भारत के इतने एहसान फिर भी पाकिस्तान का भाईजान क्यों बन गया अजरबैजान

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान में तनाव बढ़ गया था. सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर हमला किया. इस दौरान अजरबैजान जैसा देश पाकिस्तान के साथ खड़ा रहा. इसको लेकर भारत में गुस्सा है. लोग अजरबैजान जाने की बुकिंग रद्द करा रहे हैं.

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नई दिल्ली:

भारत और पाकिस्तान के बीच बीत हफ्ते काफी तनाव रहा. इस दौरान भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई की. इस दौरान आतंक के ठिकानों और एयरबेस को निशाना बनाया गया. पाकिस्तान ने भी भारत पर हमले की कोशिश की. लेकिन भारत की हवाई रक्षा प्रणाली ने उसके प्रयासों को नाकाम कर दिया. इस पूरे तनाव में पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में अकेला नजर आया. उसे केवल चीन, तुर्कीए और अजरबैजान जैसे देशों का ही सहयोग मिला. इसमें से चीन और तुर्कीए ने जहां पाकिस्तान को सैन्य मदद पहुंचाई, वहीं अजरबैजान की सरकार ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अपना समर्थन दिया था.इसके बाद लोग सोशल मीडिया पर पाकिस्तान का समर्थन करने वाले देशों के लिए अपनी भावना का इजहार कर रहे हैं. कई भारतीय इन देशों का बहिष्कार करने की मांग कर रहे हैं. वहीं कई ट्रैवल एजेंसियों ने इन देशों के लिए नई बुकिंग बंद कर दी है और एडवांस बुकिंग को रद्द कर रहे हैं. 

कितने पुराने हैं भारत अजरबैजान संबंध

भारत-अजरबैजान के संबंध काफी पुराने हैं.  अजरबैजान 1991 तक सोवियत संघ का हिस्सा था.सोवियत संघ से अलग होने के बाद भारत ने 1991 में उसे एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी थी. अजरबैजान जब अजरबैजान सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक हुआ करता था तब भी भारत के साथ उसके संबंध अच्छे रहे. उस समय जवाहर लाल नेहरू और रविंद्रनाथ टैगोर जैसे नेताओं ने अजरबैजान की यात्रा कर इस संबंध को मजबूत बनाया था. भारत ने बाकू में अपना मिशन मार्च 1999 में खोला तो अजरबैजान का दिल्ली में मिशन अक्तूबर 2004 में खुला था.

भारत के साथ तनाव के दौरान पाकिस्तान की मदद करने वालों में तुर्किए और अजरबैजान सबसे आगे रहे.

राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद दोनों देशों के संबंधों ने नए आयाम छूए. अजरबैजान स्थित भारतीय दूतावास के मुताबिक दोनों देशों के बीच 2023 में 1.435 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था. साल 2005 में यह केवल पांच करोड़ अमेरिकी डॉलर का था. भारत अजरबैजान का सातवां सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है. भारत से अधिक केवल इटली, तुर्किए, रूस, चीन, जर्मनी और इजरायल ही अजरबैजान से व्यापार करते हैं. भारत अजरबैजान को चावल, मोबाइल फोन, एल्युमिनियम ऑक्साइड, दवाओं, स्मार्टफोन, सिरेमिक टाइल्स, ग्रेनाइट, मशीनरी, मांस और जानवरों का निर्यात करता है. भारत ने 2023 में अजरबैजान से 955 मिलियन डॉलर का कच्चा तेल खरीदा था और करीब 43 मिलियन डॉलर का चावल उसे निर्यात किया था. भारत अजरबैजान का तीसरा सबसे बड़ा खरीदार है. 

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अजरबैजान और पाकिस्तान का व्यापार

वहीं अगर अजरबैजान और पाकिस्तान के बीच होने वाले व्यापार की बात करें तो दोनों देशों ने 2023 में 28.8 मिलियन डॉलर का व्यापार किया था.इसमें पाकिस्तान की ओर से होने वाला निर्यात 29.6 मिलियन डॉलर का था. पाकिस्तान अजरबैजान को सबसे अधिक आलू बेचता है. यह आंकड़ा व्यापार पर नजर रखने वाली वेबसाइट ऑब्जर्वेटरी ऑफ इकोनॉमिक कॉम्प्लेक्सिटी के मुताबिक है.

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कितने भारतीय जाते हैं अजरबैजान

आइए अब बात करते हैं पर्यटन की. भारतीय दूतावास के मुताबिक 2023 में एक लाख 15 हजार से अधिक भारतीयों ने अजरबैजान की यात्रा की थी. यह संख्या 2022 के मुकाबले में करीब-करीब दो गुनी थी. वहीं अजरबैजान के टूरिज्म बोर्ड के मुताबिक 2024 में दो लाख 43 हजार 589 भारतीय पर्यटक आए थे, यानी कि 2023 की तुलना में दो गुना. साल 2014 में केवल चार हजार 853 भारतीय ही अजरबैजान घूमने गए थे. बोर्ड का अनुमान है कि भारत से आने वाले पर्यटकों की संख्या अगले 10 साल में 11 फीसदी सालाना के दर से बढ़ेगी. भारत से अधिक केवल रूस, तुर्कीए और ईरान के पर्यटकों ने ही अजरबैजान की यात्रा की थी. अगर पड़ोसी देशों को छोड़ दें तो अजरबैजान जाने वाले पर्यटकों में भारतीयों की संख्या सबसे अधिक है.पिछले चार सालों में कम से कम 30 भारतीय फिल्मों और विज्ञापनों की शूटिंग अजरबैजान में हुई है. 

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भारतीय दूतावास के मुताबिक दिल्ली और अजरबैजान की राजधानी बाकू के बीच हर हफ्ते 10 फ्लाइट हैं. वहीं मुंबई और बाकू के बीच हर हफ्ते चार फ्लाइटें उड़ान भरती हैं. लेकिन अजरबैजान ने जिस तरह से पाकिस्तान का समर्थन किया है, उससे भारतीयों में बेहद नाराजगी है. ट्रेवल कंपनियों ने लोगों को अजरबैजान न जाने की सलाह दी है. इसका असर यह हुआ कि अजरबैजान के लिए 50 फीसदी से अधिक बुकिंग अब तक कैंसिल हो चुकी है और नई बुकिंग नहीं हो रही है. 

भारतीय पर्यटकों और ट्रैवल कंपनियों ने पिछली बार ऐसा तब किया था, जब मालदीव के एक मंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया था. इससे मालदीव को काफी नुकसान उठाना पड़ा था. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बहिष्कार की इन कोशिशों का अजरबैजान पर कोई असर होता है या नहीं. 

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