NSE फोन टैपिंग केस : चित्रा रामकृष्ण और संजय पांडे की जमानत अर्जी पर सुनवाई सात दिसंबर को

सीबीआई के मुताबिक, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के दो पूर्व अधिकारियों चित्रा रामकृष्ण और रवि नारायण ने एनएसई कर्मचारियों पर अवैध रूप से नजर रखने के लिए एक निजी कंपनी की सेवाएं ली थीं

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नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की पूर्व प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी चित्रा रामकृष्ण (फाइल फोटो).
नई दिल्ली:

दिल्ली की एक अदालत नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) के कर्मचारियों की कथित जासूसी एवं फोन टैपिंग से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में एनएसई की पूर्व प्रमुख चित्रा रामकृष्ण और मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त संजय पांडे की जमानत अर्जी पर सात दिसंबर को सुनवाई करेगी.

विशेष न्यायाधीश सुनैना शर्मा ने रामकृष्ण और पांडे की ओर से पेश वकील के इस आग्रह को स्वीकार करते हुए दोनों की जमानत अर्जी पर सुनवाई टाल दी कि मामले से जुड़े धन शोधन के एक केस में उनकी जमानत याचिका को खारिज किए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली अर्जी दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है.

धन शोधन के इस मामले की जांच प्रवर्तन निदेशालय (ED) कर रहा है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मामले में रामकृष्ण और पांडे की जमानत अर्जी पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

30 नवंबर को जारी आदेश में अदालत ने कहा, “अनुरोध को देखते हुए अभियुक्तों की जमानत याचिकाओं को सात दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए.” दोनों आरोपी फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं.

न्यायमूर्ति शर्मा ने तिहाड़ जेल के अधीक्षक को निर्देश दिया कि सुनवाई की अगली तारीख पर पांडे को अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश किया जाए, क्योंकि वह खुद अपनी जमानत अर्जी पर बहस करेंगे.

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) के मुताबिक, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के दो पूर्व अधिकारियों चित्रा रामकृष्ण और रवि नारायण ने एनएसई कर्मचारियों पर अवैध रूप से नजर रखने के लिए एक निजी कंपनी की सेवाएं ली थीं. नारायण इस मामले में सह-आरोपी हैं.

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सीबीआई और ईडी का आरोप है कि जासूसी के जरिये एनएसई के दोनों पूर्व अधिकारी यह जानना चाहते थे कि कर्मचारी कहीं एक्सजेंच से जुड़ी सूचनाओं पर चर्चा तो नहीं कर रहे या फिर उन्हें लीक तो नहीं कर रहे.

जांच एजेंसियों का आरोप है कि एनएसई कर्मचारियों की जासूसी के लिए पांडे द्वारा स्थापित कंपनी ‘आईसेक सर्विसेज' को 4.45 करोड़ रुपये का अनुबंध हासिल हुआ था.

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कथित जासूसी 2009 और 2017 के बीच उस समय की गई थी, जब शेयर बाजार में हेरफेर से संबंधित को-लोकेशन घोटाला हुआ था. एनएसई पर बाद में जासूसी हार्डवेयर को ई-कचरे के रूप में निपटाने के आरोप लगे थे.

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