आरोपियों की सहमति के बिना नार्को एनालिसिसि टेस्ट नहीं होगा. सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये तरीका असंवैधानिक है. इस तरह की बलपूर्वक तकनीकें मौलिक अधिकारों के मूल पर प्रहार करती हैं और इन्हें जमानत के चरण में भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. निचली अदालत ऐसी आक्रामक प्रक्रियाओं की अनुमति देकर खुद को "मिनी ट्रायल कोर्ट" में नहीं बदल सकती.
जस्टिस संजय करोल और प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने फैसला सुनाया कि हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता अमलेश कुमार की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सभी आरोपियों पर नार्को एनालिसिस टेस्ट कराने के जांच अधिकारी के प्रस्ताव को स्वीकार करके गलती की है. इस तरह का दृष्टिकोण संविधान के अनुच्छेद 20(3) और 21 का उल्लंघन करता है और सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य में निर्धारित कानून के विपरीत है.
बिना सहमति के प्रस्तावित नार्को एनालिसिस टेस्ट को हाईकोर्ट द्वारा स्वीकार करना असंवैधानिक है और जमानत कार्यवाही में एक अस्वीकार्य जांच शॉर्टकट है. जमानत अदालत ऐसी आक्रामक प्रक्रियाओं की अनुमति देकर खुद को 'मिनी ट्रायल कोर्ट' में नहीं बदल सकती. दरअसल, ये मामला अगस्त 2022 में आरोपी की पत्नी के कथित रूप से लापता होने से संबंधित है. पुलिस को गड़बड़ी का संदेह था और उसने सभी आरोपियों और गवाहों का नार्को टेस्ट कराने की मांग की. नवंबर 2023 में पटना हाईकोर्ट ने चल रही जांच के हिस्से के रूप में इस दलील को स्वीकार कर लिया और कहा कि वो जमानत पर विचार बाद में करेगा. इसके बाद आरोपी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा.
फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि स्वैच्छिक नार्को परीक्षण भी अपने आप में दोषसिद्धि का आधार नहीं बन सकते हैं. उसके बाद खोजे गए किसी भी साक्ष्य को साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 और सख्त प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का पालन करना होगा. स्वेच्छा से भी नार्को टेस्ट मांगने का कोई अपरिहार्य अधिकार नहीं है. कोर्ट ने हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को खारिज कर दिया.साथ ही निर्देश दिया कि कुमार की जमानत याचिका पर गुण-दोष के आधार पर विचार किया जाए.