संतान पैदा करने के लिए कैदी को परोल देने का मामला : SC का राजस्थान की अर्ज़ी पर सुनवाई से इंकार

सरकार ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद मामलों की बाढ़ आ गई है. कैदी की पत्नी ने अपने "संतान के अधिकार" पर जोर देने और अपने पति की रिहाई की मांग करने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

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संतान पैदा करने के लिए कैदी को पैरोल मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने दखल से किया इंकार

संतान पैदा करने के लिए कैदी को पैरोल के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पैरोल के खिलाफ राजस्थान सरकार की अर्जी पर सुनवाई से इंकार किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हालांकि उसे हाईकोर्ट की टिप्पणियों पर कुछ आपत्ति है, लेकिन वो मामले में दखल नहीं देगा. सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को मामले को फिर से हाईकोर्ट ले जाने को कहा है. साथ ही कहा है कि अगर किसी और कैदी को भी इस तरह संतान पैदा करने के लिए पैरोल दिया जाता है तो सरकार हाईकोर्ट में चुनौती दे सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने छूट दी है कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती है. जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने ये फैसला सुनाया है.

दरअसल, सरकार ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद मामलों की बाढ़ आ गई है. कैदी की पत्नी ने अपने "संतान के अधिकार" पर जोर देने और अपने पति की रिहाई की मांग करने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. नंदलाल राजस्थान की भीलवाड़ा अदालत द्वारा सुनाई गई उम्रकैद की सजा काट रहा है और अजमेर जेल में बंद है. इससे पहले 2021 में उसे 20 दिन की पैरोल मिली थी. अदालत ने समझाया कि उसने पैरोल अवधि के दौरान अच्छा व्यवहार किया. साथ ही खत्म होने पर उसने सरेंडर कर दिया. दरअसल, जेल में बंद एक कैदी की पत्नी ने जोधपुर हाईकोर्ट में  गर्भधारण करने के लिए अपने पति को पैरोल पर छोड़ने की गुहार लगाई थी, जिसके बाद कोर्ट ने बंदी पति को 15 दिन के पैरोल पर रिहा करने का आदेश दिया था.

अजमेर सेंट्रल जेल में बंदी आजीवन उम्रकैद की सजा काट रहा है.  इससे पहले भी पत्नी ने मां बनने के लिए अजमेर जिला कलेक्टर को अर्जी दी थी, जब वहां सुनवाई नहीं हुई तो पत्नी ने हाईकोर्ट का रुख किया. राजस्थान हाईकोर्ट जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस फरजंद अली की पीठ ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए बंदी को सशर्त पैरोल देने के आदेश दिए थे. पीठ ने मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि पैरोल नियम 2021 में कैदी को उसकी पत्नी के संतान होने के आधार पर पैरोल पर रिहा करने का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है.  फिर भी धार्मिक, दार्शनिक, सांस्कृतिक और सामाजिक और मानवीय मूल्यों पर विचार करते हुए भारत के संविधान द्वारा मौलिक अधिकार को लेकर दी गई गारंटी और इसके साथ इसमें निहित असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए यह कोर्ट याचिका को स्वीकार करता है. सुनवाई के दौरान जस्टिस फरजंद अली ने कहा कि अगर हम मामले को धार्मिक पहलू से देखें तो हिंदू दर्शन के अनुसार गर्भधान यानी गर्भ का धन प्राप्त करना सोलह संस्कारों में से एक है.विद्वानों ने वैदिक भजनों के लिए गर्भधान संस्कार का पता लगाया. जैसे कि ऋग्वेद के अनुसार संतान और समृद्धि के लिए बार-बार प्रार्थना की जाती है.

कोर्ट ने कहा कि यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और कुछ अन्य धर्मों में जन्म को ईश्वरीय आदेश कहा गया है. आदम और हौवा को सांस्कृतिक जनादेश दिया गया था.  इस्लामी शरिया और इस्लाम में वंश के संरक्षण का कहा गया. जस्टिस अली ने आगे संतान के अधिकार और वंश के संरक्षण के समाजशास्त्र और संवैधानिक पहलुओं की जांच भी इस मामले में सुनवाई के दौरान की थी.

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