केंद्र सरकार ने ऐसा कोई आंकड़ा नहीं दिया है, जिससे पता चल सके कि देश में आईआईएम, एम्स, आईआईटी, एनआईटी और अन्य विश्वविद्यालयों में जातिगत प्रताड़ना से तंग आकर कितने बच्चों ने आत्म हत्या की है. दरअसल लोकसभा बिहार के गोपालगंज के जेडीयू सांसद ने सरकार से जानना चाहा था कि एससी-एसटी के कितने छात्रों ने इन केंद्रीय संस्थानों में जातिगत प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या की है. उन्होंने यह भी जानना चाहा था कि केंद्र सरकार ने इन संस्थानों में जाति के आधार पर उत्पीड़न रोकने के लिए क्या कदम उठाए हैं.
सरकार ने क्या जवाब दिया है
इस सवाल के जवाब में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के मंत्री रामदास अठावले ने कहा कि देश में एससी-एसटी वर्ग के लोगों का उत्पीड़न रोकने के लिए दो कानून लागू हैं. उन्होंने कहा कि एससी-एसटी वर्ग के लोगों के उत्पीड़न से निपटने के लिए प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट एक्ट, 1955 और एससी-एसटी एक्ट 1989 लागू है. ये दोनों कानून राज्य और केंद्र सरकार के संस्थानों पर समान रूप से लागू है. इन दोनों कानूनों को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय राज्य सरकारों और केंद्र शासित राज्यों की मदद करता है. इसके लिए वित्तिय मदद केंद्र सरकार देती है.
अठावले ने बताया कि इस तरह के भेदभाव को रोकने के लिए नेशनल हेल्पलाइन अगेंस्ट एट्रोसिटीज (एनएचएए) नाम से एक हेल्पलाइन भी चलाई जा रही है. इसका फायदा एससी-एसटी वर्ग के लोगों को मिल रह है. उन्होंने बताया कि जाति के आधार पर होने वाली शिकायतों से निपटने के लिए एससी और एसटी वर्ग के अलग-अलग आयोग भी बने हुए हैं. ये कदम राज्य और केंद्र सरकार के शिक्षा और अन्य संस्थानों में एससी-एसटी के साथ होने वाले भेदभाव को रोकने की दिशा में काम कर रहे हैं. इस सवाल के जवाब में सरकार ने केंद्रीय संस्थानों में हुई इस तरह की घटनाओं का कोई डाटा नहीं उपलब्ध कराया.
सुप्रीम कोर्ट ने यूजीसी से मांगें हैं आंकड़े
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से भी इस तरह का डाटा मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने रोहित वेमुला और पायल तड़वी की मां की याचिकाओं की सुनवाई करते हुए यूजीसी से कहा कि वह केंद्रीय, राज्य, निजी और मान्यताप्राप्त विश्वविद्यालयों में जातीय भेदभाव से जुड़े आंकड़े जुटाए. इसके साथ ही अदालत ने यूजीसी से एससी-एसटी वर्ग के छात्रों की आत्महत्याओं से जुड़े आंकड़े भी मांगें हैं.
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