एक तीर से कई निशाना: राज्यसभा चुनाव के जरिए नीतीश कुमार ने सहयोगी BJP को दिया बड़ा संदेश

आरसीपी सिंह जाति-आधारित जनगणना (Caste Census) पर पार्टी लाइन से भी अलग थे. उन पर उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए भाजपा के साथ सीटों के बंटवारे के समझौते को विफल करने के भी आरोप हैं. वह प्रचार से भी दूर रहे. उन्होंने विधान परिषद चुनाव (Legislative Council Election) में मतदान नहीं किया. आरसीपी ने नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी को भी छोड़ दिया और उसी समय अपने पैतृक गांव मुस्तफापुर में ईद मिलन कार्यक्रम का आयोजन किया.

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पटना:

कभी जेडीयू में नंबर दो रहे केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह (Union Minister RCP Singh) को राज्यसभा में लगातार तीसरी बार नहीं भेजकर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने एक तरह से उन्हें सजा दी है. साथ ही उन्होंने ये संकेत दिया है कि अभी के लिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के मंत्रिमंडल में उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) से कोई नहीं होगा. ये एक संकेत भी है कि वह सहयोगी दल भाजपा से नाराज हैं.

आरसीपी सिंह केंद्र सरकार में जदयू के एकमात्र मंत्री हैं. उन्होंने स्पष्ट रूप से भाजपा से अपनी नजदीकी की कीमत चुकाई है. जून में उनका राज्यसभा कार्यकाल समाप्त होने के बाद उन्हें जल्द ही पद छोड़ना पड़ सकता है. अपने इस्तीफे के सवाल पर सोमवार को आरसीपी सिंह ने कहा, "यह प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है." निराशा को छुपाते हुए उन्होंने कहा, "मैं उनसे दिल्ली में मिलूंगा."

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आरसीपी सिंह ने कहा कि वह राज्यसभा की सीट से वंचित किए जाने पर 'आभारी' हैं. उन्होंने कहा, "जो भी फैसला लिया गया, वह मेरे हित में है. मैंने आज तक ऐसा कुछ नहीं किया है, जिससे किसी को परेशानी हो."

पार्टी नेताओं के अनुसार, आरसीपी सिंह के लिए ये दीवार पर साफ-साफ लिखी हुई जैसी थी, क्योंकि नीतीश कुमार ने उन्हें "अनदेखा" करना शुरू कर दिया था. शादी की एक तस्वीर, जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार केंद्रीय मंत्री को पूरी तरह से नजरअंदाज करते दिखाई दिए. दोनों के बीच में एक नेता बैठे हुए थे, ये उस व्यक्ति के लिए अंधकारमय समय की भविष्यवाणी थी जो कभी नीतीश कुमार के सबसे करीबी सहयोगी हुआ करते थे.

आरसीपी सिंह ने इससे पहले कुछ भी गलत होने से इनकार किया था. उन्होंने पिछले बुधवार को एक सवाल पर भड़कते हुए संवाददाताओं से कहा था कि, "बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ किसी भी मुद्दे पर कोई मतभेद नहीं है. नामांकन 24 मई से 31 मई तक था और आज कैबिनेट की बैठक है. आज शाम मैं पटना जा रहा हूं. आप लोग इस तरह के सवाल कहां से लाते हैं."

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कई बार के अनुरोध के बाद, आरसीपी सिंह को आखिरकार पिछले गुरुवार को नीतीश कुमार के साथ मिलने का वक्त मिला, लेकिन यह एक तनावपूर्ण बैठक थी. नीतीश कुमार ने कथित तौर पर यह स्पष्ट कर दिया कि उनकी सूची में आरसीपी सिंह शामिल नहीं हैं, भले ही इसका मतलब केंद्रीय मंत्री को कैबिनेट में अपना स्थान खोना होगा.

नीतीश कुमार के समर्थकों के अनुसार, भले ही मुख्यमंत्री ने आरसीपी सिंह को केंद्र सरकार में अपनी पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में चुना, लेकिन इसके बाद उन्होंने पार्टी के लिए कुछ नहीं किया.

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आरसीपी सिंह जाति-आधारित जनगणना पर पार्टी लाइन से भी अलग थे. भाजपा इसका समर्थन नहीं करती है, लेकिन नीतीश कुमार ने बिहार में एक सर्वदलीय बैठक आयोजित करने की दिशा में पहला कदम उठाया है. आरसीपी पर उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए भाजपा के साथ सीटों के बंटवारे के समझौते को विफल करने के भी आरोप हैं. वह प्रचार से भी दूर रहे. उन्होंने विधान परिषद चुनाव में मतदान नहीं किया. आरसीपी ने नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी को भी छोड़ दिया और उसी समय अपने पैतृक गांव मुस्तफापुर में ईद मिलन कार्यक्रम का आयोजन किया.

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नीतीश कुमार कथित तौर पर पार्टी के बिहार प्रभारी और केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव सहित भाजपा आलाकमान के साथ आरसीपी सिंह की ज्यादा नजदीकी से भी नाराज थे, जिन्हें मुख्यमंत्री गठबंधन में गतिरोध के लिए भी दोषी मानते हैं.

हालांकि राज्यसभा के लिए पसंद के तौर पर झारखंड जदयू प्रमुख खीरू महतो के नाम ने भी सबको हैरान कर दिया. यह कोई नहीं समझ पाया कि जब अभी पार्टी बिहार में ही लड़खड़ा रही है, तो वह पड़ोसी राज्य झारखंड में पार्टी को मजबूत करने की कोशिश क्यों करेंगे.
 

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