OBC आरक्षण मामला : सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में स्थानीय चुनावों के नतीजे अधिसूचित करने के निर्देश दिए

सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिया गया था कि चुनाव आयोग ओबीसी श्रेणी को आरक्षण प्रदान करने के लिए अधिसूचित चुनाव कार्यक्रम के साथ आगे नहीं बढ़ेगा क्योंकि ट्रिपल टेस्ट अनुपालन नहीं किया गया है.

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सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में स्थानीय चुनावों में 27 फीसदी ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों के अध्यादेश को रद्द कर दिया था.
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र चुनाव आयोग को स्थानीय चुनावों के नतीजे गुरुवार को अधिसूचित करने के निर्देश दिए. इस दौरान कोर्ट ने कहा कि वो महाराष्ट्र सरकार के ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण के अध्यादेश की वैधता का परीक्षण करेगी. हालांकि आगे के चुनाव के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को ओबीसी संबधी डेटा गठित आयोग को देने को कहा है. 
आयोग इन डेटा पर विचार के आधार पर दो हफ्ते में राज्य सरकार को अपनी सिफारिश भेज सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया है कि देश में कोई भी राज्य ऐसे आरक्षण के लिए आयोग को डेटा भेज सकता है, लेकिन कोई भी आरक्षण तभी लागू किया जा सकता है जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक ट्रिपल टेस्ट का पालन हो. 8 फरवरी को मामले की अगली सुनवाई होगी. 

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आदेश सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला 6 दिसंबर 2021 को इस कोर्ट के सामने आया. यह निर्देश दिया गया था कि चुनाव आयोग ओबीसी श्रेणी को आरक्षण प्रदान करने के लिए अधिसूचित चुनाव कार्यक्रम के साथ आगे नहीं बढ़ेगा क्योंकि ट्रिपल टेस्ट अनुपालन नहीं किया गया है. 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण वाले चुनाव रद्द करने का आदेश दिया गया था. चुनाव आयोग ने उन सीटों के संबंध में एक अनुपालन रिपोर्ट दायर की है जिन्हें पहले ओबीसी के रूप में अधिसूचित किया गया था. अदालत के आदेश के अनुसार सामान्य सीटों के रूप में आयोजित किया गया. उन चुनावों के परिणाम कल तक अधिसूचित किए जाएंगे. 

महाराष्ट्र द्वारा 23/9/21 को जारी किए गए अध्यादेश की वैधता अब एकमात्र मुद्दा बचा है, जिस मामले में बात आगे बढ़ाने की जरूरत है. महाराष्ट्र ने इस अदालत से डेटा के आधार पर चुनाव की अनुमति देने को कहा है. पिछड़े वर्गों के बारे में उपलब्ध डेटा को राज्य द्वारा नियुक्त समर्पित आयोग के समक्ष प्रस्तुत करना होगा, जो शुद्धता की जांच कर सकता है.
यदि उपयुक्त हो तो राज्य को सिफारिश कर सकता है. जिसके आधार पर राज्य या SEC द्वारा कदम उठाए जा सकते हैं.

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याचिकाकर्ता ने बताया है कि संविधान के 342ए में संशोधन के संदर्भ में राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की एक सूची तैयार करने के लिए बाध्य है, जिन पर स्थानीय सरकार के चुनाव सहित आरक्षण प्रदान करने के लिए कार्रवाई की जा सकती है. हालांकि, वह सूची जनगणना अधिनियम- सूची 1 प्रविष्टि 69 के तहत केंद्र सरकार द्वारा की गई जनगणना गतिविधियों से स्वतंत्र होगी. राज्य सरकार द्वारा सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के संबंध में तैयार की जाने वाली सूची जनगणना से स्वतंत्र होगी. राज्य के लिए उपलब्ध जानकारी समर्पित आयोग को प्रस्तुत की जा सकती है और इसकी प्रभावशीलता के बारे में निर्णय लिया जा सकता है. 

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यह स्पष्ट है कि इसमें  ट्रिपल परीक्षण अभ्यास को पूरा किया जाना है जो सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में दिया है. ओबीसी वर्ग के लिए स्थानीय सरकार में सीटों के आरक्षण से पहले आयोग दो सप्ताह में अंतरिम रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप सकता है. यह नहीं समझा जाएगा कि हमने आवेदन में डेटा की शुद्धता पर कोई अंतिम राय व्यक्त की है. इससे पहले महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची है. 15 दिसंबर के ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षित सीटों को रद्द करने के फैसले पर अर्जी दाखिल की है. अर्जी में फैसले को वापस लेने की मांग की गई है.

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15 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में स्थानीय चुनावों में 27 फीसदी ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों के अध्यादेश को रद्द कर दिया था. अपने 6 दिसंबर के आदेश में किसी तरह की तब्दीली से इंकार करते हुए कहा कि राज्य चुनाव आयोग अपनी पिछली अधिसूचना में बदलाव करते हुए हफ्ते भर में नई अधिसूचना जारी करें. उस अधिसूचना में पिछड़े वर्गों के लिए 27 फीसदी आरक्षण के प्रावधान को रद्द करते हुए बाकी बची 73 फीसदी सीटें सामान्य श्रेणी के लिए रखे जाने की नई अधिसूचना एक हफ्ते में जारी करने का आदेश राज्य चुनाव आयोग को दिया था. 6 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र स्थानीय निकाय चुनाव में  OBC उम्मीदवारों के लिए 27% आरक्षित सीटों पर रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग को चुनाव में 27 फीसदी आरक्षण के साथ आगे ना बढ़ने को कहा था.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रिपल टेस्ट का पालन किए बिना ओबीसी आरक्षण के लिए अध्यादेश लाने के राज्य सरकार के फैसले को स्वीकार नहीं किया जा सकता जो अनिवार्य है. अध्यादेश पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा 27 फीसदी ओबीसी कोटा आयोग की स्थापना के बिना और स्थानीय सरकार के अनुसार प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के बारे में डेटा एकत्र किए बिना लागू नहीं किया जा सकता. सामान्य वर्ग सहित अन्य आरक्षित सीटों के लिए शेष चुनाव कार्यक्रम आगे बढ़ सकता है. जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है.

याचिका में महाराष्ट्र के अध्यादेश को चुनौती दी थी, जिसने स्थानीय निकाय चुनावों में 27% ओबीसी कोटा पेश किया था और इसके परिणामस्वरूप राज्य चुनाव आयोग द्वारा उसी को प्रभावी बनाने के लिए अधिसूचना जारी की गई थी. कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ट्रिपल टेस्ट का पालन किए बिना अध्यादेश लाई. ट्रिपल परीक्षण हैं (1) राज्य के भीतर स्थानीय निकायों के रूप में पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ की कठोर अनुभवजन्य जांच करने के लिए एक आयोग की स्थापना; (2) आयोग की सिफारिशों के आलोक में स्थानीय निकाय-वार प्रावधान किए जाने के लिए आवश्यक आरक्षण के अनुपात को निर्दिष्ट करना, ताकि अधिकता का भ्रम न हो; और (3) किसी भी मामले में ऐसा आरक्षण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के पक्ष में आरक्षित कुल सीटों के कुल 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा.

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