NDTV संवाददाता ने सुनाई जैसलमेर की उस रात की कहानी, जब गोलाबारी की आवाजों ने तोड़ा सन्नाटा

हर्षा कुमारी सिंह ने बताया कि अगले दिन जब मौके का मुआयना किया गया, तो खेत में ड्रोन के गिरने के निशान मिले. सौभाग्यवश, जैसलमेर में कोई जानमाल की हानि नहीं हुई. ऐसा माना जाता है कि ये माता की कृपा है. 1971 की जंग में भी जैसलमेर अछूता रहा था और इस बार भी रहा.

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ऑपरेशन सिंदूर... एक ऐसा मिशन जिसने पाकिस्तान में 100 से अधिक आतंकवादियों के खात्मे के साथ भारतीय सेना की ताकत का लोहा मनवाया. यह सिर्फ एक सैन्य ऑपरेशन नहीं था, बल्कि भारत की सुरक्षा के लिए एक निर्णायक कदम था. इस दौरान NDTV इंडिया की 11 जांबाज रिपोर्टर्स की टीम 21 दिनों तक मैदान में डटी रही. हर गोली की गूंज, हर मोर्चे की खब, सीधे आपके पास पहुंचाई गई. लेकिन कुछ घटनाएं ऐसी थीं जो कभी कैमरे में नहीं कैद हो सकीं और न ही उस वक्त साझा किया जा सका.

21 दिनों के दौरान श्रीनगर की बर्फीली वादियों से लेकर भुज के तपते रेगिस्तान तक, रिपोर्टर्स ने जान जोखिम में डालकर हर हालात को कवर किया. एक रात जैसलमेर में अचानक हुई गोलाबारी ने पूरे शहर को हिला दिया. सन्नाटे को चीरती ड्रोन हमले की गूंज और सैनिकों की मुस्तैदी ने उस रात को इतिहास में दर्ज कर दिया. अब वक्त है उन अनसुनी, अनकही कहानियों को सामने लाने का.

जैसलमेर अचानक गोलाबारी की आवाजों से दहल उठी. शहर का शांत माहौल एक पल में दहशत में बदल गया. लेकिन भारतीय सेना ने पाकिस्तान के हर हमले को विफल कर दिया और उसे मुंहतोड़ जवाब दिया. ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत में हमारी टीम सबसे पहले जैसलमेर के इंटरनेशनल बॉर्डर पर हालात का जायजा लेने पहुंची.

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 शुरुआत में माहौल शांत था, कोई खास हलचल नहीं दिख रही थी. लेकिन रात करीब 9 बजे अचानक माहौल बदलने लगा. पहले तो ऐसा लगा जैसे कहीं पटाखे चल रहे हो. लेकिन फिर आसमान में ड्रोन की लाइट्स दिखीं और तेज धमाकों की आवाजें गूंजने लगीं. स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए मैंने तुरंत पुलिस को फोन किया. जैसे ही हम आगे बढ़े, रास्ते में आर्मी का पहरा मिला. जानकारी मिली शहर अलर्ट पर है. सेना ने आगे जाने से रोका और हम पैदल ही अपने होटल की ओर लौटे. पूरा जैसलमेर अंधेरे में डूबा हुआ था. पूरे शहर में ब्लैकआउट घोषित कर दिया गया था. अंधेरे में रिपोर्टिंग की.

हर्षा कुमारी सिंह

संवाददाता, NDTV

हर्षा कुमारी सिंह ने बताया कि अगले दिन जब मौके का मुआयना किया गया, तो खेत में ड्रोन के गिरने के निशान मिले. सौभाग्यवश, जैसलमेर में कोई जानमाल की हानि नहीं हुई. ऐसा माना जाता है कि ये माता की कृपा है. 1971 की जंग में भी जैसलमेर अछूता रहा था और इस बार भी रहा.

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