'छोटे-मोटे मामलों में सत्र न्यायालय को जमानत खारिज करने की जरूरत नहीं', इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक आदेश में कहा कि सत्र न्यायालय को छोटे-मोटे मामलों में न्यायिक मंथन किए बगैर जमानत की अर्जी खारिज करने की जरूरत नहीं है.

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प्रयागराज:

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक आदेश में कहा कि सत्र न्यायालय को छोटे-मोटे मामलों में न्यायिक मंथन किए बगैर जमानत की अर्जी खारिज करने की जरूरत नहीं है. बुलंदशहर के रुद्र दत्त शर्मा नाम के एक व्यक्ति पर दर्ज एक आपराधिक मामले में अग्रिम जमानत की अर्जी पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सुरेश कुमार गुप्ता ने यह टिप्पणी की. शर्मा पर भादंसं की धारा 147/353 (दंगे से जुड़े आरोप) के तहत मामला दर्ज किया गया था.

याचिकाकर्ता के वकील की दलील सुनने और इस मामले के तथ्यों पर गौर करने के बाद अदालत ने कहा, “इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए मेरा विचार है कि अकसर यह देखा गया है कि छोटे-मोटे मामलों में भी सत्र न्यायालय, न्यायिक मंथन किए बगैर और नियमित तौर पर जमानत की अर्जी खारिज कर देता है.अदालत ने कहा, “यह बहुत खेदजनक है. इस तरह की जमानत अर्जी पर सत्र न्यायालय द्वारा विचार किया जाना चाहिए और निर्णय दिया जाना चाहिए. यह अग्रिम जमानत का एकदम सही मामला है और इसलिए जमानत मंजूर की जाती है.”

अदालत ने अमन प्रीत सिंह बनाम सीबीआई के मामले का भी हवाला दिया जिसमें व्यवस्था दी गई थी कि कोई व्यक्ति जो किसी गैर जमानती/ संज्ञेय अपराध में आरोपी है, यदि जांच के दौरान उसे हिरासत में नहीं लिया गया है तो ऐसे मामले में यह उचित है कि उसे जमानत पर रिहा किया जाए क्योंकि जांच के दौरान उसे गिरफ्तार नहीं किया जाना या हिरासत में उसे पेश नहीं किया जाना उसे जमानत पर रिहा होने का पात्र बनाने के लिए पर्याप्त है.

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गत 16 सितंबर को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि उसका मुवक्किल निर्दोष है और उसे मौजूदा मामले में झूठा फंसाया गया है. याचिकाकर्ता की उम्र 60 वर्ष है और मामले में उसकी कोई भूमिका नहीं है. याचिकाकर्ता के खिलाफ जिस अपराध का आरोप लगाया गया है, उसमें दो वर्ष तक के कारावास की सजा का प्रावधान है.

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