यटन विभाग निगम के अध्यक्ष हैं जबकि भाजपा संसदीय बोर्ड के सदस्य इकबाल सिंह लालपुरा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष हैं.
याचिकाकर्ता ने कहा कि इन पदों को धारण करने वाले से तटस्थ और निष्पक्ष रहने की उम्मीद की जाती है लेकिन राजनीतिक दल में आधिकारिक पद पर रहने से यह उद्देश्य खत्म हो जाता है.
याचिका में आम आदमी पार्टी (AAP) के प्रवक्ता जसमीन शाह को दिल्ली संवाद एवं विकास आयोग का उपाध्यक्ष, राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य डॉ चंद्रभान सिंह को राज्य की 20 सूत्री कार्यक्रम क्रियान्वयन समन्वय समिति का उपाध्यक्ष बनाने का भी हवाला दिया गया है.
न्यूजरूम : सजा के बाद भी पद पर बने रहेंगे नेता