सरकार का वित्तीय घाटा कम करने के लिए जरूरी सब्सिडी में कटौती करने की जरूरत नहीं है. केंद्र सरकार की ओर से अंतरिम बजट पेश करने के बाद केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पहला इंटरव्यू NDTV को दिया. उन्होंने एनडीटीवी के एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया से इस एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में यह बात कही.
केंद्र सरकार ने कमाई और खर्च के बीच में सही तरह से समन्वय बनाकर रखा. सरकार सब्सिडी के चक्कर में नहीं रही. ऐसे में महंगाई को लेकर यह सरकार किस तरह से नियंत्रण कर पाई? इस सवाल पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि, सिर्फ बड़े पैमाने पर सब्सिडी देना ही जनता को लाभ देने का तरीका नहीं है.
वित्त मंत्री ने कहा कि, कोविड काल में और उसके बाद के सालों में अगर किसानों की बात करें तो यूरिया के दाम काफी बढ़े, लेकिन हमने इसका बोझ किसानों पर नहीं आने दिया. सरकार ने खुद इसका वहन किया. यूरिया के आयात के लिए जो पैसा देना होता है, वह हम उस साल और लगातार दो साल देते आए. सौ रुपये की जगह 1500 रुपये तक दाम पहुंचे, फिर भी हम आयात करते रहे. हमने बढ़े हुए दाम का बोझ किसानों पर नहीं डाला. किसानों को कीमतें बढ़ने से पहले जिस दाम पर यूरिया दिया जाता था, उसी दाम पर देते रहे. हम देखते हैं कि कहां बोझ उठाना है, हम उसे बिना संकोच के उठाते हैं.
सरकार का सिर्फ प्रचार में नहीं, सशक्तिकरण में विश्वास
वित्त मंत्री ने कहा कि, आपने पूछा कि सरकार ने बजट में लोकलुभावन घोषणाएं नहीं कीं. हमारी सरकार सिर्फ प्रचार में नहीं सशक्तिकरण में विश्वास रखती है. जब योजनाएं तैयार होती हैं, लोगों तक जो मूलभूत सुविधाएं पहुंचनी हैं, उसे पहुंचाने के लिए हर कोशिश की जाती है. ध्यान रखा जाता है कि लोगों तक जो जरूरी सेवाएं हैं, वो पहुंचे और उसके बाद वे अपने परिवार के लिए खुद फैसला ले सकें, यह नहीं कि वे पूरी तरह सरकार पर निर्भर हो जाएं. हमारा विश्वास लोगों को इम्पावर करने में है.
रोजगार का मतलब सिर्फ किसी दफ्तर में काम करना नहीं
निर्मला सीतारमण ने कहा कि, सोशल वेलफेयर को किसी गरीब परिवार तक पहुंचाने में हम मदद करते रहेंगे. जैसे स्वास्थ्य के लिए और अच्छी बुनियादी शिक्षा के लिए उन्हें अपनी बचत में से खर्च नहीं करना पड़े, इसके लिए सरकार खर्च करती रहेगी. लेकिन जब हम अन्य बड़ी योजनाएं लेकर आते हैं तो कैबिनेट में पास कराने के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे पहले यह पूछते हैं कि जो पैसे हम खर्च कर रहे हैं उससे कितने रोजगार सृजित होंगे. रोजगार का मतलब सिर्फ किसी दफ्तर में जाकर काम करना ही नहीं है. अगर कोई खुद भी बिजनेस चलाने में सक्षम है तो सरकार उसकी मदद करती है. वह इससे खुद के लिए तो रोजगार सृजित करते ही हैं, अपने साथ वह अन्य लोगों को भी रोजगार देते हैं. यह भी गिनती में आना चाहिए.
उन्होंने कहा कि, कोविड के बाद रिकवरी में एक से दो साल लगे. उसके बाद से देश लगातार ग्रोथ कर रहा है, जो ठहराव के साथ है. यह बस छोटी-छोटी भागीदारियों की वजह से ही हो रहा है.