''शब्दों से नहीं, काम करके दिखाएंगे'' : शपथ के बाद एनडीटीवी से बोले प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़

जस्टिस चंद्रचूड़ का 10 नवंबर 2024 तक दो साल के लिए सीजेआई के पद पर रहेंगे. जस्टिस चंद्रचूड़ ने जस्टिस उदय उमेश ललित की जगह ली है.

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वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चंद्रचूड़ ने बुधवार को सीजेआई पद की शपथ ली. 

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चंद्रचूड़ ने बुधवार को प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) पद की शपथ ली. इसके बाद सीजेआई चंद्रचूड़ ने एनडीटीवी से कहा, ''शब्दों से नहीं, काम करके दिखाएंगे. आम आदमी के लिए काम करेंगे. बड़ा मौका है, बड़ी जिम्मेदारी है. आम आदमी की सेवा करना मेरी प्राथमिकता है. आगे आप देखते जाइए, हम चाहे तकनीकी रिफॉर्म हो, रजिस्ट्री रिफॉर्म हो, ज्यूडिशियल रिफॉर्म हो, उसमें नागरिक को प्राथमिकता देंगे.'' देश के नए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने शुरुआत सुप्रीम कोर्ट परिसर में लगी महात्मा गांधी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करके की.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में देश के 50वें सीजेआई के रूप में उन्हें शपथ दिलवाई. जस्टिस चंद्रचूड़ के पिता भी देश के सीजेआई रहे हैं. उनके पिता का बतौर सीजेआई करीब सात साल और चार महीने का कार्यकाल रहा था, जो कि सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में किसी सीजेआई का अब तक सबसे लंबा कार्यकाल है. वह 22 फरवरी 1978 से 11 जुलाई 1985 तक प्रधान न्यायाधीश रहे थे.

जस्टिस चंद्रचूड़ का 10 नवंबर 2024 तक दो साल के लिए सीजेआई के पद पर रहेंगे. जस्टिस चंद्रचूड़ ने जस्टिस उदय उमेश ललित की जगह ली है. जस्टिस ललित ने 11 अक्टूबर को जस्टिस चंद्रचूड़ को अपना उत्तराधिकारी बनाए जाने की सिफारिश की थी. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें 17 अक्टूबर को अगला सीजेआई नियुक्त किया था.

जस्टिस चंद्रचूड़ की सबसे विशिष्ट खासियत है कि वो धैर्य से सुनवाई करते हैं. कुछ दिन पहले जस्टिस चंद्रचूड़ ने लगातार दस घंटे तक सुनवाई की थी. सुनवाई पूरी करते हुए उन्होंने कहा भी था कि काम ही पूजा है. कानून और न्याय प्रणाली की अलग समझ की वजह से जस्टिस चंद्रचूड़ ने दो बार अपने पिता पूर्व चीफ जस्टिस यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ के फैसलों को भी पलटा है.

जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़  के नाम अनगिनत ऐतिहासिक फैसले हैं. उनके फैसलों की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि सब बताना संभव नहीं है. हाल ही में, जस्टिस चंद्रचूड़ ने एक ऐतिहासिक फैसले में, जिसने महिलाओं के प्रजनन अधिकारों को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया पर फैसला लिया था.

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