संसद की स्थायी समितियों का गठन, शशि थरूर बरकरार, BJP को 11 की कमान, जानें कांग्रेस के हिस्से क्या आई

संसदीय समितियों का नया कार्यकाल आमतौर पर सितंबर के अंत या अक्टूबर की शुरुआत में प्रारंभ होता है. कुछ सदस्यों ने सरकार से समितियों का कार्यकाल वर्तमान एक साल से बढ़ाकर कम से कम दो साल करने का अनुरोध किया है.

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  • सरकार ने संसद की 24 स्थायी समितियों का गठन किया है, जिसमें विभिन्न दलों को अध्यक्षता सौंपी गई है
  • भाजपा को 11 समितियों की अध्यक्षता मिली है जबकि कांग्रेस को चार और टीएमसी को दो समितियां दी गई हैं
  • स्थायी समितियों का वर्तमान कार्यकाल एक वर्ष का होता है जिसे बढ़ाकर दो वर्ष करने पर विचार चल रहा है
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नई दिल्ली:

सरकार ने संसद की स्थायी समितियों का गठन कर दिया है. 24 समितियों में बीजेपी को 11, कांग्रेस को चार, टीएमसी को दो, डीएमके को दो, समाजवादी पार्टी को एक, जेडीयू को एक, एनसीपी अजित पवार गुट को एक, टीडीपी को एक और शिवसेना शिंदे गुट को एक समिति की कमान सौंपी गई है.

कांग्रेस सांसद शशि थरूर विदेश मामलों की संसदीय समिति के अध्यक्ष बने रहेंगे. वहीं राजीव प्रताप रूडी को भी इस बार जिम्मेदारी मिली है. रूडी जल संसाधन मंत्रालय से जुड़ी समिति के अध्यक्ष बनाए गए हैं. टीएमसी सांसद डोला सेन वाणिज्य से जुड़ी समिति तो बीजेपी सांसद राधा मोहन दास अग्रवाल गृह मामलों से जुड़ी समिति के अध्यक्ष बनाए गए हैं.

दिग्विजय सिंह को महिला, बाल विकास, शिक्षा और युवा मामलों की स्थायी समिति की जिम्मेदारी मिली है. वहीं डीएमके सांसद टी शिवा उद्योग, जेडीयू सांसद संजय कुमार झा परिवहन, राम गोपाल यादव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे संचार और आईटी, राधा मोहन सिंह रक्षा, भर्तृहरि महताब वित्त, सी एम रमेश रेलवे, कीर्ति आजाद रसायन एवं उर्वरक और अनुराग सिंह ठाकुर कोयला, खनन तथा स्टील के समिति के अध्यक्ष बनाए गए हैं.

साथ ही बैजंयत पांडा को Insolvency and Bankruptcy code select committee और बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या को जनविश्वास बिल पर सेलेक्ट कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है.

संसदीय समितियों का कार्यकाल दो साल करने पर भी विचार

इधर सरकार संसद की स्थायी समितियों का कार्यकाल बढ़ाकर दो साल करने पर विचार कर रही है. कुछ सांसदों ने शिकायत की है कि मौजूदा एक साल का कार्यकाल कोई सार्थक योगदान देने के लिए बहुत कम है. सरकार, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा के सभापति सीपी राधाकृष्णन के साथ विचार-विमर्श के बाद इस संबंध में कोई निर्णय ले सकती है.

एक साल का होता है संसदीय समितियों का कार्यकाल

संसदीय समितियों का नया कार्यकाल आमतौर पर सितंबर के अंत या अक्टूबर की शुरुआत में प्रारंभ होता है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि समितियां किस तारीख को गठित की गई हैं. संसद से जुड़े सूत्रों ने बताया कि कुछ सदस्यों ने सरकार से समितियों का कार्यकाल वर्तमान एक साल से बढ़ाकर कम से कम दो साल करने का अनुरोध किया था, ताकि समितियां विचार-विमर्श के लिए चुने गए विषयों पर प्रभावी ढंग से विचार कर सकें.

नई लोकसभा के गठन के तुरंत बाद विभिन्न राजनीतिक दलों के परामर्श से समितियों का गठन किया जाता है, जिन्हें सदन में उनकी संख्या के अनुपात में इन समितियों की अध्यक्षता का दायित्व सौंपा जाता है.

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आमतौर पर नई लोकसभा के कार्यकाल की शुरुआत में नामित अध्यक्ष, हर साल समितियों के गठन के दौरान अपने पद पर बने रहते हैं, जब तक कि किसी राजनीतिक दल द्वारा बदलाव का अनुरोध न किया जाए. कई बार सदस्य किसी अन्य समिति का हिस्सा बनना चाहते हैं और ऐसे अनुरोधों पर संबंधित सदनों के पीठासीन अधिकारियों द्वारा भी सकारात्मक रूप से विचार किया जाता है.

संसद की 24 विभाग-संबंधित स्थायी समितियां हैं. इनमें आठ की अध्यक्षता राज्यसभा के सदस्य करते हैं, जबकि 16 का नेतृत्व लोकसभा के सदस्य करते हैं. संसदीय प्रणाली में वित्तीय समितियां, तदर्थ समितियां और अन्य समितियां भी शामिल हैं जिनका गठन समय-समय पर विधेयकों और अन्य मुद्दों पर विचार के लिए किया जाता है.

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