बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यूं तो भ्रष्टाचार, अपराध पर ज़ीरो टॉलरेंस का दावा करते हैं लेकिन विधानसभा के आख़िरी सत्र में उनके इन दावों की पोल खुद उनके सहयोगी भाजपा विधायकों ने कई बार खोल कर रख दी, जिसके कारण सरकार की काफ़ी फ़ज़ीहत भी हुई. बुधवार को बिहार विधानसभा में भाजपा विधायक संजय सरावगी ने ग्रामीण कार्य विभाग के एक ऐसे भ्रष्टाचार के आरोपी इंजीनियर अनिल कुमार का मामला उजागर किया था जिनके पास से 67 लाख नकद बरामद होने के बावजूद तीन महीने बाद तक निलंबन की कार्रवाई नहीं हुई थी. विभाग के मंत्री के जवाब से असंतुष्ट विधायकों की मांग पर विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने सदन की समिति से जांच की मांग जब मान ली तब नीतीश कुमार सरकार ने शुक्रवार को निलंबन का आदेश निकाला.
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दरअसल ये मामला 28 अगस्त का है जब दरभंगा में ग्रामीण कार्य विभाग में पदस्थापित अनिल कुमार की मुज़फ़्फ़रपुर में गाड़ी की चेकिंग में 18 लाख नकद बरामद हुआ और उनके साथ चल रही दूसरी गाड़ी फ़रार हो गयी. लेकिन उनके दरभंगा स्थित घर पर छापेमारी में 49 लाख नकद और मिले. लेकिन अनिल कुमार ने छापेमारी दल को यह कह कर धमकाया कि अगर उन्होंने मुंह खोल दिया तो सरकार हिल जायेगी. दरभंगा से भाजपा विधायक संजय सरावगी की मानें तो वो अपने दफ़्तर में काम करते रहे जबकि विभागीय मंत्री जयंत राज ने विधानसभा में कहा कि वो मेडिकल छुट्टी पर चले गये. लेकिन बुधवार को इस मुद्दे पर जमकर हंगामा हुआ.
विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने तो सदन की एक समिति से जांच कराने की घोषणा कर डाली लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इससे ख़ासे नाराज़ हुए. इस मामले में सरकार की फ़ज़ीहत और मीडिया में प्रमुखता से खबरें छपने के बाद विभागीय सचिव को मुख्यमंत्री के स्तर से करवाई करने के आदेश का सिग्नल होते ही शुक्रवार को निलंबन का आदेश आख़िरकार निकाला गया.
इस प्रकरण से फिर साफ़ हुआ कि जब बात किसी भ्रष्ट अधिकारी पर कार्रवाई की होती है तो भले ही अपने सरकार की विपक्ष के सामने टोपी क्यों ना उछले, भाजपा विधायक आलोचना से बाज़ नहीं आते. वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कार्रवाई में तीन महीने विलंब कर अपने आलोचकों को बैठे बिठाये मुद्दा दे दिया क्योंकि इस कार्रवाई का पूरा श्रेय अब भाजपा विधायक और बिहार विधानसभा अध्यक्ष को दिया जा रहा है.
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