छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में साल 2009 में सुरक्षाबलों द्वारा 17 आदिवासियों की एक्स्ट्रा ज्यूडि़शियल किलिंग के आरोपों की स्वतंत्र जांच की याचिका खारिज कर दी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने एक्टिविस्ट हिमांशु कुमार की याचिका को पांच लाख के जुर्माने के साथ खारिज किया है. साथ ही केंद्र सरकार की याचिकाकर्ता के खिलाफ कोर्ट में झूठे सबूत देने पर जूरी का मामला चलाने की मांग को नामंजूर किया. हालांकि, अदालत ने कहा है कि सरकार खुद जांच कर सकती है और कुछ सामग्री मिले तो IPC की धारा 211 के तहत कार्यवाही कर सकती है.
केंद्र की याचिका पर कोर्ट ने सुनाया फैसला
बता दें कि छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ चलाए गए अभियान के तहत साल 2009 में सुरक्षाबलों पर एक्स्ट्रा ज्यूडि़शियल किलिंग का आरोप लगाने वाले याचिकाकर्ताओं को दोषी ठहराए जाने और मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराए जाने की मांग वाली केंद्र की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है.
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में वनवासी चेतना आश्रम चलाने वाले याचिकाकर्ता हिमांशु कुमार का दावा है कि उनकी याचिका 2009 में उनके द्वारा दर्ज की गई गवाही पर आधारित है, जिसमे तीन अलग-अलग घटनाओं में 17 ग्रामीणों की मौत हुई थी. उनका कहना है कि इन गवाहियों में उन ग्रामीणों ने उन सभी मौतों के लिए सुरक्षा बलों को जिम्मेदार ठहराया है.
आवाज उठाने के लिए निशाना बनाया जा रहा
हिमांशु कुमार का कहना है कि उनके द्वारा याचिका दाखिल किए जाने के बाद उन्हें नक्सल बहुल इलाके से बाहर कर दिया गया. उन्हें गरीब आदिवासियों के लिए आवाज उठाने के लिए निशाना बनाया जा रहा है. वहीं, दूसरी तरफ सरकार का दावा है कि उन्हें नक्सलियों ने मारा था.
केंद्र सरकार की तरफ से दाखिल अर्जी में कहा गया है कि झूठे और मनगढ़ंत सबूतों के आधार पर साजिश के तहत व्यक्ति और संगठनों द्वारा याचिका दाखिल की गई है, जिसका या तो सुरक्षाबलों पर झूठे आरोप लगाकर वामपंथियों के खिलाफ कार्रवाई करने से रोका जाना मकसद है या उत्पीड़न की मनगढ़ंत कहानी के आधार पर वामपंथियों को कोर्ट लाने से रोका जाना.
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