संसद का मॉनसून सत्र (Monsoon Session) शुरू हो रहा है और सबकी नजरें हैं इस बात पर कि इस सत्र में सरकार क्या-क्या कदम उठाएगी. एक ऐसा बिल भी है, जो बड़ा घमासान शुरू करा सकता है. केंद्र की मोदी सरकार ने इस सत्र में 'बिजली (संशोधन) बिल' लाने का फैसला किया है, जो कृषि कानूनों पर पहले ही सरकार का विरोध कर रहे विपक्ष के बीच विवाद का विषय बन सकता है. कृषि कानूनों पर सरकार से असहमित जताने के बाद उससे अलग हो चुकी पार्टी शिरोमणि अकाली दल इसके खिलाफ स्थगन प्रस्ताव लाएगी. दल ने अलग होने के बाद से लगातार कृषि कानून का मुद्दा उठाया है.
पार्टी की नेता और केंद्रीय मंत्री रह चुकीं हरसिमरत कौर ने रविवार को ट्वीट किया था, 'पहले कृषि कानून और अब बिजली संशोधन बिल! पहले किसानों को सरकार ने बताया कि वो यह बिल संसद में नहीं लाएगी, लेकिन अब सरकार ने इस बिल को मॉनसून सत्र के लिए लिस्ट कर दिया है. ऊर्जा का निजीकरण करके सरकार किसानों को शार्क मछलियों के मुंह में फेंक रही है. जब एक राज्य सरकार अपना मेनिफेस्टो पूरा नहीं कर सकती, तो वो यह सब्सिडी कैसे सुनिश्चित करेगी?'
सरकार ने ड्राफ्ट वापस करने का किया था वादा
बता दें कि सरकार ने 30 दिसंबर, 2020 को किसान संगठनों के नेताओं के साथ हुई छठें राउंड की बातचीत में यह आश्वासन दिया था कि वो बिजली संशोधन बिल का ड्राफ्ट वापस ले लेगी, लेकिन इस बात को छह महीने से ज्यादा का वक्त हो गया है और अब सरकार ने अपने वायदे के खिलाफ जाकर इसे संसद में पेश करने का फैसला किया है. इससे पहले से प्रदर्शन कर रहे किसानों के बीच और आक्रोश फैल सकता है.
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दरअसल, इस बिल में प्रस्ताव है कि बिजली वितरण का डीलाइसेंसीकरण किया जाए. इसमें ग्राहकों को मिलने वाले सब्सिडी के पेमेंट मोड को भी बदलने की बात है.
अकाली दल ने दूसरी विपक्षी पार्टियों से मांगा समर्थन
शिरोमणि अकाली दल ने इसके खिलाफ एडजर्नमेंट मोशन लाने का फैसला किया है. वहीं, पार्टी तीन नये कृषि कानूनों के लागू होने से पैदा हुए संकट पर एक तुरंत चर्चा रखे जाने की मांग भी करेगी. अकाली दल इस मुद्दे पर कई पार्टियों को संपर्क किया है. उसने शिवसेना, एनसीपी, डीएमके, टीएमसी और बीएसपी को संपर्क करके उनसे इस पर समर्थन मांगा है.