"हमारा लेना-देना नहीं" : भारत के रूस से रियायती दाम पर तेल खरीदने के मुद्दे पर जर्मनी

चीन और रूस के बाद भारत, दुनिया में कच्‍चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है.

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फिलिप एकरमैन ने कहा- भारत के रूस से तेल खरीदने से हमें कुछ लेना-देना नहीं है
नई दिल्‍ली:

भारत द्वारा रूस से रियायती दर पर तेल खरीदने के मुद्दे परा जर्मनी के राजदूत ने दो टूक लहजे में प्रतिक्रिया दी है. जर्मन राजदूत की यह प्रतिक्रिया, इस मुद्दे पर कुछ दिन पहले अमेरिका के इस बयान के बाद आई है जिसमें कहा गया था कि भारत के अमेरिका का एक महत्वपूर्ण साझेदार बने रहने और रूस से सस्ती दरों पर कच्चा तेल खरीदने में ‘कोई विरोधाभास' नहीं है. भारत में जर्मनी के राजदूत फिलिप एकरमैन ने इस बारे में पूछे गए सवाल पर कहा, "भारत के रूस से तेल खरीदने से हमें कुछ लेना-देना नहीं है. यदि आप इसे कम कीमत पर प्राप्त करते हैं, तो मैं इसके लिए भारत को दोष नहीं दे सकता."

गौरतलब है कि चीन और रूस के बाद भारत, दुनिया में कच्‍चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है. यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद मॉस्‍को को 'दंडित' करने की कई पश्चिमी देशों की धमकी के बावजूद रूस से भारत रियायती कीमत पर तेल आयात कर रहा है. यूक्रेन से जंग के बीच, भारत के रूस से तेल खरीदने के फैसले के कई पश्चिमी देशों ने आलोचना की है लेकिन अपने रुख पर अडिग रहते हुए भारत ने साफ कहा है कि उसे जहां से अच्‍छी डील मिलेगी, वहां से तेल खरीदता रहेगा. रूस ने कहा है कि वह G7 और उनके सहयोगी देशों द्वारा घोषित रूसी तेल पर "प्राइस कैप (मूल्‍य सीमा)" का समर्थन नहीं करने के भारत के फैसले का स्वागत करता है.

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गौरतलब है कि रूस से तेल आयात के मुद्दे पर पिछले साल दिसंबर में एक मीडिया ब्रीफिंग में जयशंकर ने कहा था कि यूरोप अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को प्राथमिकता देते हुए भारत से इससे अलग अपेक्षा नहीं कर सकता. विदेश मंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि भारत और रूस के बीच व्यापार बढ़ाने पर बातचीत यूक्रेन युद्ध शुरू होने से काफी पहले ही प्रारंभ हो गए थे. जयशंकर ने रूस से कच्चे तेल के आयात पर कहा था कि यह बाजार से जुड़े कारकों से प्रेरित हैं. उन्होंने कहा कि फरवरी से नवंबर तक यूरोपीय संघ ने रूस से अधिक मात्रा में जीवाश्म ईंधन का आयात किया है.

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विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा था, ‘‘ मैं समझता हूं कि संघर्ष की स्थिति (यूक्रेन में) है. मैं यह भी समझता हूं कि यूरोप का एक विचार है और यूरोप अपने विकल्प चुनेगा और यह यूरोप का अधिकार है. लेकिन यूरोप अपनी पसंद के अनुसार ऊर्जा जरूरतों को लेकर विकल्प चुने और फिर भारत को कुछ और करने के लिये कहे .'' उन्होंने कहा कि पश्चिम एशिया से यूरोप द्वारा तेल खरीदने से भी दबाव पड़ा है.

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